भक्ति की शक्ति के आगे हार जाते हैं प्रभु

By: Feb 3rd, 2024 12:16 am

ऊना में आयोजित धार्मिक समागम में मोर व मैना का प्रसंग सुनाकर बाबा बाल ने भक्ति के रंग में डुबोए सभी श्रद्धालु

दिव्य हिमाचल ब्यूरो-ऊना
जिला ऊना के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल राष्ट्रीय संत बाबा बाल जी महाराज आश्रम श्रीराधा कृष्ण मंदिर कोटला कलां ऊना में शुक्रवार को 13 दिवसीय विशाल धार्मिक समागम में कथा को सुनने के लिए जिला व बाहरी स्थनों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं और बाबा बाल जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। शुक्रवार को भी सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु कथा सुनने व बाबा बाल जी के दर्शनों के लिए पहुंचे। कथा के दौरान राष्ट्रीय संत बाबा बाल जी महाराज ने श्रीकृष्ण की लीलाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए कहा कि श्री कृष्ण के लीला काल का समय था, गोकुल में एक मोर रहता था। वह मोर बहुत चतुर था और श्रीकृष्ण का भक्त था। वह श्री कृष्ण की कृपा पाना चाहता था। इसके लिए उस मोर ने एक युक्ति सोची। वह श्रीकृष्ण के द्वार पर जा पहुंचा, जब भी श्री कृष्ण द्वार से अंदर-बाहर आते-जाते तो उनके द्वार पर बैठा वह मोर एक भजन गाता। मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे, गोपाल सांवरिया मेरे, मां बाप सांवरिया मेरे… इस प्रकार प्रतिदिन वह यही गुनगुनाता रहता और इसी तरह एक साल व्यतीत हो गया। परंतु कृष्ण जी ने उसकी एक न सुनी। एक दिन दुखी होकर मोर रोने लगा। तभी वहां से एक मैना उड़ती जा रही थी। उसने मोर को रोता हुए देखा तो बहुत अचंभित हुई। वह अचंभित इसलिए नहीं थी कि मोर रो रहा था, वह इसलिए अचंभित हुई कि श्रीकृष्ण के द्वार पर कोई रो रहा था। मैना मोर के पास गई और उससे उसके रोने का कारण पूछा। मोर ने बताया कि पिछले एक वर्ष से में प्रभु श्रीकृष्ण को रिझा रहा हूं, लेकिन उन्होंने आज तक मुझे पानी भी नहीं पिलाया।

यह सुनकर मैना बोली कि मैं श्रीराधे के बरसना से आई हूं, तू मेरे साथ वहीं चल, राधे रानी बहुत दयालु हैं। वह तुझ पर अवश्य ही करुणा करेंगी। मोर ने मैना की बात से सहमति जताई और दोनों उड़ते-उड़ते बरसाने पहुंच गए। राधा रानी के द्वार पर पहुंचकर मैना ने गाना शुरू किया कि श्री राधे-राधे, राधे बरसाने वाली राधे। परंतु मोर तो बरसाने में आकर भी यही दोहरा रहा था कि मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे, गोपाल सांवरिया मेरे, माँ बाप सांवरिया मेरे, जब राधा ने ये सुना तो वो दोड़ी चली आई और प्रेम से मोर को गले लगा लिया और मोर से पूंछा कि तू कहां से आया है। तब मोर बोला कि जय हो राधा रानी।

आज तक सुना था कि तुम करुणामयी हो और आज देख भी लिया। राधा रानी बोली वह कैसे? तब मोर बोला मैं पिछले एक वर्ष से के द्वार पर कृष्ण नाम की धुन गाता रहा हूं, किंतु श्रीकृष्ण ने मेरी सुनना तो दूर कभी मुझको थोड़ा सा पानी भी नहीं पिलाया। राधा रानी बोली अरे नहीं मेरे कृष्ण ऐसे नहीं है, तुम एक बार फिर से वही जाओ। परंतु इस बार कृष्ण्-कृष्ण नहीं राधे-राधे रटना। मोर ने राधा रानी की बात मान ली और लौट कर गोकुल वापस आ गया। फिर से कृष्ण के द्वार पर पहुंचा और इस बार रटने लगा कि जय राधे राधे, जय राधे राधे, जय राधे राधे। जब कृष्ण ने ये सुना तो भागते हुए आएं। उन्होंने भी मोर को प्रेम से गले लगा लिया और बोले हे मोर, तू कहां से आया है। यह सुनकर मोर बोला कि वाह रे प्रभु, जब एक वर्ष से आपके नाम की रट लगा रहा था, तो कभी पानी भी नहीं पूछा और जब आज जय राधे राधे बोला तो भागते हुए पहुंचे। श्रीकृष्ण बोले अरे बातों में मत उलझा, पूरी बात बता। तब मोर ने समस्त वृतांत कृष्ण को कह सुनाया। इस पर कृष्ण बोले कि मैनें तुझको कभी पानी नहीं पिलाया, यह मैंने पाप किया है और तूने राधा का नाम लिया, यह तेरा सौभाग्य है। इसलिए मैं तुझको वरदान देता हूं कि जब तक ये सृष्टि रहेगी, तेरा पंख सदैव मेरे शीश पर विराजमान होगा और जो भी भक्त राधा का नाम लेगा, वो भी सदा मेरे शीश पर रहेगा। प्रवचनों के अंत में बाबा बाल जी महाराज ने कहा कि मोर को उसकी भक्ति का फल मिला और उसे वरदान भी मिला। इसलिए मनुष्य को भी सिर्फ प्रभु को पाने के लिए भक्ति करनी चाहिए। क्योंकि भक्ति की शक्ति के आगे प्रभु भी हार जाते हैं और अपने भक्तों को सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं।


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