किसान मांगों के वित्तीय आयाम

By: Feb 15th, 2024 12:05 am

यह किसान आंदोलन नहीं, हिंसक टकराव लगता है। चूंकि 2500 टै्रक्टर और अन्य निजी गाडिय़ां पंजाब से रवाना हुई थीं। वे दिल्ली जाने पर आमादा हैं। ऐसे में हालात हिंसक होना स्वाभाविक है। सुरक्षा बलों और पुलिस को ड्रोन से आंसू गैस के गोले दागने पड़े, क्योंकि कानून-व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार का दायित्व है। किसानों को खदेडऩा पड़ा, तो पलट कर उन्होंने जमकर पथराव किया। शंभु बॉर्डर पर इस टकराव में 100 से अधिक किसान घायल हुए और 50 से ज्यादा बेहोश हुए, जबकि अंबाला के डीएसपी समेत 21 पुलिसकर्मी भी जख्मी हुए। क्या ऐसे आंदोलन से किसानों की समस्याएं हल हो सकती हैं? मांगें मानी जा सकती हैं? दरअसल किसानों की मांगें वित्तीय और बजटीय अधिक हैं, लिहाजा आज हम उन्हीं आयामों का विश्लेषण करेंगे। सवाल है कि जब स्वामीनाथन आयोग ने नवंबर, 2006 तक अपनी छह रपटें भारत सरकार को सौंप दी थीं, तो उन्हें लागू क्यों नहीं किया गया? क्योंकि डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार जानती थी कि रपट के मुताबिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किया गया, तो वित्तीय स्थिरता डगमगा सकती है और खाद्य मुद्रास्फीति 25-30 फीसदी तक बढ़ सकती है। क्या किसान देश में ऐसे आर्थिक हालात चाहते हैं? प्रख्यात कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी का आकलन भी यही है। उनका कहना है कि मनमोहन सिंह सरीखे अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री एमएसपी गारंटी कानून का रास्ता नहीं अपनाएंगे, लिहाजा सरकार ने उन रपटों को लागू नहीं किया। यह आकलन भी है कि यदि सरकार को एमएसपी गारंटी पर ही 22-23 फसलों की खरीद करनी पड़े, तो उसे कमोबेश 10 लाख करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे।

यह राशि देश के आधारभूत ढांचे के लिए तय बजट के लगभग बराबर है। हमारा कुल खर्च बजट करीब 45 लाख करोड़ रुपए का है। यदि इसका एक-चौथाई हिस्सा फसलों की खरीद पर ही खर्च किया जाता है, तो अन्य विकास परियोजनाओं का क्या होगा? मौजूदा सरकार ने अपने 10-साला कार्यकाल के दौरान 18.40 लाख करोड़ रुपए के एमएसपी बढ़ाए हैं। जाहिर है कि किसानों की फसलें बेहतर दाम पर बिक रही हैं। यदि उन्हें कम दाम मिलते हैं अथवा मंडियों में आढ़तियों के गिरोह किसान का आर्थिक शोषण करते हैं, तो वह खुले बाजार की व्यवस्था को स्वीकार क्यों नहीं करता? भारत सरकार की विभिन्न एजेंसियां 2.28 लाख करोड़ रुपए सालाना की फसलें खरीदती हैं, जबकि यूपीए सरकार के दौरान 1.06 लाख करोड़ रुपए की फसलों की खरीद ही की जाती थी। बहरहाल आंदोलित किसानों की मांगें सिर्फ एमएसपी गारंटी कानून तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि वे आग्रह कर रहे हैं कि भारत ‘विश्व व्यापार संगठन’ से बाहर आ जाए। उसके साथ समझौते को रद्द कर दे। यह कैसे संभव है? भारत ने यूपीए सरकार के दौरान इस संगठन के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे। कल किसान कहेंगे कि अमुक देश के साथ कारोबार करना या नहीं करना है। वे अनाप-शनाप आग्रह कर सकते हैं। उन्हें मानना कैसे संभव है? इसके अलावा, किसान 10,000 रुपए माहवार की पेंशन और फसल बीमा की किस्त का सरकार द्वारा ही भुगतान की मांग भी कर रहे हैं। देश के अन्य समुदाय, पेशेवर और उद्यमी भी ऐसी मांगों को लेकर आंदोलन करेंगे। देश की सरकार क्या करेगी और बजट कहां से लाएगी? सिर्फ किसानों के लिए देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद नहीं की जा सकती।


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