गरीबी घटी, पर उत्सव का सफर बाकी

युवाओं के लिए रोजगार के मौके जुटाने के लिए डिजिटल शिक्षा के रास्ते में दिखाई दे रही कमियों को दूर करना होगा, वहीं उन्हें कौशल प्रशिक्षण के साथ नए स्किल्स सिखाए जाने होंगे…

हाल ही में 15 जनवरी को नीति आयोग की तरफ से वैश्विक मान्यता के मापदंडों पर आधारित बहुआयामी गरीबी इंडेक्स (एमपीआई) पर दस्तावेज जारी किया गया है। इस इंडेक्स को निकालने के लिए बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं वित्तीय समावेशन जैसी सुविधाओं पर आधारित 12 विभिन्न मानकों-पोषक तत्व, बच्चे की मृत्यु दर, माताओं के स्वास्थ्य, बच्चों के स्कूल जाने की उम्र, स्कूल में उनकी उपस्थिति, रसोई ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, बिजली, आवास, संपदा व बैंक खातों को शामिल किया गया है। इस दस्तावेज के मुताबिक सरकार की विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं की बहुआयामी गरीबी कम करने में अहम भूमिका रही है। वित्त वर्ष 2013-14 में देश की 29.17 प्रतिशत आबादी एमपीआई के हिसाब से गरीब थी। अब वित्त वर्ष 2022-23 में सिर्फ 11.28 प्रतिशत लोग एमपीआई के हिसाब से गरीब रह गए हैं। इन नौ सालों में 17.89 प्रतिशत लोग यानी करीब 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आए हैं। विश्व बैंक ने दिन में 180 रुपए से कम कमाने वालों को गरीबी रेखा से नीचे माना है। गौरतलब है कि नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरप्रदेश में पिछले नौ सालों में 5.94 करोड़, बिहार में 3.77 करोड़, मध्यप्रदेश में 2.30 करोड़ तो राजस्थान में 1.87 करोड़ लोग एमपीआई मानकों के हिसाब से गरीबी से मुक्त हुए हंै।

इस हिसाब से अब लगभग 15 करोड़ लोग एमपीआई मानक से जुड़ी सुविधाओं से वंचित रह गए हैं। ऐसे लोगों की संख्या बिहार में सबसे ज्यादा 26.59 फीसदी, झारखंड में 23.34 फीसदी, उत्तरप्रदेश में 17.40 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 11.71 फीसदी, राजस्थान में 10.77 फीसदी, तेलंगाना में 3.76 फीसदी, हिमाचल में 1.88 फीसदी, तमिलनाडु में 1.48 फीसदी, केरल में 0.48 फीसदी है। इन सबके सामने अभी भी बहुआयामी गरीबी से बाहर आने की चुनौती बनी हुई है। सरकार ने 2030 तक देश के ऐसे सभी नागरिकों को बहुआयामी गरीबी से बाहर करने का लक्ष्य रखा है। उल्लेखनीय है कि नीति आयोग के दस्तावेज के मुताबिक सरकार की तरफ से चलाए जाने वाले पोषण अभियान व एनीमिया मुक्त भारत अभियान से स्वास्थ्य सुविधा को बढ़ाने में मदद मिली है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज, स्वच्छ ईंधन के लिए उज्ज्वला योजना, सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य योजना, पेयजल सुविधा के लिए जल जीवन मिशन व जन-धन खाते की सुविधा आदि से लोगों को गरीबी से ऊपर लाने में खासी मदद मिली है। खासतौर से गरीबों के सशक्तिकरण में करीब 51 करोड़ से अधिक जनधन खातों (जे), करीब 134 करोड़ आधार कार्ड (ए) तथा करीब 118 करोड़ से अधिक मोबाइल उपभोक्ताओं (एम) की शक्ति वाले जैम से सुगठित बेमिसाल डिजिटल ढांचे की असाधारण भूमिका रही है। इसी शक्ति के बल पर देश के गरीब लोगों के खातों में सीधे आर्थिक राहत हस्तांतरित हो रही है। इसके साथ-साथ वर्ष 2020 से गरीबों व कमजोर वर्ग के 80 करोड़ से अधिक लोगों को निशुल्क खाद्यान्न वितरण ने भी गरीबों के सशक्तिकरण में अहम भूमिका निभाई है। ज्ञातव्य है कि सरकार के द्वारा पीएमजीकेएवाई के तहत गरीबों को इस माह जनवरी 2024 से आगामी पांच वर्षों यानी 2028 तक मुफ्त अनाज देने के सिलसिले को जारी रखने की मंजूरी दी गई है।

