जेब में चने, तो रिश्ते घने

By: Feb 8th, 2024 12:08 am

जब कोई व्यक्ति हमें कोई ऐसी बात बताए जो हमें पहले से मालूम हो तो यह कहने के बजाय कि मुझे पता है, हम अगर कहें कि आप सही कह रहे हैं तो कितना अच्छा होगा? किसी के साथ बहस के समय अगर हम ऐसा करें तो बहस की गर्मी और कड़वाहट खत्म हो जाती है। तब वह बहस के बजाय एक-दूसरे का नजरिया समझने का जरिया बन जाती है। इसी तरह अगर हम किसी को अपनी बात समझा रहे हों तो यह कहने के बजाय कि आपके कोई सवाल हों तो पूछ लीजिए, हम अगर यह कहें कि आपके सवाल क्या हैं, तो सामने वाले को अपनी बात कहने में झिझक नहीं होगी, और वो खुलकर अपनी बात रख सकेंगे। इससे हमें यह लाभ होगा कि हम सामने वाले के दिल का संशय दूर कर सकेंगे, अपनी बात का बेहतर खुलासा कर सकेंगे…

जीवन है तो संघर्ष तो होगा ही, समस्याएं तो होंगी ही, चुनौतियां तो होंगी ही, और यही नहीं, जीवन में कुछ ऐसे लोग भी मिलेंगे जो बिना कारण हमारा दिल दुखा दें, अपमान कर दें, और उनको समझाना या उनसे दूर हो जाना कठिन हो। हमारा कोई करीबी रिश्तेदार ही ऐसा हो सकता है जो हमेशा हमारी आलोचना करता रहे, हम में कमियां निकालता रहे, और उस रिश्ते की वजह से उन्हें छोडऩा या उनसे दूर हो जाना संभव न हो। ऐसे में निराशा भी होती है, दुख भी होता है और गुस्सा भी आता है। सवाल ये है कि जब कोई हमारी बात न माने, या न समझे तो क्या करें? जब कोई हमारा अपमान कर दे तो क्या करें? गुस्सा आए तो क्या करें? मैं जब छोटा था तो मैंने अपने पिताजी से एक महत्वपूर्ण सबक सीखा। वो हमेशा अपने कुर्ते की जेब में भुने हुए चने रखा करते थे। जेब में हाथ डालना आसान होता है, इसलिए चने हमेशा उनकी पहुंच में होते थे। उन्होंने इसे इस हद तक अपनी आदत में शामिल कर लिया था कि जीवन की कोई भी कठिन परिस्थिति होती या अगर कभी कोई उन्हें कोई कड़वी बात कहता तो उनका हाथ अपने आप जेब में चला जाता और वे चने निकाल कर चबाने लगते। इस आदत के दो लाभ थे। चने चबाना सेहत के लिए अच्छा है जो उन्हें स्वस्थ बनाए रखता और इतनी ऊर्जा और शक्ति देता कि वे दिन भर का अपना काम आसानी से कर सकें, लेकिन सबसे बड़ी बात यह थी कि जब कभी उन्हें कुछ कड़वी बात सुनने को मिलती और वे आदतन चने चबाने लगते तो लाभ ये होता था कि वे एकदम से अपमानजनक बात का जवाब देने के बजाय ये सोच लेते कि उन्हें क्या जवाब देना है, जवाब कैसे देना है, किन शब्दों में देना है, और जवाब देना भी है या चुप रह जाना है।

अक्सर वो सामने वाले की आंखों में झांकते और बड़े विश्वास से पूछते .. ‘आर यू ओके? आप ठीक तो हैं न?’ अक्सर ये जवाब नश्तर की तरह काम करता और सामने वाला हड़बड़ा जाता। जीवन की बहुत सी ऐसी स्थितियां होती हैं जो हमें नए सबक सिखाती हैं, बशर्ते कि हम सीखने के लिए तैयार हों। अगर हम आवश्यक सबक सीख लेते हैं तो वैसी स्थिति दोबारा आने पर उससे पार पाना बहुत आसान हो जाता है और अगर हम वह आवश्यक सबक नहीं सीखते तो वैसी स्थिति जीवन में बार-बार आती रहती है और हम एक कठपुतली की तरह किसी दूसरे के इशारों पर नाचने के लिए मजबूर बने रहते हैं। इसे समझना आवश्यक है। हम सब जानते हैं कि अदालतों में वकील लोग अपने विपक्षी पक्ष के गवाहों को तोडऩे के लिए अक्सर उन्हें गुस्सा दिलाते हैं। उनसे सवाल पूछते हुए जानबूझ कर ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जिससे गवाह को गुस्सा आ जाए, और गुस्से में गवाह वो बातें भी बोल जाता है जो वह अन्यथा कभी न बताता। गुस्सा आने पर हमारा खुद से नियंत्रण हट जाता है और सामने वाला व्यक्ति हमें मनचाहे ढंग से नचा सकता है, हमें मैनिपुलेट कर सकता है, हमसे अनचाहे काम करवा सकता है। आज के आधुनिक युग में जेब में चने रखना शायद संभव न हो तो उसका भी इलाज है। हम अपने किसी बड़े अधिकारी के पास बैठे हों, अपने किसी क्लायंट के पास बैठे हों और कोई असहज स्थिति उत्पन्न हो जाए तो चने चबाना संभव नहीं है। इलाज यह है कि किसी ऐसी जेब में, जहां हाथ आसानी से पहुंच सकता हो, शालिग्राम रखें, बुद्ध की मूर्ति रखें, अपने किसी इष्ट देव की छोटी सी मिनियेचर मूर्ति रखें, या कुछ सिक्के ही रखें और उन तक हाथ ले जाएं। जब यह एक आदत बन जाएगी तो हम रियेक्ट नहीं करेंगे, एकदम से फट नहीं पड़ेंगे, कुछ उल्टा-सीधा नहीं बोल देंगे और सोच-समझ कर, तोल-मोल कर जवाब दे सकेंगे। ऐसा करेंगे तो जीवन में कभी बाद में पछताना नहीं पड़ेगा। एक और बड़ी बात।

