कर्जखोर अब चांद की ओर

By: Jan 10th, 2024 12:02 am

वे करते धरते कुछ नहीं, पर उनके पास किसी से दो पल चैन से बात करने का कभी वक्त नहीं होता। आज भी नहीं था। खड़े खड़े ही पांव आगे पीछे करते उन्होंने मुझसे गंभीर हो पूछा, ‘यार! चांद पर प्लॉट लेना था। ये धरती तो अब रहने लायक रही नहीं। जहां देखो सच्चाई के नाम पर प्रहसन! दिन के उजाले में भी कुछ भी साफ नहीं। जिसे मां समझो वह मां नहीं, जिसे बाप समझो वह बाप नहीं। जहां देखो वहीं मंथन के नाम पर मर्दन। स्वच्छता के नाम पर इधर कूड़ा, उधर कचरा। बैल तक बन रहा है बलि का बकरा। सच कहूं तो इस धरती पर अब नाक बंद कर, नाक बचा बचा कर जीना पड़ रहा है। कहां से रजिस्ट्री होगी? आजकल वहां पर स्कवेयर गज क्या चला होगा? दलाल तो अभी तक वहां कहां ही पहुंचे होंगे? किस ईमानदार पटवारी से बात की जाए कि वह वहां पर प्लॉट पूरा नापे? किस तहसीलदार के रजिस्ट्री करवाई जाए कि वहां सीधी रजिस्ट्री हो?’ वाह! क्या दिन आ गए? जिनके नाक ही नहीं वे भी इन दिनों नाक बचाने को लेकर अहा! कितने लेकर चिंतित हैं। उन्होंने मुझसे एक पर एक दिमाग हिला देने वाले सवाल दागे तो उन पर हंसी आने के बदले मुझे अपने पर हंसी आई। गधे! कैसे कैसे दोस्त पाल रखे हैं तूने भी! ऐसे दोस्त तुझे और कहीं ले जाएं या नहीं, पर नरक में जरूर ले जाएंगे। बंदा भी कमाल का है। जिस कमरे में रहता है, उसके मालिक को बीस महीने से किराया नहीं दिया है। जिस राशन की दुकान से राशन लाता है, उसका उधार दस महीने से स्टैंड है। राशन की दुकान वाला उसके बदले अब मेरा रास्ता रोकने लगा है। गारंटर के साथ बुधा ऐसा ही होता है। और अब जनाब प्लॉट लेने की बात कर रहे हैं, वह भी चांद पर। पर मैं भी बिल्कुल तैयार था कि अबके बंदे की कहीं गारंटी न दूंगा। जनाब की गारंटियां देते देते अपनी घंटियां बजने लगी हैं अब तो। वैसे फेंकने में जाता भी क्या है भाई साहब! पर फेंकने से पहले एक बात का जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए कि जब फेंकने को मन करे तो फेंकने की समझदारी से ईमानदारी इसी में होती है कि फेंको तो इतनी दूर की फेंको कि…जिसकी ओर फेंकी गई हो, उसकी सांस रुकने के बदले उसका दम निकल जाए। ईमानदारी से फेंकना इसी को कहते हैं।

वर्ना न फेंकने में ही धर्म की सलामती। ‘देखो यार! पटवारी तो पटवारी होता है। वह चाहे वैकुंठ का ही क्यों न हो। ईमानदारी के नाम पर प्रहसन या लूट के नाम पर नौटंकी! यह तो सुनार जाने या सुनार की मां, पर एक कथा है कि एक बार सुनार ने अपने मां के गहने में से सोना नहीं खाया तो पता है उसे क्या हुआ था?’ ‘उसके पेट में दर्द हो गई थी, तो? पर गए वे दिन! अब दर्द नहीं होता।’ ‘तो क्या? मां तो ठहरी मां! जब मां को पता चला कि उसके बेटे के पेट में दर्द क्यों हो रहा है तो उसने अपने बेटे के पेट की दर्द ठीक करने के लिए अपने गहने में से उसे कुछ सोना निकालने को कहा। जैसे ही सुनार ने अपनी मां के आदेशानुसार मां के गहने में से कुछ सोना चुरा उसमें उतना खोट पाया तो उसके बेटे के पेट का दर्द एकदम ठीक हो गया। पर यार! बीस महीने से तुमने अपने कमरे का किराया नहीं दे पाए और अब चांद पर प्लॉट? अब सच्ची को इनकी उनकी तरह कर्ज मार देश से भागने की तो नहीं सोच रहे हो?’ ‘हां ! अब मैं यहां से जितनी जल्दी हो सके शिफ्ट कर जाना चाहता हूं। दूर कहीं दूर! मुझे कर्ज देने वाले जब मुझसे कर्ज मांगते हैं तो मेरा दम घुटने लगता है। मैं ऐसे दमघोंटु कर्ज देने वालों के बीच अब और नहीं रह सकता’, तब पहली बार पता चला कि कर्ज देने वालों का किसी को कर्ज देकर ही दम नहीं घुटता, कर्ज लेने वालों का कर्ज लेने पर भी दम घुटता है। ‘मकान मालिक का किराया दिए बिना ही? देखो, तुम्हारी गारंटी मैंने दी है।’ ‘तो किराया भी तुम ही देते रहना। या चांद पर से बाद में गूगल पे के थ्रू भेज दूंगा। चांद पर ही तो जा रहा हूं। ब्लैक होल में तो नहीं जा रहा हूं न!’ ‘इतनी जल्दी क्या है चांद पर शिफ्ट करने की?’ ‘दोस्त! देखो न! अब कोराना फिर से ईमानदारी की तरह सिर उठाने लगा है। पिछली बार तो कर्जदारों की उसको दुहाई देने पर उससे जैसे तैसे बच गया था। पर अब सोच रहा हूं जब तक कोरोना वायरस फिर से सिर उठाए, मैं यहां से तब तक चांद पर शिफ्ट कर जाऊं’, उन्होंने सीना तानते कहा और मेरी जेब से चार बीडिय़ां निकाल आगे हो लिए।

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com


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