इस परिप्रेक्ष्य में यहां विगत 6 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट भी उल्लेखनीय है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गरीबी 2015-2016 के मुकाबले 2019-2021 के दौरान 25 फीसदी से घटकर 15 फीसदी आ गई है। एशिया पेसेफिक ह्यूमन डेवलेपमेंट रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2000 में जहां करीब 37 हजार रुपए थी, वहीं वर्ष 2022 में बढक़र करीब 2 लाख रुपए हो गई है। यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष सहित दुनिया के विभिन्न सामाजिक सुरक्षा के वैश्विक संगठनों के द्वारा भारत में बहुआयामी गरीबी घटाने में भारत में लागू की खाद्य सुरक्षा की जोरदार सराहना की गई है। आईएमएफ के द्वारा प्रकाशित रिसर्च पेपर में कहा गया है कि सरकार के प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है और इससे अत्यधिक गरीबी में भी कमी आई है। वस्तुत: खाद्यान्न के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचे सुरक्षित खाद्यान्न भंडारों के कारण ही देश के 80 करोड़ लोगों को लगातार मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध होने के कारण वे गरीबी के दलदल में फंसने से बचाया जा सका। यद्यपि देश में एक ओर गरीबों के कल्याण के लिए लागू की गई विभिन्न सरकारी योजनाएं मसलन सामुदायिक रसोई, वन नेशन वन राशन कार्ड, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, पोषण अभियान, समग्र शिक्षा आदि से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी के स्तर में कमी लाने और स्वास्थ्य व भुखमरी की चुनौती को कम करने में सहायता मिली है। लेकिन अभी भी बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे करीब 15 करोड़ से अधिक गरीबों को सरकार के लक्ष्य के मुताबिक वर्ष 2030 तक गरीबी से बाहर लाने के लिए बहुआयामी गरीबी कम करने से संबंधित विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन की दिशा में अभी बहुत अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत बनी हुई है। हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि यद्यपि गरीबों के सशक्तिकरण के साथ देश में प्रतिव्यक्ति आय भी बढ़ी है, लेकिन अभी भी भारत दुनिया के उन प्रमुख 10 देशों में शामिल है, जहां बीते 20 वर्षों में लोगों की आय में असमान इजाफा हुआ है। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि गरीब लोगों को मुफ्त अनाज के साथ उनके जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए भी अधिक प्रयास करने होंगे। इतना ही नहीं, देश की तेजी से बढ़ती आबादी के तहत गरीब वर्ग की नई आबादी की खाद्य सुरक्षा के लिए अधिक खाद्यान्न उत्पादन के रणनीतिक प्रयत्न भी जरूरी होंगे।

इस बात पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि जनकल्याण के मद्देनजर लोगों को रेवडिय़ां बांटने जैसा अभियान आगे नहीं बढ़ें। ऐसी लोक लुभावन योजनाएं ही आगे बढ़ाएं जानी होंगी जो गरीबी से लड़ाई में सहायक बन सकें और जो गरीब लोगों को उनकी आय बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकें। निश्चित रूप से नीति आयोग के द्वारा जारी बहुआयामी गरीबी में कमी प्रस्तुत करता हुआ इंडेक्स अभी भी उत्सव मनाने लायक परिदृश्य नहीं है। भारत को अभी भी निम्न आय वाला देश माना जाता है। विभिन्न वर्गों की प्रति व्यक्ति आय में संतुलित वृद्धि से अधिक लोग गरीबी के दायरे से बाहर आएंगे और उनका जीवन बेहतर होगा। इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि विकास की प्रक्रिया और गरीबी उन्मूलन में देश के कुछ प्रदेश बहुत पीछे छूट गए हैं। इन राज्यों के समावेशी विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना होगा। इसके साथ-साथ सरकारी व्यय को भी नए सिरे से न्यायसंगतता के मद्देनजर मूल्यांकित करते हुए इस बात पर ध्यान देना होगा कि क्या अभी भी उन लोगों को भी एक समान राहत और नकद हस्तांतरण किया जाए जो बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आ चुके हैं। चूंकि कोविड-19 के बाद बहुआयामी गरीबी को दूर करने के लिए इस वर्ग के युवाओं में डिजिटल शिक्षा की जरूरत बढ़ गई है और इसकी अहमियत रोजगार में भी बढ़ गई है, ऐसे में गरीब एवं कमजोर वर्ग के युवाओं के लिए रोजगार के मौके जुटाने के लिए एक ओर सरकार के द्वारा डिजिटल शिक्षा के रास्ते में दिखाई दे रही कमियों को दूर करना होगा, वहीं दूसरी ओर उन्हें कौशल प्रशिक्षण के साथ नए स्किल्स सिखाए जाने होंगे। ऐसे विभिन्न रणनीतिक प्रयासों से जहां देश में बहुआयामी गरीबी में और कमी लाई जा सकेगी, वहीं आय असमानता को कम करने में भी मदद मिल सकेगी।

डा. जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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