शौर्य की बुलंदी पर वीरभूमि का सैन्य पराक्रम

By: Jan 13th, 2024 12:06 am

पहाड़ के सीने पर सजे ये आलातरीन सैन्य पदक मैदाने जंग में वीरभूमि के सैन्य पराक्रम की तस्दीक करते हैं, मगर इसके बावजूद शौर्य का धरातल सेना में अपने नाम की शिनाख्त ‘हिमाचल रेजिमेंट’ को एक मुद्दत से मोहताज है…

हिमाचल प्रदेश के रणबांकुरों के शौर्य पराक्रम का उल्लेख महाभारत युद्ध में भी हुआ है। लिहाजा सैन्य सम्मान ‘वीरभूमि’ राज्य के नाम प्राचीन से दर्ज है। जम्मू-कश्मीर की डोगरा सल्तनत के हिमाचली जरनैल जोरावर सिंह कहलूरिया ने जम्मू-कश्मीर रियासत की हदूद को बाल्टिस्तान, गिलगित, हुंजा, स्कर्दू से लेकर लद्दाख व तिब्बत के महाज तक विस्तार देकर अपनी शूरवीरता का एक विशाल शिलालेख लिख दिया था। कई सैन्य अभियानों में हिमाचल के सैनिकों की बहादुरी से प्रभावित होकर अंग्रेजों ने 37, 38 व 41वीं डोगरा बटालियनों का गठन किया था। उन तीन यूनिटों से ही ‘डोगरा रेजिमेंट’ की बुनियाद पड़ी थी। सन् 1890 के दशक में भारत के पश्चिमी क्षेत्र यानी वर्तमान में पाकिस्तान का ऐबटाबाद, हुंजा व चित्राल क्षेत्र कबायली लड़ाकों के भयंकर विद्रोह से अशांत हो चुके थे। हिमाचली शूरवीर मे. ज. ‘निहाल सिंह पठानिया’ 1853-1926 जम्मू-कश्मीर रियासत की सेना के कमांडर थे। निहाल सिंह पठानिया ने सन् 1891 में ‘हुंजा’ रियासत में एक कबायली किलेबंदी को ध्वस्त करने के लिए चलाए गए सैन्य अभियान ‘ब्लैक माऊंटेन’ में अहम भूमिका निभाई थी।

उसी सैन्य ऑपरेशन में 37वीं डोगरा के सैनिकों ने कबायली लश्कर को खामोश करके अदम्य साहस का परिचय दिया था। सन् 1895 में ‘चित्राल’ के हुक्मरान ‘उमरा खान’ ने अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ बगावत का ऐलान कर दिया था। चित्राल की उस भयंकर लड़ाई में 37 डोगरा यूनिट के जवानों ने कबायली लश्कर को शिकस्त देकर चित्राल, मोरा व शाहकोट क्षेत्रों पर कब्जा करके अपने शौर्य का लोहा मनवाया था। आपरेशन में डोगरा सैनिकों की जांबाजी से प्रभावित होकर अंग्रेज हुकूमत ने 37 डोगरा यूनिट को ‘बैटल ऑनर’ ‘चित्राल’ से नवाजा था। सन् 1897 में पेशावर के नजदीक ‘शबकदर’ किले की भीषण जंग में अफरीदी कबायलियों के विद्रोह को भी 37 डोगरा के शूरवीरों ने ध्वस्त किया था। सन् 1893 में बर्तानिया हुकूमत के राजनयिक ‘हेनरी मार्टिमर डूरंड’ ने अफगानिस्तान के हुक्मरान ‘अमीर अब्दुल रहमान’ को ‘डूरंड रेखा’ को सीमा रेखा मानने पर राजी कर लिया था। उस फैसले से खफा होकर पठानों ने वजीरिस्तान में बगावत को अंजाम देकर ब्रिटिश छावनी ‘वाना’ पर हमला करके कई सैनिकों को हलाक कर दिया था। अंग्रेज सैन्य अधिकारी ‘टर्नर’ की कयादत में ‘38 डोगरा’ बटालियन के जांबाजों ने वजीरिस्तान में पठानों की उस मंसूबाबंदी को नेस्तनाबूद करने में अहम भूमिका निभाई थी। सन् 1897 में ‘मलाकंद’ में मोहमंद व पशतून आदिवासियों द्वारा अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ किए गए विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटिश सैन्य कमांडर ‘विलियम होप निकलेजॉन’ के नेतृत्व में मलाकंद में एक बड़ा सैन्य मिशन चलाया गया था। ब्रिटेन के प्रधानंमत्री रहे ‘विंस्टन चर्चिल’ भी सैन्य अधिकारी के रूप में मलाकंद के उस सैन्य अभियान में शामिल थे। पश्तून विद्रोह को शांत करने में डोगरा सैनिकों की बहादुरी से प्रभावित होकर अंग्रेज हुकूमत ने 38 डोगरा बटालियन को ‘युद्ध सम्मान’ ‘मलाकंद’ से नवाजा था। सन् 1914 में पहली जंगे अजीम का आगाज हुआ था। सितंबर 1914 में हिमाचली शूरवीरों से सुसज्जित ‘41 डोगरा’ बटालियन यूरोप के ‘मार्सेल्स’ युद्धक्षेत्र में पहुंच गई थी। मार्सेल्स के रण में डोगरा सैनिकों ने जर्मन सेना की तजवीज को ध्वस्त कर दिया था।

