हमारी चेतना का मूल स्रोत

By: Feb 3rd, 2024 12:20 am

श्रीश्री रवि शंकर

यह संसार जो दिखता है, वह सिर्फ परछाई है। जो सत्य है, वह अदृश्य है। यह संसार तीन गुणों से व्याप्त है, सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण। जीवन में यह तीन गुण ना हों, तो जीवन ही नहीं है। पर ये तीनों गुण आपस में विरोधात्मक हैं। ये जीवन में चलते ही रहते हैं। जो पंच तत्त्व से बना हुआ प्रपंच है, उससे ऊपर उठना पड़ेगा…

आकाश का कोई अंत नहीं है। देश और काल का कोई अंत नहीं है। यह अनंत का सूचक है। यह संसार कब पैदा हुआ, पहला मानव कौन है? इसको जानने का प्रयत्न करना व्यर्थ है। परंतु इसका मूल, इसकी शाखाएं, इसके पत्ते क्या हैं? यही ज्ञान है, वेद है। ‘वह वस्तु है’ यह जानने की जो क्षमता और प्रक्रिया है, वही वेद है। आप जानें या न जानें फिर भी मूल बना ही रहेगा। पत्ते रहें या न रहें मगर वृक्ष तो रहेगा क्योंकि पतझड़ में भी वृक्ष बने रहते हैं। मगर उन पत्तों से भी हमको थोड़ा बहुत मूल का ज्ञान होने लगता है। ऐसे ही जितने भी वेद हैं, ये सभी शाखाएं हैं, पत्ते हैं। परंतु जो मूल है, वह अनंत है। वह काल के परे है। जीवन का स्रोत संसार में नहीं है। इसे संसार में न ढूंढें। जीवन का स्रोत ऊपर आकाश में है।

यह सब कुछ वहीं से निकला है। यह संसार जो दिखता है, वह सिर्फ परछाई है। जो सत्य है, वह अदृश्य है। यह संसार तीन गुणों से व्याप्त है, सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण। जीवन में यह तीन गुण न हों, तो जीवन ही नहीं है। पर ये तीनों गुण आपस में विरोधात्मक हैं। ये जीवन में चलते ही रहते हैं। जो पंच तत्त्व से बना हुआ प्रपंच है, उससे ऊपर उठना पड़ेगा।

हमारे चारों ओर जो भी घटनाएं हमको दिखती हैं, हम इन सभी घटनाओं का कारण यहीं इसी संसार में खोजते रहते हैं और इसीलिए कर्म के बंधन में पड़े रहते हैं। यदि आपको इससे मुक्ति पाना हो, तो असंग होना होगा। असंग अर्थात मैं संसार में रहूंगा मगर इसके साथ मेरा कोई लेना देना नहीं है। माने मन निर्लिप्त हो जाए। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को यही बता रहे हैं कि इस संसार के मूल को यहां न खोजें। परमात्मा देश और काल के परे है। इन सब घटनाओं का कारण ऊपर अनादि अनंत आकाश है, यह जानकर आप वेद के ज्ञाता हो सकते हैं यानी पढऩे की जरूरत नहीं। यह अनादि काल से चल रहा है और चलता रहेगा। यदि आपको इससे मुक्ति पाना हो, आपको परमगति में जाना हो, तो असंग होना होगा। हमारा मन कितनी जल्दी लिप्त हो जाता है। कोई प्रशंसा करे, तो मन उसमें लिप्त हो जाता है, कोई गाली दे तो भी मन लिप्त हो जाता है। संग से सुख-दु:ख, दोनों मिलता है।

मान लीजिए आपको कॉफी पीने की आदत हो गई और एक दिन कॉफी नहीं पीते तो क्या होता है? सिर दर्द होने लगता है। जीवन बेकार लगने लगता है। लोगों को लगने लगता है, अरे! क्या हो गया। और जो लोग शराब पीते हैं, उन लोगों को ऐसा अनुभव होता है कि शराब नहीं तो जीवन ही नहीं है। इसको प्रत्याहार कहते हैं। सारे प्रत्याहार संगदोष से आते हैं।

ऐसे ही, किसी को प्रेम में आघात पड़ गया, रिश्ता टूट गया, उनको समझ में नहीं आता कि वे क्या करें? ना उठ पाते हैं, ना बैठ पाते हैं। यही संगदोष है। तो हमारी चेतना इस संगदोष से ऊपर उठे। इस पर विजय प्राप्त करे। जीवन के होने का उद्देश्य क्या है?


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