देवधरा पर रघुनाथ जी का आगमन

By: Jan 20th, 2024 12:26 am

संपूर्ण देशवासियों को उन ऐतिहासिक पलों का बेसब्री से इंतजार है, जब रामलला 493 वर्षों उपरांत पुरातन व आधुनिक शैली से निर्मित भव्य एवं दिव्य मंदिर में विराजमान होंगे। हिमालय का संबंध पौराणिक काल से ऋषि-मुनियों, साधकों के साथ रहा है। यहां के पर्व, उत्सव और त्योहार जनमानस की सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना से जुड़े हैं। शिव और शक्ति के इस प्रदेश में असंख्य देव स्थान हैं। शिव पर्वत कंदराओं व हिम शिखरों पर वास करते हैं। इस सबके मध्य हिमाचल के इन क्षेत्रों में वैष्णव मत का भी प्रादुर्भाव हुआ। हिमाचल प्रदेश में कुछ स्थान, देवालयों का संबंध अवधपुरी से माना जाता है।

जाखू मंदिर- प्रदेश की राजधानी श्यामला वर्तमान शिमला में जाखू पर्वत, लोक विश्वास में जाखू अथवा यक्षों का निवास स्थान रहा है। जाखू पर्वत पर रहने वाले यक्ष का उद्धार रामभक्त हनुमान के चरण कमलों द्वारा उस समय हुआ बताते हैं जब राम-रावण युद्ध में लक्ष्मण मूर्छा के उपरांत हनुमान लंका से हिमालय में संजीवनी बूटी लेने आए थे। उन्होंने यहां जाखू ऋषि से आगे का रास्ता पूछा। जाखू ऋषि ने हनुमान जी को रास्ता बताया और यात्रा वापसी पर यहीं से होकर आने का अनुरोध किया। समय अभाव के कारण वे यहां नहीं आए। बाद में जब उन्हें अपने दिए गए वचन का ख्याल आया, तो उन्होंने प्रतिमा के रूप में यहां उपस्थिति दी। जाखू ऋषि के नाम पर इस पहाड़ी का नाम जाखू पहाड़ी व जाखू मंदिर पड़ा। त्रेतायुग से यहां मंदिर स्थित है। प्रारंभ में यहां एक काष्ठ का छोटा सा मंदिर हुआ करता था, जिसकी ढलवां छत पर पत्थर की स्लेटें लगी होती थी। लेकिन समय के साथ यहां का स्वरूप बिलकुल बदल गया है। कुछ वर्ष पूर्व यहां भगवान हनुमान की आदमकद प्रतिमा भी स्थापित की गई है। सोलन जिले के कसौली में स्थित हनुमान मंदिर का संबंध भी हनुमान के संजीवनी बूटी लाने से जोड़ा जाता है।

अयोध्या व कुल्लू का रिश्ता- 17वीं शताब्दी में देवों में शिरोमणि रघुनाथ जी के कुल्लू जनपद में आगमन से पूर्व यहां शैव संस्कृति का बोलबाला था। शैव संप्रदाय में भी नाथ ही राजाओं के गुरु थे। 17वीं शताब्दी में घाटी में एकाएक परिवर्तन हुआ। एक कथा के अनुसार पार्वती घाटी में टिपरी मड़ौली गांव के ब्राह्मण दुर्गादत्त की किसी व्यक्ति ने तत्कालीन राजा से शिकायत कर दी कि उसके पास एक पाथा (लगभग एक किलो) सुच्चे मोती हैं। ब्राह्मण के पास मोती तो थे नहीं, ब्राह्मण कैसे विश्वास दिलाता कि यह सब झूठ है। राजा के डर से घबराए ब्राह्मण ने परिवार सहित घर में आग लगा कर आत्मदाह कर लिया। सेवादारों ने यह दृश्य अपनी आंखों से देखा और राजा को संपूर्ण वृत्तांत सुनाया। राजा जब भी भोजन करने लगता, उसे कीड़े दिखने लगते। जल पीने लगता तो लहू नजर आता। राजा को ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। ब्रह्म हत्या से छुटकारा पाने के लिए वह नग्गर में बाबा किशनदास पौहारी की शरण में पहुंचे। बाबा ने उपाय बताया, यदि राजा अयोध्या से रघुनाथ जी की मूर्ति लाकर यहां स्थापित करे और सेवक बनकर रहे, तभी पाप का प्रायश्चित हो सकता है। बाबा ने अपना चेला दामोदर जो सुकेत के पास रहता था, को यह कार्य सौंपा। दामोदर अवध जा पहुंचा। वहां पंडितों का चेला बना और एक दिन मौका पाकर वह मूर्ति को ले भागा और राजधानी पहुंच गया। राजा ने अपना राज्य रघुनाथ जी को सौंप दिया और स्वयं उनका मुख्य सेवक बन गया, तदोपरांत राजा रोगमुक्त हुआ। रघुनाथ जी के घाटी पधारने पर प्रजा में वैष्णव धर्म का प्रचार हुआ और दशहरे पर्व का प्रादुर्भाव हुआ। दशहरे के साथ साथ जल-विहार, वन-विहार, बसंत पंचमी व होली के त्योहार अवधी रंगों में रंग गए और इस तरह कुल्लू जनपद व अवध के मध्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान का शुभारंभ हुआ। रघुनाथ जी कुल्लू घाटी के समस्त देवी-देवताअेां के शिरोमणि बने। ऐसी मान्यता है कि कुछ दिन रघुनाथ जी की मूर्ति मणिकर्ण में रखी गई थी, फिर वहां से सुल्तानपुर लाई गई। आज भी मणिकर्ण में रघुनाथ जी का भव्य मंदिर है।

