सियासत के चंगुल से मुक्त हों खेल संघ

विश्व का सबसे बड़ा खेल आयोजन ओलंपिक इसी वर्ष दस्तक देने वाला है। भारतीय कुश्ती तथा उभरते युवा पहलवानों के बेहतर भविष्य के मद्देनजर भारतीय कुश्ती महासंघ व पहलवानों के बीच चल रहे विवाद का हल निकलना चाहिए। खेल संस्थाएं सियासत के चंगुल से मुक्त होनी चाहिएं…

भारत को अंग्रेज हुकूमत से आजाद कराने के लिए देश में कई तहरीकें चलीं। लंबी जद्दोजहद के बाद देश आजाद हुआ। आजादी के बाद मुल्क में लोकतांत्रिक व्यवस्था की बहाली के लिए राजाओं ने अपनी रियासतों का भारत में विलय कर दिया। तब जाकर भारत में जम्हूरी निजाम कायम हुआ। लेकिन बर्तानिया बादशाही का सूर्यास्त होने के बाद देश की खेल संस्थाओं सहित हर इदारे पर सियासी रहनुमाओं की हुक्मरानी कायम हो गई। यह सिलसिला बद्दस्तूर जारी है। अंग्रेजों का खेल क्रिकेट देश में लोकप्रियता की बुलंदी पर काबिज है। हमारे देश की करोड़ों आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है। गुरबत, बेरोजगारी व महंगाई का शदीद दौर जारी है। मगर भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहां आईपीएल क्रिकेट के लिए विदेशी खिलाडिय़ों पर करोंड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं। क्रिकेट के बढ़ते खुमार तथा आईपीएल में खिलाडिय़ों पर बरस रहे बेहताशा धन के आगे बाकी खेलों की चमक फीकी पड़ चुकी है। हालात इस कदर बेकाबू हो चुके हैं कि जेंटलमैन गेम कहे जाने वाले क्रिकेट को ही खेल समझा जा रहा है। बाकी खेलों व खिलाडिय़ों को तवज्जो ही नहीं दी जा रही। पारंपरिक कुश्ती अतीत काल से देश का गौरव रही है। गांव देहात के इस प्राचीन खेल कुश्ती को हमारे देश के पुरुष व महिला पहलवानों ने कड़ी मेहनत के बल से अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर विशेष पहचान दिलाई है।

ओलंपिक महाकुंभ में सर्वाधिक बारह पदक जीतकर देश को गौरवान्वित करने वाली भारतीय हॉकी के बाद कुश्ती ओलंपिक में बेहद कामयाब खेल साबित हुआ है। भारतीय पहलवानों ने ओलंपिक में सात व्यक्तिगत पदक जीतकर वैश्विक खेल पटल पर भारतीय कुश्ती का दबदबा कायम किया है। इस सफलता का श्रेय देश के पहलवानों व उनके प्रशिक्षकों को जाता है। ओलंपिक में खेल प्रेमियों की ज्यादातर उम्मीद भारतीय कुश्ती पर लगी होती है। लेकिन ओलंपिक में भारत का परचम लहराने वाली भारतीय कुश्ती तथा पहलवान पिछले एक वर्ष से गर्दिश के दौर से गुजर रहे हैं। भारतीय कुश्ती महासंघ की सरवराही के विवाद ने देश की सियासी हरारत बढ़ा दी है। कुश्ती प्रेमी मायूस हैं। युवा पहलवान तथा उनके अभिभावक असमंजस की स्थिति में हैं। इसी विवाद के चलते वैश्विक स्तर पर कुश्ती का संचालन करने वाली संस्था ‘यूनाइटेड वल्र्ड रेसलिंग’ ने 23 अगस्त 2023 को भारतीय कुश्ती महासंघ को निलंबित कर दिया। हाल ही में 21 दिसंबर 2023 को भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए, जिसमें एक सियासी रहनुमां की जीत हुई। कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद पर सियासी रहनुमां की जीत से कुछ आंदोलनकारी पहलवान इस कदर खफा हुए कि अपने खेल पुरस्कार लौटाने के साथ कुश्ती से संन्यास का ऐलान भी कर दिया। मगर पहलवानों की नाराजगी से भारतीय खेल मंत्रालय ने 24 दिसंबर 2023 को कुश्ती महासंघ को ही निलंबित कर दिया। विडंबना यह रही कि कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद का चुनाव हारने वाली महिला एक अंतरराष्ट्रीय पहलवान ‘अनीता श्योराण’ है। अनीता श्योराण ने सन् 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए कुश्ती में ‘स्वर्ण पदक’ जीता था।

