पेट्रोल पर निर्भरता कम करने के उपाय

By: Jan 15th, 2024 12:04 am

इनमें से सबसे बड़ा जो बदलाव अत्यंत आवश्यक है, वो है पेट्रोल की खपत को नियंत्रित करने के लिए कोई पहल करना। यह पहल यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर करे तो अच्छा है, लेकिन यह संभव नहीं लगता क्योंकि हमारी मानसिकता कानून के खूंटे से बंध कर कार्य करने की हो चुकी है। इसलिए इसमें सरकार को प्रयास करके इससे संबंधित नियम बनाने की जरूरत है। इसके लिए आवश्यक है कि प्रत्येक गाड़ी के लिए प्रति माह पेट्रोल के प्रयोग की एक सीमा निर्धारित कर दी जाए…

भारतीय न्याय संहिता में हिट एंड रन से संबंधित कानून में बदलाव से नाराज ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल से पेट्रोल के लिए विशेषकर निजी वाहन मालिकों में मची हाहाकार ने सभी को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। पेट्रोल पंपों से जैसे ही पेट्रोल के खत्म होने की जानकारी आम जनता में फैली तो सभी ने अपनी गाडिय़ों का स्टीयरिंग भी पेट्रोल पंपों की तरफ घुमा लिया जिससे पेट्रोल की कमी का संकट कम होने की बजाय और गहरा गया। बेशक यह दौर लंबा नहीं चला, लेकिन फिर भी इस बात का एहसास सभी को हो गया कि पेट्रोल-डीजल अब हमारी जरूरत से ज्यादा हमारी एक कमजोरी बन चुका है। पेट्रोल-डीजल की इस कमी से हमारे रोजमर्रा के कार्यों पर भले ही कोई बड़ा नकारात्मक प्रभाव न पड़ा हो, लेकिन पेट्रोल की पूर्ति में आई इस कुछ ही घंटे की कमी ने हमारी मानसिक स्थिति पर भी गहरा प्रभाव डाला है।

पेट्रोल के बिना वाहन मालिकों को अपना भविष्य अंधकारमय दिखने लग पड़ा था और हर ओर यह चिंता फैल गई कि पेट्रोल की पूर्ति अगर बहाल न हुई तो हमारी जीवन की गाड़ी पर भी ब्रेक लग जाएगा। यही कारण था कि पेट्रोल की कमी से चिंतित कुछ वाहन मालिकों ने न केवल अपनी गाडिय़ों की टंकियों को भरवाने का जुगाड़ किया, बल्कि घरों में भी पेट्रोल का स्टॉक इक_ा करने की कोशिश की ताकि कुछ दिनों तक अपनी जरूरत को पूरा किया जा सके। वैसे यह चिंता काफी हद तक स्वाभाविक भी है, क्योंकि पेट्रोल-डीजल की निर्बाध आपूर्ति के ऊपर ही हमारी बहुत सी दैनिक क्रियाएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर करती हैं। पेट्रोल की पूर्ति में आई कमी से सडक़ों पर कम वाहन नजर आए, क्योंकि कोई भी वाहन मालिक अपनी गाड़ी को व्यर्थ घुमाकर अपने पेट्रोल के स्टॉक से छेड़छाड़ करने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं था। बसों के पहिए थमने से कुछ लोग पैदल चलते भी दिखाई दिए, जोकि अमूमन देखने को नहीं मिलता है। यहां पर इस बात पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि पेट्रोल की यह कमी हड़ताल की वजह से मानव निर्मित थी, लेकिन जरा सोचिए अगर कभी धरती ने अचानक प्राकृतिक ईंधन को उगलना बंद कर दिया तो हालात कैसे बन जाएंगे। जिंदगी की रफ्तार एकदम शून्य हो जाएगी। उस समय जो हालात पैदा होंगे, उनकी कल्पना मात्र से भी एक सिहरन पैदा हो जाती है। हालांकि यह भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है कि प्राकृतिक ईंधन कब तक इनसानी उपभोग के लिए उपलब्ध होता रहेगा, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि प्राकृतिक ईंधन के भंडारों का दोहन जिस गति से इनसानी सहूलियत के लिए हो रहा है, उससे लगता है कि आने वाले वर्षों में हमें इसकी भारी किल्लत से जूझना पड़ सकता है, क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों का यह भंडार कदापि असीमित नहीं है। यह बात विभिन्न सरकारों के संज्ञान में भी रही है। इसीलिए ऊर्जा के अलग-अलग स्त्रोतों को विकसित करने की कई योजनाओं पर कई वर्ष पहले ही कार्य शुरू किया जा चुका है। हम अपने जीवन में बहुत सी वस्तुओं के उपभोग के आदी हो चुके हैं जिसमें से पेट्रोल भी एक अहम वस्तु है।

