‘जन रथ’ के सहारे ‘राम रथ’ को टक्कर

By: Feb 20th, 2024 12:05 am

लोकसभा चुनावों के दृष्टिगत कांग्रेस के पास ऐसे बजटीय प्रावधानों के हथियार होंगे जो प्रदेश के लाखों लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं, बशर्ते कांग्रेस इन्हें अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने में कामयाब हो जाए…

हिमाचल प्रदेश के इस वर्ष के बजट के अवलोकन के पश्चात इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से उपजी लोकप्रियता के रथ पर सवार भाजपा के चुनावी रथ के पहियों को चुनावी दलदल में घसीटने की पूरी तैयारी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने की है। हिमाचल प्रदेश की 90 प्रतिशत जनता, जो गांवों में रहती और सीधे तौर पर कृषि, बागवानी और मनरेगा के साथ जुड़ी है, उन्हें इस वर्ष के बजट में कुछ ‘मुफ्त’ में न देकर उनकी आर्थिकी को संबल बनाने के जो उपाय किए हैं, अगर कांग्रेस पार्टी उन्हें आने वाले समय में भुना पाती है तो वह निश्चित रूप से भाजपा को चारों लोकसभा सीटों पर कड़ी टक्कर देने की स्थिति में हो जाएगी जो अब तक नहीं दिख रही है।

प्रदेश में अगर किसी एक कार्य से सबसे अधिक लोग जुड़े हैं, तो वह है ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’, अर्थात मनरेगा। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार प्रदेश की 75 लाख की कुल जनसंख्या में से 27.7 लाख लोग मनरेगा श्रमिक के रूप में पंजीकृत हैं जिनमें से 14 लाख 50 हजार लोग मनरेगा में नियमित रूप से कार्य कर रहे हैं। हैरानी की बात है कि इनमें से लगभग 9 लाख 42 हजार (65 प्रतिशत) महिलाएं हैं। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 15 अगस्त को मनेरगा की दिहाड़ी को 224 से 240 रुपए और अब इसे बढ़ाकर 300 रुपए करके प्रदेश के 27 लाख 70 हजार लोगों को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया है। प्रदेश सरकार के इस कदम से ग्रामीण अर्थिकी में बहुत ज्यादा मजबूती आएगी। एक वर्ष के कार्यकाल में 76 रुपए की दैनिक वृद्धि किसी भी सरकार के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। प्रदेश के इतिहास में यह पहली बार होगा कि इतना बड़ा वर्ग सरकार प्रदत्त लाभ से सीधे तौर पर लाभान्वित होगा। श्रमिकों के लिए यह वृद्धि किसी सरकारी कर्मचारी के लिए वेतन आयोग के लाभों के मिलने के समान ही है। सरकार के इस फैसले से एक मनरेगा श्रमिक की मासिक आय 2880 रुपए बढ़ जाएगी। भाजपा चाहकर भी कांग्रेस को इसका लाभ लेने से रोक नहीं पाएगी क्योंकि पिछले अप्रैल में जब केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा श्रमिकों के पारिश्रमिक में वृद्धि के चलते प्रदेश सरकार ने मनरेगा की दिहाड़ी 224 से 240 रुपए की थी, तब भी भाजपा नेता सोये हुए ही थे और अब तो 60 रुपए की वृद्धि में केंद्र सरकार का कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि इसे प्रदेश सरकार अपने संसाधनों से देने वाली है।