हमारा दिमाग कल्पना में और असलियत में फर्क नहीं करता। खुद ही एक प्रयोग करके देख सकते हैं, कभी भी, कहीं भी। हम अगर मन में कल्पना करें कि हम कहीं जा रहे हैं और अचानक से फिसल कर गिर गए तो हम पाएंगे कि हमने गिरने की सिर्फ कल्पना की, लेकिन शरीर यूं सिहर गया मानो सचमुच गिर ही गए हों। कल्पना का यही कमाल है। हम इसे अपने जीवन में अपने लाभ के लिए भी अपना सकते हैं। कोई असहज स्थिति आए, कोई हमें कोई कड़वी बात कह दे, कोई हमारा अपमान कर दे, कोई बहुत समझाने पर भी हमारी बात न समझे, हमें गुस्सा आ रहा हो, तो बस हम कल्पना करें कि जेब में चने पड़े हैं, या हमारे इष्टदेव की मूर्ति पड़ी है, या कुछ सिक्के पड़े हैं और हम उन्हें टटोल रहे हैं। इस कल्पना की आदत डाल लेंगे तो फिर सारा काम आसान हो जाएगा, सारा काम खुद-ब-खुद होने लग जाएगा। कुछ भी जवाब देने से पहले हमें सोचने का वक्त मिल जाएगा और हम ऐसी कोई उल्टी-सीधी बात कहने से बच जाएंगे जिसके लिए हमें बाद में पछताना पड़ता। ऐसी ही कुछ छोटी-छोटी, आसान और अच्छी आदतें और भी हैं। जब भी हमें हमारे कोई परिचित मिलें तो हम मुस्कुरा कर उनका स्वागत करें, मुस्कुराते हुए बातचीत करें तो उनके मन पर हमारा प्रभाव हमेशा के लिए अंकित हो जाएगा, पक्की छाप छोड़ेगा। लोग अक्सर पीठ पीछे किसी की बुराई करते हैं। इसके बजाय पीठ पीछे लोगों की प्रशंसा करने की आदत अपना लें तो यह बात घूम फिर कर कभी न कभी उस व्यक्ति तक पहुंच ही जाती है जिसकी हमने प्रशंसा की थी, और हम पीठ पीछे जिसकी प्रशंसा करते हैं, वह हमेशा के लिए हमारा मुरीद हो जाता है। जब कोई व्यक्ति हमें कोई ऐसी बात बताए जो हमें पहले से मालूम हो तो यह कहने के बजाय कि मुझे पता है, हम अगर कहें कि आप सही कह रहे हैं तो कितना अच्छा होगा?

सी के साथ बहस के समय अगर हम ऐसा करें तो बहस की गर्मी और कड़वाहट खत्म हो जाती है। तब वह बहस के बजाय एक-दूसरे का नजरिया समझने का जरिया बन जाती है। इसी तरह अगर हम किसी को अपनी बात समझा रहे हों तो यह कहने के बजाय कि आपके कोई सवाल हों तो पूछ लीजिए, हम अगर यह कहें कि आपके सवाल क्या हैं, तो सामने वाले को अपनी बात कहने में झिझक नहीं होगी, और वो खुलकर अपनी बात रख सकेंगे। इससे हमें यह लाभ होगा कि हम सामने वाले के दिल का संशय दूर कर सकेंगे, अपनी बात का बेहतर खुलासा कर सकेंगे, और अगर जरूरी होगा तो सामने वाला का नजरिया भी समझ सकेंगे। अगर कोई व्यक्ति अपनी बात कहने से झिझक रहा हो और हम उनकी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए हां में सिर हिलाएं तो सामने वाले की झिझक दूर करना आसान हो जाता है और हमें उनका सवाल समझकर उसका उत्तर देना संभव हो जाता है। गुर यही है कि हम जेब में चने सचमुच रखें या चने होने की कल्पना करें, परिणाम एक सा ही होगा।

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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