ये ‘कमल’ खिलाते कांग्रेसी

By: Feb 19th, 2024 12:05 am

यह लोकसभा चुनाव का मौसम है, लिहाजा प्रत्येक राजनीतिक घटनाक्रम महत्वपूर्ण है। एक तरफ विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की संभावनाएं समाप्त हो गई हैं, दूसरी तरफ भाजपा का कुनबा विस्तृत होता जा रहा है। उसकी चुनावी चुनौती भी ‘अपराजेय’ लगती है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी बिखर रही है, जिसके नेता पार्टी छोड़ कर भाजपा या अन्य दलों में शामिल हो रहे हैं। कांग्रेस का राजनीतिक और वैचारिक घर टूट रहा है, यह अत्यंत महत्वपूर्ण और चिंतित सरोकार है। सरोकार इसलिए है, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 12 करोड़ मतदाताओं ने कांग्रेस के पक्ष में वोट किया था। यह कोई सामान्य जनाधार नहीं है, लिहाजा कांग्रेस का चिंतित विश्लेषण करना आज मौजू है। ताजा खबर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, 9 बार के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ की है। फिलहाल अटकलें हैं कि वह और उनके सांसद-पुत्र नकुल नाथ कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़ कर भाजपा का साथ देने जा रहे हैं। बिना आग के धुआं नहीं होता! यह उक्ति फिजूल नहीं है। चूंकि नकुल नाथ ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से कांग्रेस का नाम और चुनाव चिह्न हटा दिए हैं। ऐसा कई कांग्रेस विधायकों और पूर्व विधायकों ने भी किया है। सोशल मीडिया पर ‘जय श्री राम’ और ‘परिवारजनों के साथ’ लिखा गया है।

प्रधानमंत्री मोदी अपने संबोधनों में अक्सर ‘परिवारजनों’ कहते रहे हैं, लिहाजा यह भी पुख्ता संकेत हो सकता है। अचानक छिंदवाड़ा से दिल्ली आए कमलनाथ ने इन अटकलों का खंडन तक नहीं किया है। वह ‘इस तरफ या उस तरफ’ की भाषा बोल रहे हैं। मीडिया को भी आश्वस्त कर रहे हैं कि जैसे भी कोई खबर होगी, सबसे पहले आपके साथ साझा करूंगा।’ बहरहाल कमलनाथ ने 50 साल से अधिक समय तक कांग्रेस के साथ रहकर राजनीति की है। यकीनन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उन्हें अपना ‘तीसरा बेटा’ मानती थीं। यदि अब 77 साल की उम्र में वह राजनीतिक पाला बदलते हैं और बेटे का संसदीय करियर सुरक्षित करना चाहते हैं, तो वे दोनों कांग्रेस से भाजपा में आ सकते हैं। यह पालाबदल कांग्रेस के लिए ‘आत्मघाती’ साबित हो सकता है, क्योंकि मुख्यमंत्री स्तर के नेता पार्टी छोड़ रहे हैं और कांग्रेस आलाकमान इसे ‘आंतरिक लोकतंत्र’ करार दे रहा है। कमलनाथ नया उदाहरण हो सकते हैं, लेकिन अशोक चव्हाण, गुलाम नबी आजाद, एसएम कृष्णा, विजय बहुगुणा, दिगंबर कामत, मुकुल संगमा, किरन रेड्डी, एन. वीरेन सिंह, कैप्टन अमरिंदर सिंह, नारायण राणे आदि 13 कांग्रेसी मुख्यमंत्री पार्टी छोड़ कर भाजपा का ‘कमल’ खिला चुके हैं। बुनियादी सवाल है कि आखिर इतने वरिष्ठ और परंपरागत कांग्रेस नेता पार्टी को अलविदा कहने को विवश क्यों हो रहे हैं? सभी को प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई, आयकर विभाग के खौफ नहीं हैं। दरअसल यह कांग्रेस के भीतर की हताशा और चुनाव न जीतने की संभावनाएं ही हैं कि कांग्रेसी ‘अपना घर’ छोड़ रहे हैं।

भाजपा में संभावनाएं और राजनीतिक आयाम बेहद व्यापक हैं। जिन्होंने कांग्रेस छोड़ी है, उन्हें या तो राज्यसभा में भेजा गया है अथवा राज्य सरकारों में मंत्री या केंद्रीय मंत्री बनाया गया है। कांग्रेस कमलनाथ को राज्यसभा में भेजकर मना नहीं सकी। भाजपा ने हिमंता बिस्व सरमा, पेमा खांडू और माणिक साहा तो क्रमश: असम, अरुणाचल और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बना दिए हैं। महाराष्ट्र के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने बीते सप्ताह ही कांग्रेस छोड़ी है और भाजपा के राज्यसभा सांसद बन गए हैं, लेकिन कांग्रेस में किसी भी स्तर पर, अपने वरिष्ठ चेहरों को, मनाने की कवायद तक नहीं की गई। भाजपा तो तैयार बैठी है। यही राजनीति है। यदि छिंदवाड़ा से कमलनाथ भाजपा में आ जाते हैं, तो भाजपा को वह लोकसभा सीट जीतना भी तय हो जाएगा, जिसे आज तक भाजपा कभी भी हासिल नहीं कर सकी है। भाजपा की चुनावी रणनीति यही है कि एक-एक सीट सुनिश्चित कर वह 370 के ‘टारगेट’ तक पहुंचना चाहती है। कांग्रेस ‘इंडिया’ के दलों को संजोने में नाकाम रही है। आत्मचिंतन से रास्ता निकल सकता है कि घर को जोड़ कर कैसे रखा जा सकता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App