शास्त्री अध्यापकों ने मांगी विशेष कमेटी; कहा, भर्ती प्रक्रिया के नियमों पर पुनर्विचार करे प्रदेश सरकार

By: Feb 2nd, 2024 9:58 pm

स्टाफ रिपोर्टर — शिमला

शास्त्री अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया में जो एनसीटीई द्वारा गाइडलाइंस दी गई हैं, वे 29 जुलाई, 2011 को अधिसूचित हैं। एनसीटीई के नियमों के अनुरूप पाठ्य विषय में स्नातक उपाधि अनिवार्य है। हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद के प्रदेशाध्यक्ष डा. मनोज शैल ने कहा है कि यूजीसी के नियमों के अनुरूप शास्त्री उपाधि स्नातक उपाधि है और सबंधित विषय की उपाधि है। विपरीत नियमों के चलते आज बेरोजगार शास्त्री उपाधिधारकों को सडक़ों पर उतरना पड़ा है। हिमाचल प्रदेश में राज्य की दूसरी भाषा संस्कृत है। सरकार ने संस्कृत एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए संस्कृत महाविद्यालयों की स्थापना की है, जिनमें हजारों छात्र संस्कृत की शिक्षा प्राप्त कर निकल चुके हैं। हजारों छात्र संस्कृत शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इन महाविद्यालयों की स्थापना में पूर्व में इसी सरकार का विशेष योगदान रहा है।

शास्त्री अध्यापकों की भर्ती प्रक्रिया में नियमों पर सरकार को विचार करना चाहिए तथा बीच का रास्ता निकालना चाहिए, क्योंकि इस भर्ती प्रक्रिया के लिए पूर्व में एनसीटीई से भी शिक्षा सचिव कार्यालय से पत्र व्यवहार किया गया है, जिसके लिए दोबारा प्रयास किए जाने चाहिएं। एनसीटीई शिक्षा की गुणवत्ता के लिए कार्य करती है और उनकी अधिसूचना के अनुसार यदि ऐसी विशेष परिस्थितियां मौजूद हैं, जिनसे गुणवत्ता बनती हो, तो इसके आधार पर एनसीटीई से छूट दी जा सकती है, अन्यथा यह भर्ती पुन: न्यायालय के चक्कर में ही उलझ जाएगी। परिषद ने टीजीटी शास्त्री पदनाम मांगा था और अब भी वही चाहते हैं। परिषद ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू, शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर और शिक्षा सचिव से आग्रह किया है कि इस बारे में एक कमेटी बना कर विशेषज्ञों की राय ली जाए।


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