विज्ञान, अध्यात्म और हम

By: Jan 25th, 2024 12:06 am

आज जब हम आधुनिकता के चक्कर में पडक़र अत्यंत विषैला जीवन जी रहे हैं तो आध्यात्मिक चिकित्सा इसका सबसे बढिय़ा उपचार तो है ही, इससे भी आगे बढक़र यह हमारी विचारधारा को बदल देती है, हमें जीवन का वह सत्य सिखाती है जिससे हम जीवन को बेहतर समझ पाने के काबिल हो जाते हैं। आध्यात्मिक चिकित्सा हमें उस स्तर तक ले जा सकती है जिसे गीता में भगवान श्री कृष्ण ने निष्काम कर्म कहा है। जब सारी दुनिया नाच रही हो तो साथ में नाचने में कोई हर्ज नहीं है, ध्यान इतना ही रखना चाहिए कि हम औरों की तरह नशे में न हों। इस बात का खुलासा यह है कि हम दुनियादारी के सारे काम करें, ईष्र्या, द्वेष और लालच से मुक्त होकर अपनी जिम्मेदारियां निभाएं, फिर हमारा मन ही मंदिर हो जाता है, हम अध्यात्म की सीढिय़ां चढऩे लगते हैं और जीवन के अर्थ और लक्ष्य को समझ पाने योग्य हो जाते हैं…

संत जन कहते हैं : ‘नेति, नेति।’ परमात्मा क्या है, हम नहीं जान सकते। अंतिम सत्य क्या है, हम नहीं जान जान सकते। विद्वजन शायद इसीलिए कहते हैं कि किसी भी स्थिति में एक हमारा सच होता है, एक सामने वाले का सच होता है और एक सचमुच का सच होता है। यह ‘सचमुच का सच’ ही एक ऐसी पहेली है जिस तक हम कभी नहीं पहुंच पाते, क्योंकि हर स्थिति को, हर घटना को हम अपने नजरिये से देखते हैं, अपने नजरिये से परिभाषित करते हैं और सामने वाला अपने नजरिये से परिभाषित करता है। हम दोनों ही अपने-अपने पूर्वाग्रहों के कारण ‘संपूर्ण सत्य’ या यूं कहें कि असली सच को, सचमुच वाले सच को नहीं देख पाते। फिर भी कुछ चीजें ऐसी हैं जिन्हें कुछ लोगों ने देखा है, समझा है और समझाने की कोशिश की है। जीवन है तो हमें एक शरीर मिला है और इस शरीर की देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है। हम मौसम के हिसाब से खाना खाएं, मौसमी फलों का आनंद लें और देश-दुनिया के जिस भाग में हों उस भाग में प्रचलित पारंपरिक भोजन को अपनाएं क्योंकि वह भोजन स्थानीय जलवायु के अनुरूप होता है और शरीर के ज्यादा माफिक आता है। इस संबंध में यह भी समझना आवश्यक है कि अच्छी सेहत के लिए हमारा खानपान जितना महत्वपूर्ण है उतना ही बल्कि उससे कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण है खाना खाने का हमारा तरीका। यह स्वयंसिद्ध है कि खाना खाने से हमें पोषण नहीं मिलता, पोषण मिलता है भोजन के उस भाग से जिसे हमने इतना चबा लिया कि वह पच भी गया। उसी से पोषण है, बाकी का भोजन या तो मल-मूत्र आदि के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है या फिर वसा के रूप में शरीर में जमा होकर गंदगी फैलाता है और बीमारियों का कारण बनता है।

इसलिए पहला मंत्र है कि खाना खूब चबाकर खाएं। दूसरा मंत्र है कि हम हर रोज कुछ न कुछ व्यायाम अवश्य करें, सैर करें, साइकिल चलाएं, तैराकी करें या किसी खेल में हिस्सा लें। कुछ भी ऐसा करें जिससे शरीर में हरकत हो। तीसरा मंत्र है कि हम ताजी खुली हवा और सूरज की रोशनी में समय बिताएं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए शरीर का ध्यान रखना ही काफी नहीं है, बल्कि मन का ध्यान रखना भी उतना ही जरूरी है क्योंकि अंतत: विज्ञान भी यह मान रहा है कि अधिकांश लोग मानसिक रूप से बीमार हैं इसीलिए दुखी हैं। यही नहीं, विज्ञान यह भी मानता है कि मानसिक बीमारियां भी बहुत से शारीरिक रोगों का कारण बनती हैं। चिकित्सा विज्ञान बहुत सी शारीरिक बीमारियों का कारण तक नहीं जान पाता, या यह भी नहीं मान पाता कि व्यक्ति को कोई बीमारी है। ऐसे बहुत से मामले सामने आए हैं जहां किसी व्यक्ति को लगातार बुखार आ रहा है, किसी भी दवाई से बुखार उतर नहीं रहा और बुखार का कोई कारण भी नहीं मिल रहा। कोई दूसरा व्यक्ति कहता है कि वह ठीक नहीं महसूस कर रहा, सभी तरह के लैबारेट्री टैस्ट हो गए और डॉक्टर कहते हैं कि कोई बीमारी है ही नहीं, मन का वहम है, जबकि व्यक्ति ठीक महसूस नहीं कर रहा। चिकित्सा विज्ञान ने बहुत उन्नति की है, इसके बावजूद चिकित्सा विज्ञान की अपनी सीमाएं हैं।