दिसंबर 1915 में 37 व 41 दोनों यूनिटें ‘मैसोपोटामिया’ में पहुंची। मैसोपोटामिया के महाज पर डोगरा सैनिकों ने जोरदार हमला करके तुर्क सेना की पेशकदमी को नाकाम कर दिया था। स्मरण रहे प्रथम विश्व युद्ध में 37 व 41 डोगरा यूनिटों का मुकाबला उम्दा हथियारों से लैस जर्मन व तुर्की की सेनाओं से हुआ था। सैंकड़ों डोगरा सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए, मगर मैदाने जंग में दुश्मन को पीठ नहीं दिखाई। जनवरी 1916 में बगदाद के नजदीक ‘शेखसाद’ के अग्रिम मोर्चे पर जंग लड़ रही 37 डोगरा बटालियन में बिलासपुर के बड़ागांव निवासी ‘भाग सिंह चंदेल’ सूबेदार मेजर के पद पर तैनात थे। शेखसाद की शदीद जंग में भाग सिंह चंदेल जख्मी हो गए थे, मगर तुर्कों पर हमले में अपने सैनिकों का वीरता से नेतृत्व करते रहे। प्रथम विश्व युद्ध में साहस व उत्कृष्ट सैन्य नेतृत्व के लिए अंग्रेज हुकूमत ने ‘भाग सिंह चंदेल’ को ‘इंडियन आर्डर ऑफ मेरिट’ के मेडल तथा ‘बहादुर’ की उपाधि से अलंकृत किया था। मैसोपोटामिया के मोर्चे पर 21 जनवरी 1916 को ‘अल हना’ की जंग में निर्भिक सैन्य निष्ठा का परिचय देने वाले ‘41 डोगरा’ के हिमाचली शूरवीर नायक ‘लाला राम’ को ब्रिटिश हुकूमत ने अपने सर्वोच्च सैन्य पदक ‘विक्टोरिया क्रॉस’ से नवाजा था। प्रथम विश्व युद्ध में कुल नौ भारतीय सैनिक विक्टोरिया क्रॉस विजेता थे, जिनमें हिमाचल के प्रथम विक्टोरिया क्रॉस जमादार लाला राम भी शामिल थे। जम्मू-कश्मीर रियासत की सेना के अधिकारी रहे हिमाचली सपूत मे. ज. ‘जनक सिंह कटोच’ तथा ‘रघबीर सिंह पठानिया’ को भी पहली जंगे अजीम में दास्तान-ए-शुजात के लिए अंग्रेज हुकूमत ने ‘इंडियन आर्डर ऑफ मैरिट’ के मेडल से अलंकृत किया था।

यह जिक्र करना लाजिमी है कि अंग्रेज लेखक ‘फिलिप मेसन’ ने अपनी किताब ‘ए मैटर ऑफ ऑनर’ में पहली जंगे अजीम में विदेशी धरती पर बहादुरी का अफसाना लिखने वाले डोगरा रेजिमेंट के सैनिकों की शूरवीरता को पूरी तफसील से बयान किया था। बहरहाल महाभारत युद्ध से लेकर दो विश्व युद्ध, आजाद हिंद फौज व देश के लिए पांच बड़े युद्ध तथा अन्य सैन्य अभियानों में प्रदेश के रणबांकुरों ने अपनी शूरवीरता के कई मजमून लिखे हैं। जंगे अजीम में दो विक्टोरिया क्रॉस, मिलिट्री क्रॉस, जार्ज क्रॉस तथा आजादी के बाद चार परमवीर चक्र, तेरह महावीर चक्र व तीन अशोक चक्र पहाड़ के सीने पर सजे ये आलातरीन सैन्य पदक मैदाने जंग में वीरभूमि के सैन्य पराक्रम की तस्दीक करते हैं, मगर इसके बावजूद शौर्य का धरातल सेना में अपने नाम की शिनाख्त ‘हिमाचल रेजिमेंट’ को एक मुद्दत से मोहताज है। मुल्क के हुक्मरान इस मुद्दे पर तवज्जो फरमाएं। सेना को ‘आर्मी डे’ की बहुत-बहुत शुभ कामनाएं।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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