इसरो का ‘ब्लैक होल’ मिशन

By: Jan 3rd, 2024 12:05 am

नए साल के पहले ही दिन, सुबह 9.10 बजे, इसरो ने ऐसा उपग्रह प्रक्षेपित किया है, जो चांद-सूरज के बाद अब ब्रह्मांड, ब्लैक होल, न्यूट्रॉन स्टार और अंतरिक्ष की एक्सरे किरणों का अध्ययन करेगा। उपग्रह अंतरिक्ष में भेजना इसरो के लिए कोई नया प्रयोग नहीं है, लेकिन ऐसा करने वाला भारत, अमरीका के बाद, दूसरा देश है, जिसने ब्रह्मांड को खंगालने, उसके अध्ययन और शोध का ऐसा प्रयोग किया है। अमरीका के नासा ने दिसंबर, 2021 में सुपरनोवा विस्फोट के अवशेषों, ब्लैक होल से निकलने वाले कणों की धाराओं का सबसे पहले अध्ययन किया था। अब भारत के इसरो ने उसके आगे का अनुसंधान करने का बीड़ा उठाया है। यह मिशन भी ‘चंद्रयान-3’ और ‘आदित्य एल-1’ के अंतरिक्ष मिशनों से कमतर नहीं है। इससे खगोल वैज्ञानिकों के लिए अंतरिक्ष के भीतरी विकिरण को जानने का एक नया आयाम खुलेगा। इतिहास की इस नई रचना पर इसरो के वैज्ञानिक शाबाश और प्रशंसा के पात्र हैं। इसरो ने अपने प्रथम एक्सरे पोलरीमीटर सैटेलाइट (एक्सपोसैट) का सफल प्रक्षेपण किया है। यह उपग्रह फोटोन और उसके ध्रुवीकरण के जरिए ब्लैक होल, न्यूट्रॉन स्टार सरीखे आकाशीय पिंडों के रहस्यों पर शोध करेगा। मनुष्य की जिज्ञासा और महत्त्वाकांक्षा कहां तक लेकर जा सकती है, यह उपग्रह उसका एक जीवंत उदाहरण है। दरअसल ब्लैक होल अंतरिक्ष में ऐसी जगह है, जहां गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक होता है कि प्रकाश भी उससे बच नहीं सकता। कहा जाता है कि इसमें कई सूर्यों के समान ऊर्जा होती है, लिहाजा उसकी चपेट में आने वाली वस्तु का अस्तित्व ही नहीं रहता।

‘ब्लैक होल’ कई अरब सालों तक जिंदा रह सकते हैं। साफ है कि नए अंतरिक्ष का यह मिशन काफी जोखिमभरा है। जब यह मिशन पांच साल की अपनी तय अवधि पूरी कर लेगा, तो उसके बाद जो निष्कर्ष सामने आएंगे, उससे स्पष्ट होगा कि हमने क्या हासिल किया? वैसे मिशन की सक्रियता के दौरान ही हमें डाटा मिलता रहेगा, जिसे भारत अन्य देशों से भी साझा करेगा। भारत अंतरिक्ष के एकाधिकार की मानसिकता वाला देश नहीं है। भारत ने एस्ट्रोसैट से प्राप्त डाटा को भी दुनिया के वैज्ञानिकों के साथ साझा किया था, ताकि वे अपनी तरह से उसका विश्लेषण कर सकें। जिस ब्रह्मांड और तारों की दुनिया को हम अपनी मिथकीय कल्पनाओं में संजोए हुए थे, अब उनका भी अध्ययन किया जा सकेगा, यही एक अनूठा रहस्योद्घाटन है। बताया गया है कि इसरो का ‘आदित्य एल-1’ मिशन भी इसी 6 जनवरी को अपने निश्चित बिंदु पर पहुंच जाएगा, जहां से वह सूर्य और उसके संसार का अध्ययन करेगा। यह 2024 का साल ‘गगनयान मिशन’ का भी वर्ष है, जब पहली बार अंतरिक्ष मिशन में एक जीवित इनसान को भेजा जाएगा और वह सकुशल लौट कर भी आएगा। बेशक ये भारत और इसरो की विराट, आसमानी उपलब्धियां हैं। अभी तक टेलीविजन प्रसारण, जीपीएस सेवा, मौसम के अध्ययन और पूर्वानुमान, सीमाओं की निगरानी, शहरों-कस्बों-गांवों-फसलों और नदियों, नहरों का हाल जानने के लिए उपग्रहों का इस्तेमाल किया जाता था, लिहाजा उन्हीं से संबंधित उपग्रह भी प्रक्षेपित किए जाते थे, लेकिन एक्सपोसैट इन सबसे अलग, एक भिन्न लक्ष्य के मद्देनजर, प्रक्षेपित किया गया उपग्रह है। दरअसल यह प्रयोग 1996 में ही शुरू किया गया था, जिसे ‘भारतीय एक्सरे एस्ट्रोनॉमी’ प्रयोग कहा गया था। इसी कड़ी में 2004 में ‘एस्ट्रोसैट’ नामक उपग्रह के प्रक्षेपण की योजना बनाई गई थी, लेकिन उपग्रह 2015 में छोड़ा गया। ‘एक्सपोसैट’ अंतरिक्ष और ब्रह्मांड के अध्ययन की ताजा कड़ी है, जो अंतरिक्ष में भारत की बहुत ऊंची छलांग है। अब अंतरिक्ष में मंडराते खतरों के बारे में हमारी समझ बढ़ेगी।


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