सन् 2005 की राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप तथा सन् 2008 की एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में अनीता श्योराण देश के लिए ‘कांस्य पदक’ जीत चुकी हैं। लेकिन विश्व के कई पहलवानों को चित करने वाली अतंरराष्ट्रीय महिला पहलवान सियासी दांवपेंच में शिकस्त खाकर कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पद का चुनाव हार गई। रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद पर एक सियासी रहनुमा की भारी जीत तथा एक अंतरराष्ट्रीय महिला पहलवान का चुनाव हार जाना देश की खेल व्यवस्था तथा सियासी निजाम पर कई सवाल खड़े करता है। साथ ही महिला सशक्तिकरण के दावों की पोल भी खोलता है। भावार्थ यह है कि देश के खेल संघों पर भी सियासत अपना पूरा प्रभाव रखती है। सियासतदान खेल संस्थाओं को भी अपनी जागीर मान बैठे हैं। प्रश्न यह है कि जब देश में ओलंपिक स्तर के महिला व पुरुष दिग्गज खिलाड़ी मौजूद हैं तो खेल संघों पर सियासत का दबदबा क्यों है। जिन लोगों का खेलों से दूर तक कोई नाता न रहा हो, खेल संघों पर ऐसे लोगों की हुक्मरानी खेलों के लिए शुभ संकेत नहीं है। अंग्रेजों की खेल विरासत क्रिकेट पर हो रहे बेहताशा खर्च तथा खेल संस्थाओं पर सियासत का दबदबा कायम होने से नुकसान खेलों व प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों का हो रहा है। देश के सियासतदानों को समझना होगा कि खिलाडिय़ों की जरूरतों को एक खिलाड़ी ही बेहतर तरीके से जान सकता है। महिला खिलाडिय़ों की समस्याओं को महिला खिलाड़ी ही समझ सकती हैं, सियासतदान नहीं। हैरत की बात है कि देश में किसी भी मुद्दे को सियासी चश्मे से देखा जाता है, जबकि देश के स्वाभिमान के लिए खेल मैदानों पर खून पसीना बहाने वाले खिलाडिय़ों पर सियासत से परहेज होना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर देश का गौरव बढ़ाने वाले खिलाडिय़ों को यदि अपने हकूक के लिए सडक़ों पर आंदोलन करने पड़ें या खेल पुरस्कार लौटाने की नौबत आ जाए, तो यह तनाजुर खेलों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।

विश्व स्तरीय खेल मुकाबलों में देश का नेतृत्व करने वाले खिलाड़ी एक रात में पैदा नहीं होते, बल्कि पदक जीतने वाले अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी वर्षों की मेहनत के बाद तैयार होते हैं। अत: पदक के दावेदार खिलाडिय़ों की भावनाओं का सम्मान करना होगा। बहरहाल विश्व का सबसे बड़ा खेल आयोजन ओलंपिक इसी वर्ष दस्तक देने वाला है। भारतीय कुश्ती तथा उभरते युवा पहलवानों के बेहतर भविष्य के मद्देनजर भारतीय कुश्ती महासंघ व पहलवानों के बीच चल रहे विवाद का हल निकलना चाहिए। वैश्विक खेल पटल पर सम्मानजनक खेल परिणाम हासिल करने के लिए खेल संस्थाएं सियासत के चंगुल से मुक्त होनी चाहिएं। उम्मीद है कि 2024 के पेरिस ओलंपिक में देश के पहलवान दमदार प्रदर्शन करके भारत की पदक तालिका में बढ़ोतरी करेंगे। कुश्ती का इकबाल बुलंद हो।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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