संदेशखाली का संदेश

कोलकाता की नाक के नीचे शाहजहां ने वहां की महिलाओं के लिए जितना भयंकर नर्क तैयार किया हुआ था, वह सरकारी मशीनरी की प्रत्यक्ष-परोक्ष सहायता के बिना संभव नहीं है। ममता बनर्जी ने संदेशखाली की इन महिलाओं को सबक सिखाने की सोची। उन्होंने संदेशखाली में किसी के भी जाने पर पाबंदी लगा दी। धारा 144 लगा दी। यानी तगड़ा मारे भी और रोने भी न दे। पत्रकारों को रोका ही नहीं गया, बल्कि उनको कैमरों के सामने ही गिरफ्तार कर लिया। पश्चिमी बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को संदेशखाली जाने के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट जाना पड़ा…

पश्चिमी बंगाल के एक ग्राम नंदी ग्राम को उस गांव के लोगों के सिवा कोई नहीं जानता था। लेकिन सारी दुनिया के वे लोग जो विश्व के सामाजिक आंदोलनों में रुचि रखते हैं, नंदी ग्राम को जानते हैं। नंदी ग्राम के लोगों ने पश्चिमी बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार की तानाशाही का विरोध लाठी-गोली खाकर भी किया था। लम्बे अरसे से सरकार में बने रहने के कारण कम्युनिस्टों ने सर्वहारा की तानाशाही का अर्थ सीपीएम की तानाशाही ही समझ लिया था। लेकिन उस वक्त नंदी ग्राम में तानाशाही के खिलाफ इस आंदोलन का नेतृत्व तमाम खतरे उठाकर भी वह ममता बनर्जी कर रही थी जिसने सीपीएम को अपदस्थ करके कोलकाता के राईटर्ज भवन पर कब्जा किया था। उस वक्त सत्ता के नशे में मदहोश कम्युनिस्ट नंदी ग्राम के संदेश को पकड़ नहीं पाए थे। इसका एक कारण यह भी था कि उनका संबंध प्रदेश की आम जनता से टूट चुका था। लगता है बंगाल में इतिहास एक बार फिर अपने आपको दोहराने के मुहाने पर आ गया है। जिला चौबीस परगना का संदेशखाली, जो सरकार चला रही तृणमूल कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, पिछले लगभग एक मास से सुर्खियों में है। सुर्खियों में रहने का कारण तृणमूल कांग्रेस के एक बड़े नेता शाहजहां शेख के व्यवहार से हुआ, लेकिन जब ज्वालामुखी फटा तो उसके नीचे से शाहजहां द्वारा बनाया गया ऐसा नर्क सामने आया जिससे किसी का भी दम घुटने लगे। शाहजहां तृणमूल कांग्रेस का नेता है और पार्टी की ओर से जिला परिषद का निर्वाचित सदस्य है।

उसके अनेक प्रकार के धन्धे हैं। उनमें से एक मनी लांड्रिंग का भी है। मनीलांड्रिंग का अर्थ है काले धन को सफेद करना। यानी नाजायज साधनों से प्राप्त नाजायज काले धन को सफेद बनाना। हिन्दी वाले इसे धन शोधन कहते हैं, यानी धन को शुद्ध करना। पिछले दिनों प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने मनी लांड्रिंग के मामलों को लेकर उसके घर छापा मारा था। अलबत्ता जब ईडी के बड़े अधिकारी शाहजहां शेख के घर पहुंचे तो उसने उनके स्वागत के लिए पुराने मुगल बादशाह शाहजहां की तरह की ही व्यवस्था कर रखी थी। उसके लोगों ने ईडी के अधिकारियों को घेर लिया और दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। किसी की यह हिम्मत कि शाहजहां के महल पर छापा मारे? ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी की पुलिस भी शाहजहां शेख को मुगल बादशाह शाहजहां ही समझ रही थी। पुलिस ने ईडी के अधिकारियों की मदद करने की बजाय उन पर हमला कर रही शाहजहां की सेना की ही मदद करनी शुरू की। इतना ही नहीं, ईडी के अधिकारियों पर केस दर्ज कर दिया कि उन्होंने शाहजहां के महल में चोरी की है। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आग उगलनी शुरू कर दी। उनके लिए यह जरूरी था क्योंकि उनके आसपास के लोग उन्हें अग्निकन्या कहते हैं। अग्निकन्या का कहना था कि केन्द्र सरकार उनकी पार्टी के लोगों को बिना कारण के तंग कर रही है। लेकिन शाहजहां शेख इतना मूर्ख नहीं था। वह समझ गया था कि अग्निकन्या को अन्दाजा नहीं कि मामला ज्यादा बढ़ गया है। अब वह ममता बनर्जी की छत्रछाया में रहकर भी बच नहीं पाएगा। मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है। इसलिए वह संदेशखाली में अपना महल और सिंहासन छोड़ कर भाग निकला। अब भाग निकला या पुलिस ने ही भगा दिया, यह अपने आप में अलग जांच का विषय है। वैसे ममता की पुलिस का कहना है कि वह उसे तलाश करने में आकाश-पाताल एक कर रही है। जब वहां के लोगों को यकीन हो गया कि शाहजहां शेख अपनी खाल बचाता घूम रहा है तो उनमें भी अपना दर्द बयान करने का साहस आ गया। लेकिन जब वहां की औरतों ने अपना दर्द बयान करना शुरू किया तो सचमुच भूकम्प आ गया।

