अशुद्ध ही बुद्ध है…

By: Feb 28th, 2024 12:05 am

पता नहीं क्यों इन दिनों भगवान इनकी तरह मेरा भी कदम कदम पर बहुत ध्यान रखने लगे हैं। हो सकता है, मैं उनकी नजरों में उनके काबिल हो रहा होऊं! पर मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि चलो, कम से कम मैं किसी की नजरों में किसी के लायक तो हुआ। इसलिए अब मैं भी प्रतिफल में इन दिनों ऑफिस जाने से पहले बिन नागा उनका स्मरण कर ही ऑफिस खाने को डग भरता हूं। माथे पर उनके नाम का छापा लगाता हूं ताकि मेरे भ्रष्ट आचरण पर सीधा लांछन न लगे। हर किस्म का छापा लांछन में ढाल का काम करता है। छापा कुछ भी भ्रष्ट छिपाने का सीधा सीधा सबसे सरल हथियार है। प्रयोग करके देखिए, शर्तिया लाभ मिलेगा। मैंने एक से एक पहुंचों हुओं को ये सब सफलता से करते देखा है। आजकल ऑफिस में लेने का काम ही इतना है कि बीपी कुछ अधिक ही हो गया है। सफल जन सेवक वह जो जनता को देने के बदले उससे ले ही ले। कुर्सी पर पासा पलटने को वक्त नहीं। डर है, कहीं अब जनता को समर्पित को सर्वाइकल भी न हो जाए। हो जाए तो हो जाए। मेवों के लिए हर रोग कुबूल! आज जो आप मेरे आसपास ऊपरी तौर पर जो भी थोड़ा बहुत देख रहे हैं, सब उनकी ही कृपा है। वह देते हैं तो टूटी कुर्सी पर बिठा कर भी छप्पर फाड़ कर देते हैं। ऐसे में मेरे जैसे तात्कालिक ईमानदारों को उनका आभार व्यक्त कर ही लेना चाहिए शायद! जिस पर उनकी कृपा हो वह पीउन भी देखते ही देखते करोड़ों का स्वामी हो जाता है।

कल ऑफिस में जरा सी फुर्सत मिली तो याद आया कि पगले तू तो जन सेवा में इतना लीन हो गया कि बीपी की गोली खाना ही भूल गया! ये कंबख्त रिश्वत की भूख मेरे जैसे साधारण जीव को भी क्या क्या लेना भुला देती है? तब वह यह भी भूल जाता है कि जान है तो बेईमान है। तब मेरे सामने पड़े बंदे को अपनी जेब बंद रखने को कह मैं अपनी जेब से बीपी की गोली निकाल बिन पानी ही मुंह में डालने को हुआ ही कि मेरे क्लाइंट को पीछे धकेलते मेरे प्रभु मेरे आगे। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ते कहा, ‘रे मेरे प्यारे! ये क्या रहे रहो हो?’ ‘जनहित में बीपी की गोली ले रहा हूं। भूल गया था। आजकल ऑफिस में खाने का प्रेशर इतना बढ़ता जा रहा है कि…अब जनता है तो उसकी सेवा तो करनी ही पड़ेगी न! मैं ऑफिस आता क्यों हूं? तुम जनता की सेवा करने वाले ऐसे पद अपने भक्तों को बड़े नसीब से देते हो। अब तो रात को सोए सोए भी रिश्वत क्रीड़ा कम होने का नाम नहीं ले रही प्रभु!’‘अखबार में पढ़ा नहीं कि इस बीपी की दवा का सैंपल फेल हो गया है। इसे खाओगे तो कुछ भी हो सकता है।’ ‘अखबार तो पता नहीं क्या क्या नहीं छापते रहते हैं प्रभु! छापना उनका काम है। छोड़ो प्रभु! सच पूछो तो हम जैसों को अब वही चीजें सूट करती हैं जिनके सैंपल फेल हो चुके हों। देखते नहीं, अखबारों में रोज दूध से लेकर दही तक के सैंपल फेल चल रहे हैं। पर हम तुम्हें भी भोग में पूरे उत्साह से उन्हें ही लगा रहे हैं और अपनी रीढ़ मजबूत करने के लिए खुद भी उन्हें ही पी खा रहे हैं। अपनी रसोई के आटे का सैंपल फेल है। अपनी रसोई की दाल का सैंपल फेल है। अपनी रसोई के नमक का सैंपल फेल है।

अपनी रसोई के मसालों का सैंपल फेल है। अपनी रसोई के शुद्ध सरसों के तेल का सैंपल फेल है। अपनी रसोई की चीनी का सैंपल फेल है। अपनी रसोई के चावल का सैंपल फेल है। अपनी रसोई के पानी का सैंपल फेल है। अपनी नाक की हवा तक का सैंपल फेल है। और तो छोडि़ए प्रभु! अब तो ईमानदार विचारों, अचारों, व्यवहारों तक के सैंपल फेल हुए जा रहे हैं। पर एक सैंपल फेल ईमानदार अचार, विचार, व्यवहार हैं कि समाज को नई दिशा देने में जुटे हैं। सैंपल फेलों के साथ अब अपनी ट्यूनिंग हो गई है प्रभु! इसलिए डांट वरी! तुम्हारे भक्त को कुछ नहीं होने वाला’, मैंने उनकी चेतावनी को इग्नोर करते मुंह मे सैंपल फेल बीपी की गोली डाली और अपने बीपी को नार्मल फील करता निष्काम काम में पुन: लीन हो गया। क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूं कि अपने यहां जो फेल है, असल में वही खास है। क्वालिटी माया है, बकवास है।

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com


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