ट्राइबल रंग में निखार

By: Jan 3rd, 2024 12:05 am

छोटे से हिमाचल की अधिकार प्राप्त करने की होड़ में मुद्दे और मुद्दों की बिसात पर सामाजिक विभाजन की रूपरेखा में उतरते नए पहलवानों का अवतार। गिरिपार की 154 पंचायतों का समाज अब अधिकार के नए क्षेत्र में कदम रखते हुए इस तरह का दसवां समुदाय हो गया जो अब जनजातीय पुकारा जाएगा। इस तरह आधी सदी का संघर्ष सिरमौर के हाटी समुदाय को जनजातीय घोषित होने की खुशी प्रदान कर रहा है। जाहिर तौर पर अधिकारों की फेररिस्त में करीब डेढ़-पौने दो लाख लोगों का समूह गौरवान्वित महसूस कर सकता है क्योंकि अब समाज को संविधान का रक्षा कवच मिलेगा। यह दीगर है कि आने वाले समय में हिमाचल के विभिन्न समुदाय कैसे दिखेंगे या पहले जनजातीय घोषित अधिकार किस तरह बंटेंगे, लेकिन प्रदेश पहले से बड़े ट्राइबल कुनबे का आधार हो गया। इसके आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक पहलू अवश्य ही आगे चलकर दिखाई देंगे। हिमाचल की तरक्की के हर आयाम में ट्राइबल शक्ति का समावेश ही दिखाई नहीं देता, बल्कि सरकारों व सचिवालय के संचालन में भी इनका महत्त्व स्पष्ट है। हम एक तरह कॉडर को ताकतवर होते इसलिए देख पाते हैं क्योंकि वहां जातियों से बड़ा जनजातीय समूह उभर कर आगे बढ़ा है।

पहले किन्नौर, लाहुल-स्पीति, भरमौर-पांगी तक की परिधि में जनजातीय क्षेत्रों की धमक में सियासी पारा चढ़ता था, लेकिन शांता कुमार के प्रयास से कांगड़ा का गद्दी समुदाय और अब सिरमौर का हाटी समुदाय भी ट्राइबल चिन्हित हुआ है, तो इसके भूगोल से कहीं व्यापक मानव अधिकारों की शृंखला बनती है। यही वजह है कि किन्नौर से जनजातीय पृष्ठभूमि की समृद्धि सोलन से लेकर चंडीगढ़ तक की रीयल एस्टेट में बस गई। लाहुल-स्पीति के वर्चस्व में मनाली का आंगन बस गया। इसी तरह चंबा का गद्दी समुदाय अब कांगड़ा की आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक पक्ष का अहम किरदार बन गया। बेशक हाटी समुदाय के भीतर पहले से प्रगतिशील जातियां शिमला और पांवटा साहिब की खुशहाली में शृंगार करती रही हैं, लेकिन जनजातीय दर्जे के आगमन से इस क्षेत्र का आर्थिक प्रस्थान व सरकारी ओहदों में अवसर प्राप्ति का स्थान बनेगा। कुल मिला कर यह केवल एक वर्ग का जनजातीय होना नहीं, बल्कि सियासत में ट्राइबल प्रभाव का एक और मीलपत्थर हासिल करना होगा। नक्शे में देखें तो हिमाचल के एक बड़े भूभाग में ट्राइबल रंग दिखाई दे रहा है, फिर भी शिमला के डोडराक्वार और कांगड़ा के छोटा व बड़ा भंगाल एरिया के लोगों के भी जनजातीय सत्कार की जरूरत है। भौगोलिक विषमताओं के मानदंड में कई क्षेत्र आज भी चंगर की हवाओं से आजिज हैं, तो विकास के असंतुलन में कई सामाजिक सुराख बाकी हैं।

इसलिए जब कभी गरीब ब्राह्मण, राजपूत या अन्य तथाकथित उच्च जातियों के लगभग पिछड़े हुए लोग अपने लिए आरक्षण मांगते हैं, तो ऐसे आर्थिक पिछड़ेपन की भी तो सुनी जानी चाहिए। हिमाचल में भी वर्ग विभाजन के बजाय आर्थिक विभाजन से कई लोगों की हैसियत का उत्थान आवश्यक है, लेकिन सियासत के पैगाम केवल समुदाय चुनते हैं। बहरहाल बढ़ते ट्राइबल समुदाय के परिचय को सियासी रूप से रेखांकित करने के लिए अब हिमाचल से लोकसभा की एक जनजातीय सीट बढऩी चाहिए। भारत की 8.6 प्रतिशत आबादी जनजातीय है, जिसमें भील लोगों की आबादी सबसे अधिक है। हिमाचल में सिरमौर के हाटी समुदाय के ट्राइबल में आ जाने से यहां की आबादी में इनका दबदबा बढ़ेगा। हिमाचल में फिलहाल 5.71 प्रतिशत जनजातीय आबादी थी जो अब 8 फीसदी से कहीं ऊपर पहुंच जाएगी। पुनर्सीमांकन के बाद लोकसभा की 47 सीटें जनजातीय आधार पर आरक्षित हैं और इस आधार पर हिमाचल के खाते में भी एक अतिरिक्त ट्राइबल सीट का सृजन किया जा सकता है। देश में लक्षद्वीप की लोकसभा सीट अगर मात्र 49922 मतदाताओं का प्रतिनिधित्व कर सकती है, तो प्रदेश के पांगी-भरमौर, लाहुल-स्पीति तथा किन्नौर के कुल 164785 मतदाताओं के लिए अलग से एक लोकसभा सीट चिन्हित कर सकती है और अगर इसके तहत हाटी समुदाय के मतदाताओं को भी जोड़ लिया जाए तो हिमाचल के जनजातीय लोगों की आवाज संसद में बुलंद हो जाएगी।


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