उनका कहना था कि तृणमूल के कार्यकर्ता बाकायदा घरों में जा-जाकर सर्वे करते हैं। पहली नजर में कोई भी समझेगा कि इसमें क्या बुरा है। सरकार अपनी लोक कल्याणकारी योजनाओं को असली गरीबों तक पहुंचाने के लिए यदि सर्वे कर रही है, तब तो इसका स्वागत ही होना चाहिए। लेकिन पता चला कि शाहजहां के कार्यकर्ता कल्याणकारी योजनाओं के लिए सर्वे नहीं करते, बल्कि परिवारों में सुन्दर विवाहित/अविवाहित औरतों की तलाश में सर्वे करते हैं और जहां से भी सुन्दर औरत मिलती है, उसको उठाकर ले जाते हैं और सामूहिक बलात्कार करते हैं। उनका अपहरण करते हैं। कई परिवार तो शाहजहां के इस सर्वे के आतंक से अपनी युवा लड़कियों को बाहर रिश्तेदारों के पास भेजने लगे थे। यह भी आरोप लग रहे हैं कि इस सर्वे का शिकार हिन्दु लड़कियां ही होती थीं। इनके साथ सामूहिक बलात्कार होता था। इनके पतियों को या तो भगा दिया जाता था या फिर उन्हें वक्त से समझौता करना पड़ता था। और उस मामले में उस वक्त का नाम शाहजहां था। इतना ही नहीं लड़कियों को उठा लेने के बाद धीरे धीरे उनकी जमीन जायदाद पर भी कब्जा कर लिया जाता था। उन सब के लिए संदेश खाली एक जीता जागता दोजख बन गया था। यह शाहजहां की वह ‘सरकार’ थी जहाँ हिन्दु औरतों को सैक्स के लिए दास बना लिया गया था। लगता है सत्ता के लालच में उन्होंने बंगाल के कुछ हिस्सों की ठेकेदारी कुछ शाहजहाँ जैसे ठेकेदारों को सौंप रखी है जो अपने इलाके की एकमुश्त वोटें ‘अग्निकन्या’ को दिलवा दें, उसके बाद वे अपनी ‘रिआया’ के साथ वह सब कुछ करें जो शाहजहाँ और उसकी सर्वे टीम संदेशखाली में कर रही है। लेकिन ममता बनर्जी के लिए इन चीज़ों का कोई अर्थ नहीं है। वे संदेशखाली को इस प्रकार देख रही थी जिस प्रकार कभी सीपीएम नंदी ग्राम को देखा करता था। वे संदेशखाली की औरतों की पीड़ा या तो समझ नहीं पाई या फिर सत्ता के अहंकार में समझना नहीं चाहतीं। ध्यान रखना चाहिए कि संदेशखाली कोलकाता से महज 70 किलोमीटर दूर है ।

कोलकाता की नाक के नीचे शाहजहां ने वहां की महिलाओं के लिए जितना भयंकर नर्क तैयार किया हुआ था, वह सरकारी मशीनरी की प्रत्यक्ष-परोक्ष सहायता के बिना सम्भव नहीं है। ममता बनर्जी ने संदेशखाली की इन महिलाओं को सबक सिखाने की सोची। उन्होंने संदेशखाली में किसी के भी जाने पर पाबंदी लगा दी। धारा 144 लगा दी। यानी तगड़ा मारे भी और रोने भी न दे। पत्रकारों को रोका ही नहीं गया, बल्कि उनको कैमरों के सामने ही गिरफ्तार कर लिया। पश्चिमी बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेन्दु अधिकारी को संदेशखाली जाने के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट जाना पड़ा। ममता की सरकार इतनी निर्मम हो गई है कि न तो उसे पीडि़त शोषित महिलाओं की चीखें सुनाई दे रही हैं और न ही वे किसी और को उनकी सहायता के लिए जाने देना चाहती हैं। रहा प्रश्न बंगाल के नए शाहजहां का, कहा जाता है कि वह पुलिस की पकड़ से बाहर है। यह भी कहा जा रहा है कि सरकार ने कानून के लम्बे हाथ ही काट दिए हैं, ताकि वे इस नए शाहजहां तक न पहुंच पाएं। अब न्याय कैसे होगा?

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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