प्लास्टिक से होने वाला नुकसान रोकना होगा

By: Jan 2nd, 2024 12:05 am

सरकार को पाठ्यक्रम बनाते हुए भावी पीढ़ी को जागरूक करने के लिए आवश्यक रूप से पर्यावरण संरक्षण की जानकारी देनी चाहिए…

विज्ञान ने मनुष्य को कई चीजें प्रदान की हैं, जैसे कि चिकित्सा, सूचना क्रांति, अंतरिक्ष विज्ञान, यातायात आदि। प्लास्टिक का आविष्कार भी मनुष्य की सुविधा के लिए बेकलैंड ने 1907 में किया। 20वीं सदी में प्लास्टिक के आविष्कार को एक क्रांति की तरह देखा गया, क्योंकि प्लास्टिक ने मनुष्य के जीवन को कई तरह से प्रभावित किया। प्लास्टिक एक ग्रीक शब्द प्लास्टीकोस से बना है, जिसका सीधा तात्पर्य है ऐसा नमनीय पदार्थ जो किसी आकार में ढाला जा सके। 1970 के दशक में इसका उपयोग औद्योगिक तथा घरेलू क्षेत्र में अप्रत्याशित रूप से बढ़ा। वर्तमान समय में प्लास्टिक पैकेजिंग से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स, कृषि उपकरणों और हमारे दैनिक उपयोग की वस्तु बन गया है। प्लास्टिक मानव की दिनचर्या में इस प्रकार शामिल हो चुका है कि उसकी सुबह की शुरुआत ही प्लास्टिक के बने टूथब्रश से होती है। आदमी जिस बाल्टी में नहाता है, कपड़े धोता है, वह भी प्लास्टिक की बनी होती है। जब वह ऑफिस के लिए अपने खाने का डिब्बा लेकर निकलता है तो वह भी प्लास्टिक का बना होता है, पानी भी प्लास्टिक की बोतल में पीता है। कहने का अभिप्राय बस इतना है कि प्लास्टिक मानव जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। लेकिन प्लास्टिक मानव जीवन को जितनी सुविधा प्रदान करता है, उतनी ही बीमारियां भी फैलाता है। अगर हम गौर से देखें तो पाएंगे कि आधुनिक युग में प्लास्टिक मानव शत्रु के रूप में उभर कर सामने आया है और यह हमारे पर्यावरण और मानव सभ्यता के लिए दिन-प्रतिदिन खतरा बनता जा रहा है। प्लास्टिक ने समुद्र से लेकर दरिया तक, पहाड़ों से लेकर मैदानी इलाकों तक हर जगह अपना विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया है।

इस हिसाब से देखें तो हम पाएंगे कि प्लास्टिक ने मानवता का भला कम, नुकसान ज्यादा किया है। एक अनुमान के अनुसार भारत सालाना 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन करता है। पिछले पांच वर्षों में भारत में प्लास्टिक का उत्पादन चार गुना ज्यादा हो गया है। भारत में प्लास्टिक के कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत हिस्सा लैंड फील्ड्स में डंप किया जाता है, जोकि नदियों को दूषित करता है। सडक़ों की नालियों में पानी को अवरुद्ध करता है जोकि बाद में डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया का कारण भी बनता है। अगर हम बात करें हिमाचल की तो पहाड़ों में जो जलाशय, बावडिय़ों का जल गंगाजल के समान शुद्ध माना जाता था, अब प्लास्टिक के कारण मनुष्य को कई गम्भीर बीमारियों जैसे कैंसर आदि का कारण बन रहा है। प्लास्टिक ने केवल मानवजाति को ही खतरे में नहीं डाला है अपितु ये हमारे आसपास के जानवरों के लिए भी खतरा बन चुका है। भारत में मुंबई, केरल और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आसपास के महासागर दुनिया के सबसे प्रदूषित महासागरों में से हैं। सर्वे के अनुसार प्लास्टिक कचरा दुनिया भर में कम से कम 267 प्रजातियों को प्रभावित करता है जिसमें 86 फीसदी समुद्री कछुए की प्रजातियां, 44 फीसदी समुद्री पक्षी प्रजातियां और 43 प्रतिशत समुद्री स्तनपायी प्रजातियां शामिल हैं। प्लास्टिक किस तरह से जानवरों के लिए एक अभिशाप बन रहा है, इसका एक ताजा उदाहरण मेरे क्षेत्र ज्वालामुखी विधानसभा के लुथान में मिला जहां गौशाला में लोगों द्वारा छोड़ी गई सैकड़ों गायों की मौत हो चुकी है। इस बात की पुष्टि हुई है कि इन गायों ने प्लास्टिक खायी हुई थी। अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन वल्र्ड वाइड फंड द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में प्लास्टिक का प्रदूषण 2030 तक दोगुना हो जाएगा। साइंटिस्ट्स के अनुसार समुद्र में 1950 से लेकर 2016 तक जितना प्लास्टिक जमा हुआ है, उतना प्लास्टिक केवल अगले एक दशक में जमा हो जाएगा और महासागरों में प्लास्टिक कचरा 30 करोड़ टन तक पहुंच जाएगा। ज्ञात रहे कि हर साल उत्पादित होने वाले कुल प्लास्टिक का महज 20 प्रतिशत ही रिसाइकिल हो पाता है।