वर्तमान बजट में एक और बड़ा प्रावधान जो आने वाले समय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़ा अंतर लेकर आएगा, वह है दूध खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का फैसला और उसके लिए बजटीय प्रावधान। प्रदेश सरकार ने इस वर्ष जनवरी में दूध का खरीद मूल्य 32 से बढ़ाकर 38 रुपए कर दिया था जिसे अब बढ़ाकर 45 रुपए और भैंस के दूध के खरीद मूल्य को 47 से बढ़ाकर 55 रुपए करके इस क्षेत्र में नई क्रांति की आधारशिला रख दी है। पहले सरकार के इस फैसले का लाभ केवल मिल्क फेडरेशन से जुड़ी 1100 सोसाइटियों और उनके 49000 सदस्यों को ही मिलता था, पर इस बजट में सरकार द्वारा दूध खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा के पश्चात प्रदेश का प्रत्येक दुग्ध उत्पादक इसका लाभ उठा पाएगा। एक वर्ष में दूध के खरीद मूल्य में 13 रुपए की वृद्धि के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि एक दिन में 10 लीटर दूध का उत्पादन करने वाले दुग्ध उत्पादक की आय में सरकार के इस फैसले से 130 रुपए दैनिक और 1690 रुपए की मासिक बढ़ोतरी हो जाएगी। गौरतलब है कि इस समय प्रदेश में 27 लाख के करीब गौवंश और 7 लाख के करीब महिश वंश है जो लगभग 17 लाख मीट्रिक टन दूध का उत्पादन करता है। जबकि प्रदेश की जरूरत करीब 19 लाख मीट्रिक टन है। दो लाख मीट्रिक टन का यह अंतर हमें दूसरे प्रदेशों से आयात करके पूरा करना पड़ता है। सरकार का यह फैसला दूध उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा।

प्राकृतिक कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो निकट भविष्य में हिमाचल की आर्थिकी का मजबूत आधार हो सकता है। पूर्व राज्यपाल डा. देवव्रत आचार्य ने प्रदेश में प्राकृतिक खेती को साधारण किसान से जोडऩे की दिशा में गंभीर प्रयास किए थे, परंतु उनके गुजरात जाने के बाद सरकार के ढुलमुल रवैये और प्राकृतिक उत्पादों के विक्रय के लिए सशक्त ढांचा न होने के कारण प्राकृतिक खेती की अवधारणा धीरे-धीरे दम तोड़ रही थी। वर्तमान बजट में प्राकृतिक रूप से उगाए गए गेहूं के लिए 40 रुपए और मक्की के लिए 30 रुपए के न्यूनतम समर्थन मूल्य के फैसले ने इस क्षेत्र में नई जान डाल दी है। रासायनिक खादों के उपयोग से पैदा की गई गेंहू का समर्थन मूल्य 22.75 रुपए और मक्की का 20.90 रुपए है। समर्थन मूल्य का यह अंतर ही किसानों को प्राकृतिक कृषि की तरफ मोडऩे के लिए पर्याप्त है।

उपरोक्त वर्णित तीन क्षेत्रों के अतिरिक्त इस बजट में अगर सक्षम हिमाचल का संकल्प कहीं दिखता है तो वह है सौर ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता। इसी वित्तीय वर्ष में 327 इलेक्ट्रिक वाहन और 10000 ई-टैक्सी परमिट का सुखद फैसला प्रदेश के पर्यावरण को शुद्धता प्रदान करेगा, वहीं युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। इसी के साथ केंद्र सरकार के रूफ टॉप सौर ऊर्जा योजना के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाकर बजट में अतिरिक्त प्रावधान करके मुख्यमंत्री ने प्रदेश हित को ही साधा है। इन कुछ प्रावधानों को छोड़ दिया जाए तो इस बजट में कुछ खास इसलिए भी नजर नहीं आता है क्योंकि वर्तमान मुख्यमंत्री भी अपने पूर्वगामियों की भांति सबको खुश करने की नीति पर ही चलते हुए दिख रहे हैं। लोकसभा चुनावों के दृष्टिगत कांग्रेस के पास नि:संदेह ऐसे बजटीय प्रावधानों के हथियार होंगे जो प्रदेश के लाखों लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं, बशर्ते कांग्रेस की सरकार व संगठन इन्हें अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने में कामयाब हो जाएं, अन्यथा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डा. बिंदल जैसे रणनीतिकार के नेतृत्व में राम रथ पर सवार व उत्साह से भरे हुए भाजपा संगठन से टक्कर लेना आसान नहीं है, खासकर तब, जब गारंटी मोदी खुद दे रहे हों।

प्रवीण कुमार शर्मा

सतत विकास चिंतक


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