राष्ट्रीय युवा दिवस विशेष : राष्ट्र के विकास की नींव है युवा

By: Jan 11th, 2024 12:04 am

आवश्यकता है कि दूरगामी सोच वाले युवाओं को राजनीति में लाकर उन्हें संसद एवं विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व दिया जाए, ताकि नवीन एवं समृद्ध भारत के निर्माण में उनकी प्रतिभा एवं सामथ्र्य का समुचित उपयोग हो सके। एक समर्थ, सबल, सक्षम, सशक्त, स्वाभिमानी और शक्तिशाली भारत के निर्माण के लिए हमें अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति से ऊपर उठकर युवाओं को उचित मंच प्रदान करने की जरूरत है, तभी राष्ट्र निर्माण में युवा भागीदारी का मंत्र सार्थक सिद्ध होगा…

भारत के महान दार्शनिक, विचारक, युवाओं के आदर्श एवं कर्मयोगी राष्ट्र संत स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था और इनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने के पीछे मुख्य कारण उनका दर्शन, सिद्धांत, अलौकिक विचार और उनके आदर्श हैं, जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया और भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी उन्हें स्थापित किया। महोत्सव का उद्देश्य, युवाओं के बीच राष्ट्रीय एकता के विचार, सामान्य एकता, भाईचारे, बहादुरी और साहस की भावना को बढ़ावा देना है। नेल्सन मंडेला की एक खूबसूरत कहावत है कि, ‘आज के युवा कल के नेता हैं’, और युवावस्था एक व्यक्ति के जीवन में वह मंच है जो सीखने की कई क्षमताओं और प्रदर्शन के साथ भरा हुआ है। भारत सरकार ने 1984 में उनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी। कल भारत सहित संपूर्ण विश्व में स्वामी विवेकानंद की जयंती पर कई कार्यक्रमों का आयोजन कर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाएगी। उन्होंने 1893 में शिकागो धर्म संसद में भी भाग लिया था।

स्वामी जी प्रबल देशभक्त, महान द्रष्टा, सच्चे राष्ट्र संत और कई धर्मग्रंथों, दर्शन, साहित्य, वेद व पुराणों के ज्ञाता थे। स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने का उद्देश्य भारतवर्ष की भावी पीढिय़ों का चरित्र निर्माण करते हुए उनमें उच्च आदर्शों पर चलने की भावना का संचार करना रहा है। स्वामी विवेकानंद जी की भी उत्कट अभिलाषा थी कि युवाओं को अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलकर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए और भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए उनमें निहित अनंत ऊर्जा का उपयोग देशहित में होना चाहिए। इस वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस की थीम ‘वैश्विक सद्भाव के लिए युवा’ (यूथ फॉर ग्लोबल हारमॉनी) रखी गई है। आशानुरूप विवेकानंद के सार्वभौमिक भाईचारे के दृष्टिकोण पर आधारित, यह विषय संस्कृतियों और सीमाओं के पार शांति, सहिष्णुता और समझ को बढ़ावा देने और एक अधिक सामंजस्यपूर्ण वैश्विक समाज को बढ़ावा देने में युवाओं की भूमिका को उजागर कर सकता है। विश्व का वर्तमान परिदृश्य बीते 100 वर्षों में अभूतपूर्व रूप से परिवर्तित हो चुका है। हमारी आज की युवा पीढ़ी शिक्षा से प्राप्त ताकत के चलते सफलता की नई ऊंचाइयों पर पहुंच चुकी है। पिछले 2-3 दशकों में इस देश में बहुत कुछ बदला है। आर्थिक मोर्चे पर बदलाव एवं पाश्चात्य देशों की तर्ज पर ब्रांड संस्कृति तथा विकास की बयार भारत में भी द्रुत गति से बह रही है। इस नए चलन और परिपाटी से हमारा मध्यमवर्गीय युवा मन भी प्रभावित हुआ है।

