अदम्य साहस के प्रतीक गुरु गोबिंद सिंह जी

By: Jan 13th, 2024 12:17 am

गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु थे। उनका जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि संवत् 1723 विक्रमी यानी कि 22 दिसंबर 1666 को बिहार के पटना में हुआ। इस बार यह तिथि नानकशाही कैलेंडर के मुताबिक 17 जनवरी को है। उनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी था। उनके पिता सिखों के 9वें गुरु थे। इनके शुरुआती चार साल पटना में ही बीते। इसके बाद इनका परिवार आनंदपुर साहिब आ गया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने योद्धा बनने के लिए कला सीखी और साथ ही संस्कृत और फारसी भाषा का भी ज्ञान लिया। इनके पिता ने धर्म परिवर्तन के खिलाफ खुद का बलिदान दे दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी को बचपन में गोबिंद राय के नाम से बुलाया जाता था। गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरु गोबिंद सिंह एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ एक निर्भयी योद्धा, कवि और दार्शनिक भी थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इन्होंने ही गुरु ग्रंथ साहिब को पूर्ण किया।

सिखों को पांच ककार धारण करने का आदेश – कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की रक्षा के लिए कई बार मुगलों का सामना किया था। सिखों के लिए 5 चीजें बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था। इन चीजों को ‘पांच ककार’ कहा जाता है, जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है। गुरु गोबिंद सिंह एक लेखक भी थे, उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की थी। कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था। गुरु गोबिंद सिंह ने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखीं थी। साथ ही उन्होंने धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने की कला भी सीखी।

गुरु गोबिंद सिंह के जीवन से मिलती है ये प्रेरणा – जीवन में कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, चाहे परिस्थितियां कितनी भी बुरी क्यों न हो। उन्होंने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की, तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं ‘भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन’। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति भाव वाले कर्मयोगी थे। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। ईश्वर ने हमें जन्म दिया है ताकि हम संसार में अच्छे काम करें और बुराई को दूर करें।


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