39 प्रतिशत के करीब जमीन में दब जाता है जो कि जमीन को कई तरह से बंजर बनाने का काम करता है। 15 प्रतिशत के करीब प्लास्टिक जला दिया जाता है। प्लास्टिक के जलने से वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा तिगुनी हो जाएगी, जोकि ओजोन परत के लिए तो नुक्सानदायक होगी ही, साथ ही मानव में हार्ट फेलियर, दमा और कैंसर जैसे रोगों का कारण भी बनेगी। अगर हम बात करें हिमाचल प्रदेश की तो सरकार ने प्लास्टिक पर कई स्तर पर पाबंदी लगा दी है, परंतु फिर भी अभी लोग इसका प्रयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। लोग खाने-पीने जैसी चीजों को ले जाने के लिए पालिथीन से बने लिफाफों का अंधाधुंध इस्तेमाल करते हैं। बहुत बार यह भी देखने को आता है कि लोग धाम इत्यादि में खाना प्लास्टिक लिफाफे में ले जाते हैं, जो बहुत घातक है क्योंकि यदि प्लास्टिक के बैग में खाद्य पदार्थ रखा जाता है, तो वे जल्द ही खराब हो जाते हैं, साथ ही कैंसर जैसी बीमारियों को निमंत्रण देता है। हिमाचल में हर साल लाखों सैलानी घूमने आते हैं जो कि कई बार पर्यावरण का ध्यान न रखते हुए चिप्स, कुरकुरे, प्लास्टिक की बोतलें इधर-उधर फेंक देते हैं। जरूरत है कि सरकार विभिन संचार माध्यमों से सैलानियों को ईको-टूरिज्म के प्रति संवेदनशील बनाने का प्रयास करे। एक जिम्मेदार हिमाचली होने के नाते हमें भी जितना हो सके, अपने दैनिक जीवन में प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करना चाहिए।

डिस्पोजेबल ग्लास और प्लेट्स के स्थान पर टोर के पत्ते, जो कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, हमीरपुर, मंडी, बिलासपुर में पाए जाते हैं, उनसे बने पतलों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करना चाहिए। डिस्पोजेबल ग्लास, प्लेट का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे विषाक्त पदार्थों से बनी होती हैं। सरकार को स्थानीय महिलाओं, सेल्फ हेल्प ग्रुपों को इसके बारे में प्रोत्साहित करके उन्हें इस कार्य के लिए सब्सिडी पर मशीनरी प्रदान करनी चाहिए। ऐसा करने से स्थानीय महिलाओं को रोजगार भी मिल जाएगा। चाय के लिए भी मिट्टी के बने कुल्हड़ का प्रयोग किया जा सकता है, जोकि पर्यावरण की नजर से ईको फ्रेंडली और सेहत के लिए भी लाभदायक होता है। इसके अलावा सरकार को पाठ्यक्रम बनाते हुए अपनी आने वाली पीढ़ी को जागरूक करने के लिए आवश्यक रूप से पर्यावरण संरक्षण की जानकारी देनी चाहिए, क्योंकि पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा युवाओं की ही है। जितना हो सके, प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग किया जाए, सरकार यह सुनिश्चित करे।

रमेश धवाला

पूर्व मंत्री


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