तुर्रा यह कि आए दिन यह भी पता लगता है कि फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री के स्वार्थों के कारण किसी बड़े सच को छुपा लिया गया, कोई बड़ा झूठ प्रचारित कर दिया गया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग दवाइयों के फेर में पड़ जाएं। अब जब बिना आवश्यकता के दवाइयां शुरू हो गईं तो उनका साइड इफैक्ट भी होगा और एक चंगा-भला व्यक्ति जो पूरी तरह से स्वस्थ था, दवाइयां खाने लग गया और उन दवाइयों के साइड इफैक्ट के कारण सचमुच बीमार हो गया। समस्या यह है कि हमारी शिक्षा पद्धति में ऐसी सीख शामिल ही नहीं है कि व्यक्ति मानसिक विकारों का शिकार होने से बच सके। गलाकाट प्रतियोगिता और दिखावटी जीवन ने ईष्र्या और द्वेष को जन्म दिया है, जिससे जीवन विषैला हो गया है। आध्यात्मिक चिकित्सा या स्पिरिचुअल हीलिंग की भूमिका यहीं से शुरू होती है। विज्ञान की बात तो छोडि़ए, बहुत से धर्म भी पुनर्जन्म को नहीं मानते। धर्म फिर एक शारीरिक चीज है, कर्मकांड है, अध्यात्म उससे कहीं आगे की बात है। यही कारण है कि ऋषियों-मुनियों ने धर्म की नहीं बल्कि अध्यात्म की बात की है। पुनर्जन्म को लेकर विज्ञान तो चुप ही है, या इस विचार को पूरी तरह से नकारता है, लेकिन सच यह भी है कि पुनर्जन्म के बहुत से साक्ष्य दुनिया भर में उपलब्ध हैं और उन पर कोई विवाद नहीं है, तो भी विज्ञान ने इस मामले में अपनी आंखें बंद कर रखी हैं। यही कारण है कि एक सीमा के बाद विज्ञान आगे नहीं बढ़ पाता, तो फिर हमें अध्यात्म का सहारा लेना पड़ता है। अध्यात्म बहुत सहज है, बहुत सरल है, पर उसे समझ पाना आसान नहीं है और आधुनिक जीवनशैली वाले व्यक्ति के लिए उसे अमल में लाना तो और भी कठिन है।

पूजा सिर्फ तभी पूजा है, जब हम प्रेममय हो जाते हैं, देश, धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्र की बात छोडक़र हर व्यक्ति से प्रेम करने लगते हैं, बिना कारण प्रेम करने लगते हैं, और व्यक्ति से ही नहीं, हर वस्तु से प्रेम करने लगते हैं, हर जड़-चेतन जीवन का सम्मान करने लगते हैं, बिना कारण, बिना लालच, बिना किसी डर के। यह जीवनशैली अपना लें तो मानसिक रोग होते ही नहीं और मन हमेशा प्रसन्न-प्रफुल्लित रहता है। लेकिन अगर मानसिक विकार आ ही गए हों तो फिर आध्यात्मिक चिकित्सा सबसे बढिय़ा उपाय है। आध्यात्मिक चिकित्सा सिर्फ चिकित्सा ही नहीं है बल्कि एक स्वस्थ जीवनशैली है जो मन की स्लेट से मैल हटाकर सारे मानसिक विकारों को साफ कर देती है। आज जब हम आधुनिकता के चक्कर में पडक़र अत्यंत विषैला जीवन जी रहे हैं तो आध्यात्मिक चिकित्सा इसका सबसे बढिय़ा उपचार तो है ही, इससे भी आगे बढक़र यह हमारी विचारधारा को बदल देती है, हमें जीवन का वह सत्य सिखाती है जिससे हम जीवन को बेहतर समझ पाने के काबिल हो जाते हैं। आध्यात्मिक चिकित्सा हमें उस स्तर तक ले जा सकती है जिसे गीता में भगवान श्री कृष्ण ने निष्काम कर्म कहा है। जब सारी दुनिया नाच रही हो तो साथ में नाचने में कोई हर्ज नहीं है, ध्यान इतना ही रखना चाहिए कि हम औरों की तरह नशे में न हों। इस बात का खुलासा यह है कि हम दुनियादारी के सारे काम करें, ईष्र्या, द्वेष और लालच से मुक्त होकर अपनी जिम्मेदारियां निभाएं, फिर हमारा मन ही मंदिर हो जाता है, हम अध्यात्म की सीढिय़ां चढऩे लगते हैं और जीवन के अर्थ और लक्ष्य को समझ पाने योग्य हो जाते हैं। आध्यात्मिक चिकित्सा की यह सबसे बड़ी उपलब्धि है और यह हम सबके लिए उपलब्ध भी है।

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता


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