खेलों को नई दिशा

By: Feb 15th, 2024 12:05 am

खेल की चर्चा में हिमाचल का आना, एक सतत प्रयास का नतीजा है, जिसे पिछली कुछ सरकारों, खास तौर पर प्रेम कुमार धूमल के मुख्यमंत्रित्व काल से हम पनपता हुआ देख सकते हैं। यह इसलिए क्योंकि पहली बार व्यापक स्तर पर विभिन्न खेलों से संबंधित प्रशिक्षकों को उनकी सरकार ने नियुक्ति देकर एक माहौल बनाया था। बहरहाल वर्तमान मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भी आगामी बजट के माध्यम से खेलों के प्रति अपनी दृष्टि रखने जा रहे हैं और इसका उल्लेख करते हुए वह खेल नीति को और व्यावहारिक, परिणाममूलक व भविष्यगामी बनाने का आश्वासन देते हैं। हालांकि खेलों को स्तरोन्नत तथा खिलाडिय़ों के भविष्य के प्रति चिंताएं तो पूर्व सरकारों ने भी प्रकट कीं, लेकिन लिफाफों में ये मजमून बंद होकर रह गए। पिछली जयराम सरकार के खेल मंत्री राकेश पठानिया ने नीतिगत निर्णयों का जाम पीया, लेकिन वह सिर्फ नूरपुर के आधे-अधूरे खेल स्टेडियम की परिक्रमा ही करते देखे गए। दरअसल खेलों का शिखर उस नर्सरी में तलाश किया जाना चाहिए, जो छोटे बच्चों की प्रतिभा से संपन्न हो। पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल व मणिपुर जैसे राज्यों ने टेलेंट सर्च के तहत निष्पक्षता से खिलाड़ी चुने और बेहतर प्रशिक्षण व सुविधाएं प्रदान कीं। खेलों के प्रति राज्य के सरोकार पैदा करने में हरियाणा व पंजाब के उदाहरण हमारे सामने हैं। बेशक राज्य के कुछ खेल छात्रावासों और खासकर राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण के केंद्रों के कारण हमारा टेलेंट भी कुछ हद तक बाहर आया है, लेकिन ग्रामीण व स्कूली खेलों को आगे बढ़ाने के प्रयत्न न के बराबर हुए।

इस दौरान कुछ खेल प्रशिक्षकों के कारण बच्चे आगे बढ़े और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कबड्डी, हॉकी, वालीबॉल, हैंडबाल और एथलेटिक्स में संभावना दिखी। हमें मणिपुर जैसे राज्य से सीखना होगा कि किस तरह वहां की अनुकूल आबोहवा को खेलों में तराशा गया। हिमाचल की विशेष भौगोलिक व जलवायु की परिस्थितियों में अगर प्रतिभा को उपयुक्त प्रशिक्षण मिले तो यह प्रदेश भी कुछ खेलों में आगे बढक़र राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पदकों की टोली में शरीक हो सकता है, लेकिन हमारी शिक्षा-हमारे शिक्षण संस्थान तथा बच्चों की परवरिश अब खेल विरोधी है। खेलों की बात अगर कठिन है, तो भी सामान्य कसरतों से हम बच्चों का बाल्यकाल छीन रहे हैं। हिमाचल के निजी स्कूलों में पढ़ाई के अर्थ ने खेल का मैदान अति छोटा कर दिया है। सरकार को परीक्षा परिणाम के साथ खेलों के परिणाम में भी स्कूलों के लक्ष्य निर्धारित करने चाहिएं, ताकि व्यक्तित्व विकास की शाखा में बच्चों का नजरिया बदले। हैरानी यह कि स्कूली गतिविधियों में अब खेल या खिलाड़ी हैं ही नहीं। उधर प्रदेश के पांच सरकारी विश्वविद्यालयों से खेल का पन्ना गायब है। गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अपने समर कैंप कई बार हिमाचल में लगाकर साइकिलिंग, एथलेटिक्स और वाटर स्पोट्र्स को तरजीह देता है।

हिमाचल अगर नगरोटा सूरियां व बिलासपुर के कालेजों में वाटर स्पोट्र्स के विंग खोल दे, तो पौंग व गोविंद सागर जैसे जलाशय हमारी प्रतिभा का उत्थान जल क्रीड़ाओं के माध्यम से कर सकते हैं। निस्संंदेह सांसद अनुराग ठाकुर ने क्रिकेट के जरिए हिमाचल को एक समृद्ध ढांचा, परिकल्पना व प्रतिभा को मौका दिया और जिसका असर दिखाई देता है, लेकिन बतौर खेल मंत्री वह अब तक हमीरपुर में एक्सीलेंस सेंटर व धर्मशाला में हाई आल्टीट्यूट खेल प्रशिक्षण केंद्र को घोषणा से आगे नहीं बढ़ा पाए। अगर प्रदेश की सरकारें व केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर मिल कर हिमाचल में राष्ट्रीय खेलों का महाकुंभ भी सजा पाते, तो एक साथ ऊना, हमीरपुर, मंडी, कांगड़ा, बिलासपुर, सोलन व पौंग तथा भाखड़ा बांध में अनेक खेलों का ढांचा विकसित हो जाता। हिमाचल की खेल नीति को अपनी जड़ें स्कूलों, ग्रामीण खेलों तथा प्राकृतिक संभावनाओं में खोजनी चाहिएं। तमाम पारंपरिक खेल मैदानों का संरक्षण और संवर्धन न किया, तो सुजानपुर जैसे बड़े मैदान सिमट जाएंगे। इसके लिए हर शहर में चार सामुदायिक मैदान तथा हर गांव में एक-एक मैदान सुनिश्चित करके, इन्हें जनता के खेल सरोकारों से जोडऩा चाहिए। प्रदेश में खेल स्कूल, कालेज व खेल प्राधिकरण अगर बनाए जाएं, तो खेल का पाठ्यक्रम करियर को नई दिशा देगा। पुलिस विभाग में खेलों को अतिरिक्त अधिमान देना होगा, जबकि राष्ट्रीय स्तर के खेल संस्थानों, प्रशिक्षण केंद्रों व सम्मानित खेल विभूतियों के साथ मिलकर विभिन्न खेलों की राष्ट्रीय स्तर की अकादमियों को हिमाचल में स्थान देकर, खेल राज्य की नींव रखी जा सकती है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App