वाइल्ड फ्लावर हॉल की वापसी

By: Jan 9th, 2024 12:05 am

यह सिर्फ सार्वजनिक संपत्ति को लेकर आया कानूनी फैसला नहीं, बल्कि राज्य की अमानत में सरकार के दायित्व को भी रेखांकित करता है। अंतत: दो दशकों बाद राज्य की अमानत राज्य के पास लौटी और इस तरह वाइल्ड फ्लावर हॉल हिमाचल का हो गया। माननीय हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में ओबरॉय ग्रुप को स्पष्ट निर्देश देते हुए आगामी दो महीने के भीतर इसे पुन: हिमाचल सरकार के हवाले करने को कहा है। इस दौरान लेन-देन की औपचारिकताओं के बाद यह संपत्ति अंतत: हिमाचल पर्यटन विकास निगम के प्रीमियर होटल की तरह सामने आएगी। वाइल्ड फ्लावर हॉल अपने इतिहास में एक पर्यटन मंजिल तो है, साथ ही साथ इसने ऐसे अध्याय भी जोड़ दिए जहां हम सरकारी संपत्तियों का विनिवेश तथा पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की कमजोरियां पढ़ सकते हैं। यह सार्वजनिक क्षेत्र के प्रबंधन की लाचारी भी रही कि तत्कालीन सरकार ने इसे पंच सितारा होटल के रूप में संचालित करने के लिए ओबरॉय होटल से हाथ मिलाया। यह समझौता अदालती फैसले तक केवल कानूनी जद्दोजहद बना रहा और अब कुछ नसीहतों के साथ वर्तमान सरकार को हिदायतें दे रहा है। निजी निवेश या पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत आगे बढऩे के लिए पारदर्शिता, स्पष्टता, आपसी सूझबूझ व यथार्थवादी नजरिया चाहिए। न तो प्रोत्साहन की असीमित व्याख्या हानिकारक साबित हो और न ही निजी क्षेत्र के निवेश की रिटर्न का गला घोंटा जाए। यह निर्णय प्रदेश और निजी निवेश की छवियों का चित्रण भी कर रहा है। पर्यटन राज्य की तस्वीर में वाइल्ड फ्लावर की वापसी के इंतजार में हिमाचल पर्यटन विकास निगम अपनी क्षमता और दक्षता को ऐसे पैमानों से साध सकता है, जहां हाई एंड टूरिज्म अब भविष्य की तासीर बन सके। दरअसल हिमाचल पर्यटन विकास निगम को अपनी होटल इकाइयों को तीन श्रृंखलाओं में बांट कर प्रचारित करना चाहिए।

वाइल्ड फ्लावर हॉल के साथ चायल पैलेस, हिमाचल हॉलीडे होम, पीटर हॉफ, कैसल नग्गर, होटल धौलाधार व मनाली-धर्मशाला के क्लब हाउस को अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर हाई एंड टूरिज्म के साथ जोडऩा होगा। दूसरी श्रेणी में डेस्टीनेशन पर्यटन की अहमियत में प्रत्येक पर्यटक स्थल, प्रशासनिक शहर व औद्योगिक क्षेत्रों के होटलों को चिन्हित करना होगा, जबकि तीसरे आयाम में युवा, धार्मिक तथा बजट पर्यटक की उम्मीदों को सार्थक बनाते हुए सबसे अधिक इकाइयों, छात्रावासों, रेस्तरां, कैफे तथा तमाम सरकारी डाक बंगलों को जोड़ लेना चाहिए। ईको टूरिज्म में आगे बढ़ रहे प्रदेश को इसी आधार पर साइट चयन की भी अलग-अलग श्रेणी के लिए सुविधाएं जुटानी होंगी। मसलन हेलिपोर्ट व एयरपोर्ट से कनेक्टिड ईको टूरिज्म साइट्स को ‘ए’ श्रेणी या हाई एंड टूरिज्म के लिए निर्धारित करना होगा, जबकि युवा व बजट पर्यटक के लिए अलग मानदंडों के आधार पर सस्ती दरों पर आवश्यक सुविधाएं प्रदान करनी होंगी। जाहिर है वाइल्ड फ्लावर हॉल के कटु अनुभव आइंदा निजी निवेश या पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के रास्ते नहीं रोकते, लेकिन इसके लिए कुछ अनिवार्य कदम व शर्तें आमादा करने की हिदायत देते हैं। मसलन पालमपुर में पर्यटक गांव बसाने की जमीन को कृषि विश्वविद्यालय से हासिल करना सही होगा या इसके लिए अन्यत्र कसरतें करना जरूरी है।

सार्वजनिक क्षेत्र की जमीन हो या इमारतें, इनके इस्तेमाल के तर्क भविष्य की अमानत के तहत तय होने चाहिएं। हालिया विवाद पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय की अमानत को बचाने का है, जो पहले ही अपनी भूमि से डिग्री कालेज को 123 कनाल, साइंस म्यूजियम को 50 कनाल, आईजीएफ आरआई के नाम 111 कनाल, विद्युत बोर्ड को 2 कनाल तथा हेलिपोर्ट को 83 कनाल दे चुका है। अब पर्यटक गांव के लिए 2300 कनाल जमीन अगर कृषि विश्वविद्यालय से छीन कर निजी निवेश के लिए मैदान समतल किया जाता है, तो हम भविष्य को क्या जवाब देंगे। इस भूमि पर हिमालयन रीजनल सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी का दावा बरकरार रखना ज्यादा तर्कसंगत है या एक पर्यटक गांव की बिसात में यूनिवर्सिटी का मकसद व भविष्य कैद करना ज्यादा सार्थक होगा। आश्चर्य यह है कि अतीत से सबक न लेते हुए हम विकास को सिर्फ चंद इमारतें समझते हैं। सरकार अगर हर शहर में चार-चार बड़े मैदान ही बना दे तो निजी निवेश के तहत व्यापारिक-सांस्कृतिक मेलों, विभिन्न आयोजनों, खेल गतिविधियों तथा पार्किंग के जरिए भी खासी आमदनी के तहत सरकार व नगर निकायों की आय में बढ़ोतरी होगी। ध्यान देना होगा कि न तो जमीन बार-बार जन्म लेगी और न ही इमारतें खड़ी होंगी।


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