उसकी इच्छाओं, अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को भी पंख लगे हैं। आज बड़ी संख्या में हमारी युवा पीढ़ी दूसरे राज्यों और विदेशों में पढऩे और रोजगार हेतु जा रही है। बड़े शहरों की चकाचौंध वाली जीवनशैली और ‘मॉल कल्चर’ उसे लुभाती है। वहीं दूसरी तरफ मध्यमवर्गीय परिवारों के अभिभावकों के समक्ष अपनी संतानों को पढ़ा-लिखाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने की चुनौती है, तो युवा भी उच्च शिक्षा ग्रहण कर लुभावने पैकेज के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। हमारा युवा आज की शिक्षा व्यवस्था की दशा और दुर्दशा को लेकर भी चिंतित और परेशान है क्योंकि एक राष्ट्र के भीतर अनेक प्रकार की शिक्षा प्रणालियां प्रचलन में हैं। एक तरफ स्कूलों तथा कॉलेजों में अध्यापकों की कमी है तो वहीं युवा डिग्री हाथ में होने के बावजूद बेरोजगार घूम रहा है। हमारा निजी और सरकारी तंत्र युवाओं को उनकी योग्यता के विपरीत बेहद कम वेतन देकर उनकी योग्यता का शोषण कर रहा है। भारत में युवाओं की संख्या विश्व के अन्य देशों के मुकाबले में ज्यादा है। यहां की 65 फीसदी आबादी 35 वर्ष से कम है, अर्थात युवा है। वर्तमान में भारत में 12 करोड़ से ज्यादा युवा बेरोजगार हैं। बेरोजगारों में 25 प्रतिशत 20 से 24 साल के आयु वर्ग के हैं, तो वहीं 25 से 29 वर्ष की उम्र वाले युवाओं की तादाद 17 फीसदी है। आज जिस बड़े अनुपात में युवा शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, उस अनुपात में निजी एवं सरकारी क्षेत्रों में नौकरियां नहीं बढ़ रही हैं। इन हालात में हताश बेरोजगार युवाओं के अपराध एवं नशाखोरी के मार्ग पर चल पडऩे की आशंका भी रहती है, इस पर भी विचार करने की जरूरत है। स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद् के एक मंत्र का उल्लेख किया था, ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’, अर्थात उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि अपने लक्ष्य पर न पहुंच जाओ। यह वक्त का तकाजा है कि हमारे नीति नियंता और सरकारें युवा मनों को टटोलें, उनके विचारों को सुनें और राष्ट्र निर्माण में उनकी सशक्त भागीदारी की व्यवस्था को सुनिश्चित बनाएं।

आज की युवा पीढ़ी जाति, धर्म, आरक्षण और क्षेत्रवाद एवं वंशवाद की राजनीति से ऊपर उठकर बेरोजगारी, भ्रष्टाचार विरोधी पारदर्शी न्याय व्यवस्था और विकासात्मक मुद्दों पर विश्वास करती है। हमारा युवा वर्तमान सिस्टम में बदलाव का इच्छुक है। कमजोर को सामथ्र्यशाली बनाकर ही हम समाज में समरसता, समानता एवं बंधुत्व की भावना पैदा कर सकते हैं। आवश्यकता है कि दूरगामी सोच वाले युवाओं को राजनीति में लाकर उन्हें संसद एवं विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व दिया जाए, ताकि नवीन एवं समृद्ध भारत के निर्माण में उनकी प्रतिभा एवं सामथ्र्य का समुचित उपयोग हो सके। एक समर्थ, सबल, सक्षम, सशक्त, स्वाभिमानी और शक्तिशाली भारत के निर्माण के लिए हमें अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति से ऊपर उठकर युवाओं को उचित मंच प्रदान करने की जरूरत है, तभी राष्ट्र निर्माण में युवा भागीदारी का मंत्र सार्थक सिद्ध हो सकेगा।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


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