पेट्रोल के ऊपर हमारी निर्भरता बहुत अधिक है। इसका एक कारण यह भी है कि पेट्रोल के मुकाबले ऊर्जा के अन्य स्रोतों के विकास में आशानुरूप प्रगति नहीं हुई है। पेट्रोल के सीमित भंडार को ध्यान में रखते हुए हमारी जीवन शैली में कुछ बदलाव किए जाने आवश्यक हैं। इनमें से सबसे बड़ा जो बदलाव अत्यंत आवश्यक है, वो है पेट्रोल की खपत को नियंत्रित करने के लिए कोई पहल करना। यह पहल यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर करे तो अच्छा है, लेकिन यह संभव नहीं लगता क्योंकि हमारी मानसिकता कानून के खूंटे से बंध कर कार्य करने की हो चुकी है। इसलिए इसमें सरकार को प्रयास करके इससे संबंधित नियम बनाने की जरूरत है। इसके लिए आवश्यक है कि प्रत्येक गाड़ी के लिए प्रति माह पेट्रोल के प्रयोग की एक सीमा निर्धारित कर दी जाए। इस सीमा से अधिक पेट्रोल किसी भी सूरत में गाड़ी में न डाला जाए। इस केवल एक निर्णय से समाज के विभिन्न वर्गों को अनेक लाभ होने निश्चित हैं। इसमें से सबसे पहला लाभ यह होगा कि तेजी से समाप्त हो रहे हमारे प्राकृतिक ईंधन से संसाधनों पर कुछ रोक अवश्य लगेगी। अगर प्राकृतिक ईंधन समाप्त हो जाता है तो हमारी आने वाली पीढिय़ां प्राकृतिक संसाधनों का केवल इतिहास पढऩे को मजबूर होंगी और यदि आज हम कुदरत के इस अनमोल तोहफे का प्रयोग संभल कर करते हैं, तो आने वाली पीढिय़ां भी इसका लाभ ले पाएंगी। इसके अलावा पेट्रोल की खपत की सीमा निर्धारित करने से देश के नागरिक अपने कुछ काम, जिनके लिए आज गाड़ी का प्रयोग करते हैं, उनको पैदल चलकर करना चाहेंगे, क्योंकि ईंधन खपत की सीमा के निर्धारित हो जाने से वे ईंधन के बेहतरीन उपयोग के प्रति संवेदनशील रहेंगे, जिससे उनकी शारीरिक क्रिया होगी और शारीरिक क्रियाएं स्वास्थ्य लाभ के लिए सबसे उपयोगी साधन हैं।

इसके साथ-साथ ईंधन खपत की सीमा को निर्धारित करने से प्रदूषण, अनियंत्रित ट्रैफिक और ट्रैफिक जाम की समस्या को भी काफी हद तक नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। इसके साथ-साथ सडक़ों के रखरखाव पर भी कम राशि व्यय होगी और सार्वजनिक यातायात के ढांचे को मजबूती प्रदान करके सरकार अपने राजस्व में वृद्धि कर सकती है। पेट्रोल की खपत की सीमा निर्धारित होने से बिजली से चलने वाली गाडिय़ों और ऊर्जा के अन्य स्रोतों को प्रयोग में लाने की तरफ भी लोगों को आकर्षित किया जा सकेगा। एक मजबूत इच्छा शक्ति के साथ पेट्रोल की खपत को नियंत्रित करने से संबंधित निर्णय लिया जाना अत्यंत आवश्यक है।

राकेश शर्मा

स्वतंत्र लेखक


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