राम मंदिर से दूर क्यों कांग्रेस

By: Jan 13th, 2024 12:05 am

अयोध्या में श्रीराम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का आमंत्रण अस्वीकार कर कांग्रेस ने धर्म को निजी मामला माना है, लेकिन उसकी आरोपिया दलीलें भी हैं कि ‘अधूरे मंदिर’ का उद्घाटन शास्त्र सम्मत नहीं है। यह आरएसएस-भाजपा का कार्यक्रम है और उन्होंने ‘राजनीतिक लाभ’ के लिए ऐसा किया है। कांग्रेस ने शंकराचार्यों द्वारा भी आमंत्रण अस्वीकार करने की आड़ ली है, जो अद्र्धसत्य है। शंकराचार्य विजयेन्द्र सरस्वती की टीम प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। इसके अलावा, दो शंकराचार्यों ने अपनी स्वीकृति भेज दी है कि वे 22 जनवरी के पावन उत्सव में शामिल होंगे। शेष दो शंकराचार्यों के अपने कोई कारण होंगे, लेकिन उन्होंने प्रभु राम की प्राण-प्रतिष्ठा को खारिज नहीं किया है। कांग्रेस के शीर्षस्थ नेताओं के लिए राम मंदिर समारोह ‘अधूरे मंदिर की सियासत’ है, लेकिन उप्र कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय के साथ जो 50 कांग्रेसी नेता मकर संक्रांति के अगले ही दिन अयोध्या की सरयू नदी में डुबकी लगाने और फिर ‘राम लला’ के दर्शन करने जा रहे हैं, उनके रामवाद और हिंदुत्व की परिभाषा क्या है? कांग्रेस के बड़े नेता कमलनाथ, अशोक गहलोत और गांधी परिवार के प्रिय आचार्य प्रमोद कृष्णम आदि की लंबी सूची है, जो चेतना से ‘रामवादी’ होने का दावा करते रहे हैं और प्रभु राम के दर्शन करने, अपनी सुविधा के अनुसार, अयोध्या धाम जाएंगे। कांग्रेस के भीतर यह विरोधाभास क्यों है? कांग्रेस ऐसे आध्यात्मिक और ऐतिहासिक समारोह का हिस्सा बने या राजनीतिक कारणों से बहिष्कार करे, यह उसकी सोच है।

उससे हमारा कोई सरोकार नहीं, लेकिन वह ‘आत्मघाती’ साबित हो सकता है। समारोह को संघ परिवार का ही आयोजन करार देना पूर्णत: उचित नहीं है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनना चाहिए, यह सर्वोच्च अदालत की पांच न्यायाधीशों की पीठ का निर्णय था। संविधान पीठ ने ही प्रधानमंत्री मोदी को निर्देश दिए थे कि वह मंदिर-निर्माण के लिए एक ट्रस्ट का गठन करें। वह निर्णय कैबिनेट में लिया गया। यदि अयोध्या समारोह में भाजपा-विहिप के नेता, कार्यकर्ता सक्रिय दिख रहे हैं, तो उसमें क्या गलत है? संघ परिवार ने राम मंदिर के लिए बेहद लंबा संघर्ष किया है, आंदोलन में कारसेवकों ने ‘कुर्बानियां’ दी हैं। यदि इतने व्यापक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और उनकी सरकारी टीम शामिल नहीं होगी, तो आम बंदोबस्त से लेकर सुरक्षा-व्यवस्था की जिम्मेदारी किसकी होगी? यदि इन दिनों में कोई अनहोनी हो गई, तो किसकी जवाबदेही तय की जाएगी? प्रशासन और इन व्यवस्थाओं के लिए भाजपा को लोकतांत्रिक जनादेश मिला है। बहरहाल कांग्रेस ने राम मंदिर का बहिष्कार किया है, तो यह उसकी पुरानी आदत है। श्रीराम तो सबके हैं और सभी ‘राममय’ हैं।

राम भाजपा-कांग्रेस के नहीं हो सकते। एक राजनीतिक कारण तो स्पष्ट है कि अधिकतर उत्तरी भारत के राज्यों में कांग्रेस के पक्ष में 50 फीसदी तक मुस्लिम वोट आते रहे हैं। औसतन सबसे अधिक मुसलमान कांग्रेस को ही वोट देते हैं। आखिर कांग्रेस ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ की निश्चित राजनीति को कैसे गंवा सकती है? हिंदुओं के वोट कांग्रेस के पक्ष में परंपरागत ही रह गए हैं। जहां भाजपा के साथ उसका सीधा चुनावी मुकाबला है, उन सीटों पर 70 फीसदी से अधिक हिंदू भाजपा को वोट देते हैं। यथार्थ यह है कि कांग्रेस सोच के स्तर पर हिंदू-विरोधी या राम-विरोधी नहीं है। महात्मा गांधी की दिनचर्या ही ‘राम नाम’ से होती थी। राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए राम मंदिर का ताला खुलवाया था। आमंत्रण अस्वीकार करना कांगे्रस की नीति हो सकती है।


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