नेताजी अभी ध्यानमग्न हैं…

By: Jan 6th, 2024 12:05 am

ईडी अपने काम पर लगी है। नेताजी अपने काम पर लगे हैं। सरकार अपने काम पर लगी है और सीबीआई अपने काम पर लगी है। किसी को ऊपर से निर्देश हैं। किसी को नीचे से निर्देश हैं। पूरे देश में सब कुछ ऊपर नीचे हो रहा है। ईडी वाले नेताजी को नोटिस भेज कर अपने पास बुला रहे हैं और नेताजी कह रहे हैं कि उन्हें अभी कुछ दिन ध्यानमग्न रहना है, इसलिए कोई उनके ध्यान में खलल नहीं डालेगा। अब नेताजी ध्यान लगाकर कहां ध्यान लगा रहे हैं, यह सीबीआई की जांच का विषय हो सकता है। ईडी इस तरह की जांच नहीं करती। उसे इस तरह का कोई एक्सपीरियंस नहीं है। सीबीआई को इस बारे एक्सपीरियंस है। उसके इस एक्सपीरियंस के आगे मुल्क नतमस्तक है। इंडिया को इस बात का गर्व है कि उसके पास सीबीआई है और सीबीआई को इस बात का गर्व है कि उसके ऊपर तक लिंक जुड़े हुए हैं। ईश्वर परेशान हैं कि उसके अस्तित्व को सीबीआई निगल रही है और वह सत्ता के आगे नतमस्तक हो रही है। ईश्वर की सत्ता को चुनौती दे रही है। जैसे ध्यान लगाने वाले नेताजी ईडी की पावर को चुनौती दे रहे हैं। यह ईडी की पावर है कि उसने जिस जिस को समन भेज कर बुलाया है, उसे सीधा अंदर ठोक दिया है। ईडी के हाथ बड़े लंबे हैं। उसकी तुलना मैं न चाहते हुए भी अपनी पत्नी से कर सकता हूं। उसके हाथ भी बहुत लंबे हैं। ईडी और सीबीआई की तरह मेरी पत्नी की महिमा भी अपरंपार है। मेरी कोई भी हरकत उससे छिपी हुई नहीं है। गाहे बगाहे मुझे आत्मसमर्पण की मुद्रा में खड़ी कर देती है। मैं उसे ईडी और सीबीआई के नाम पर डरा भी नहीं सकता।

मैं उसे गच्चा देने के लिए ध्यान भी नहीं लगा सकता। उसका ध्यान मेरे पर रहता है और मेरा ध्यान भंग हो जाता है। जैसे मेनका ने ऋषि विश्वामित्र का ध्यान भंग कर दिया था। विश्वामित्र को लेकर मेरे मन में बहुत सॉफ्ट कॉर्नर है। लेकिन मेरी पत्नी के मन में ईडी और सीबीआई को लेकर बहुत सॉफ्ट कॉर्नर है। मैं दुविधा में हूं…काके लागूं पाए…खैर…। मैं अपने दिल को समझा रहा हूं कि हर पत्नी ईडी और सीबीआई की तरह होती है…उससे बहुत डिप्लोमेटिक तरीके से पेश आना चाहिए। दोनों का मुस्कुरा कर स्वागत करना चाहिए। मुस्कुराने से कई समस्याएं हल हो जाती हैं। यह एक्सपीरियंस मुझे कॉलेज के दिनों में हुआ था जब किसी ने मुस्कुरा कर मुझे हेलो कहा था और मैं उसका हो लिया था। जिसका तब मैं हो लिया था, उसकी निगाहें कभी सीबीआई और ईडी की तरह परम रडार युक्त हो सकती हैं, यह मैंने तब सोचा नहीं था। लेकिन अब सोचने का क्या फायदा। अब पछताए क्या होत, जब चिडिय़ा चुग गई खेत। बुजुर्गों ने कहा है कि जब मुसीबत आन पड़े तो ध्यान लगाइए। कोई कुर्सी पर बैठा बैठा ईश्वर का ध्यान लगा रहा है तो कोई बिस्तर पर लेटा लेटा ध्यान लगा रहा है। कोई ध्यान लगाने के लिए विशेष रूप से बनाए गए किसी तपोवन में चला गया है। कुर्सी और बिस्तर पर तो सीबीआई और ईडी कभी भी धमक सकती है, लेकिन तपोवन का ताप इतना प्रभावी होता है कि वहां ध्यान लगा रहे व्यक्ति पर ईडी और सीबीआई की पावर नहीं चलती।

वहां सिर्फ ध्यान की शक्ति चलती है। इसलिए नेताजी ध्यान लगा कर बैठ गए हैं और सीबीआई उस तपोवन के बाहर अपने आकाओं के निर्देश का इंतजार करने बैठ गई है। अब नेताजी किस बात का ध्यान लगा रहे हैं, पूरे देश में इस बात की चर्चा है। लोग महंगाई की चपत भूल गए हैं। भ्रष्टाचार के थपेड़े भूल गए हैं। राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र भूल गए हैं। बेरोजगारी भूल गए हैं। उनका ध्यान सिर्फ और सिर्फ नेताजी के ध्यान पर है। पब्लिक को उम्मीद है कि नेताजी ध्यान से हटेंगे तो उनकी समस्याओं पर भी ध्यान देंगे। लेकिन दूसरी तरफ सीबीआई और ईडी जैसी सर्वशक्तिमान एजेंसियां इस ताक में बैठी हैं कि कब नेताजी का ध्यान भंग हो और कब उनकी पावर का जलवा शुरू हो। अब जंग ध्यान और पावर के बीच लग गई है। पब्लिक कंफ्यूज है। पब्लिक को समझ नहीं आ रहा है कि वह नेताजी के ध्यान पर ध्यान लगाए या सीबीआई के नोटिस पर ध्यान लगाए। यही तो ध्यान की महिमा है और यह महिमा अपरंपार है।

गुरमीत बेदी

साहित्यकार


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