अयोध्या मंदिर, रामपुर बुशहर- रियासत की राजधानी रामपुर जो शिमला से 130 किमी. की दूरी पर सतलुज नदी के किनारे स्थित है, में श्री अयोध्यानाथ मंदिर अवस्थित है। मंदिर का निर्माण महाराजा उदय सिंह के सुपुत्र महाराजा राम सिंह ने किया था। इस मंदिर के चारों ओर मियां फतेह सिंह का बेहड़ा था। स्थानीय निवासी 84 वर्षीय कमला शर्मा को स्मरण है कि इसे ‘ढंका माथे बेड़ो’ कहा जाता था। पूर्व में यह उपेक्षित था लेकिन अब इसका जीर्णोद्धार हो चुका है। इस मंदिर में राम-सीता, कृष्ण-राधा, शिव-पार्वती, शालीग्राम आदि की सत्रह पीतल की मूर्तियों को चांदी की बनी तीन नक्काशीदार पालकियों में सजाया गया है। यहां श्री अयोध्यानाथ जी के नाम पर दशहरा, बसंत पंचमी विशेष रूप से मनाए जाते हैं। इसके साथ होली, बैशाखी, रामनवमी, जन्माष्टमी व दीपावली पर मंदिर में विशेष पूजा की जाती है।
रघुनाथ मंदिर: रामपुर बुशहर की ग्रीष्मकालीन राजधानी सराहन में नागर शैली में निर्मित 7वीं शताब्दी के मध्य का रघुनाथ मंदिर अवस्थित है। लोक मान्यता है कि उस समय बुशहर के राजा विजय सिंह अथवा बीज सिंह का कुल्लू के राजा के साथ युद्ध हुआ। इस युद्ध में कुल्लू का राजा मारा गया। कुल्लू का राजा युद्ध के समय रघुनाथ जी की एक लघु प्रतिमा अपने साथ रखता था। इस प्रतिमा को बुशहर के राजा अपने साथ सराहन ले आए और भीमाकाली मंदिर परिसर में इसे स्थापित कर दिया। उसी समय से कुल्लू दशहरे की परंपरा अनुरूप सराहन में प्रतिवर्ष दशहरा पर्व मनाया जाता है। अयोध्या में पांच शताब्दियों के एक लंबे संघर्ष के उपरांत राम मंदिर का निर्माण हुआ है। इस संघर्ष में अनेक तिथियां जुड़ी हैं। त्रेतायुग से 20वीं शताब्दी तक हिमालय की इस धरा से अयोध्या का नाता-रिश्ता रहा है। इसी का प्रतिफल है कि आज भी पहाड़ों में वैष्णव व देव संस्कृति की साक्षात झलक देखने को मिलती है। इस संस्कृति के अपने ही रंग हैं, अपना ही स्वरूप है।

– विनोद भारद्वाज, शिमला


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