तल्खियां हाजिर हैं

By: Feb 23rd, 2024 7:29 pm

नए शपथपत्र, नई उदासियां-करामात यह कि वे बोल रहे हैं। हिमाचल का जायजा लेती विधानसभा सिर्फ बजट का हिसाब नहीं लगा रही, बल्कि देख सुन रही है कि आखिर हो क्या रहा है। सरकार के पूजनीय ढांचे में कर्मचारी समुदाय की खिदमत का अभिप्राय गूंज रहा है। इस प्रदेश में खुशकिस्मत या खुशहाली का आलम देखना हो तो हर सरकार की भाषा में कर्मचारी उद्गार बसते हैं। सदन की पैमाइश में मुद्दों ने पिछले साल की लकीरों में अगले साल की पगडंडियां चुनीं, तो जयराम सरकार से सुक्खू सरकार के आजमाने की तारीखें भी इतिहास बनने लगीं। बजट की बहस के कई निष्कर्ष, कई चिंताएं और कई स्पर्श हंै। इन्हें स्पष्ट करते हुए बजट ने जो लिखा, उसी को उद्धृत करते मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों के लीव एनकैशमेंट व ग्रेच्युटी के लाभ देने की फरमाइश पूरी कर दी। महिलाओं को मिलने वाली सहायता की गारंटी का मेकअप कुछ इस तरह हुआ कि कुल 2.37 लाख नारियों को अब ग्यारह सौ की जगह 1500 का शगुन मिल जाएगा। पीजी डाक्टरों के भुगतान में 33 के बजाय 40 हजार का भुगतान होगा, जबकि पेन डाउन स्ट्राइक पर आमादा डाक्टरों को अपनी तनख्वाह में एनपीए जोडऩे तक सब्र का कड़वा घूंट पीना होगा। बजट की पेशकश में सरकार की इच्छाशक्ति का प्रदर्शन भले ही कहीं मानदेय में बढ़ोतरी और कहीं नए फार्मूलों के आगाज का सबब बन रहा, लेकिन सरकार के पास कर्मचारियों की इतनी श्रेणियों, कॉडरों और वेतन विसंगतियों का बैगेज खड़ा है कि सुलझते-सुलझाते भी असंतोष का पलड़ा भारी रहता है।

बजट सत्र में मुख्यमंत्री का हर जवाब, लाजवाब नहीं हो सकता और न ही विपक्ष का हर आरोप ईमानदार हो सकता, फिर भी सरकारों की निरंतरता में राजनीति से ऊपर यह प्रदेश बहुत कुछ देखना व सुनना चाहता है। मसलन पिछली सरकारों के शिलान्यास, नए कार्यालयों के लिबास और महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं के स्तंभ ढहने नहीं चाहिए। मंडी में निर्माणाधीन शिवधाम के खाते में बजट की तारीफ आती, तो निश्चित रूप से पर्यटन की इस परियोजना से जनता आशान्वित होती। सदन में पक्ष-प्रतिपक्ष के बीच मुकदमे नहीं हिमाचल के मुकद्दर को एक राह चाहिए और इसलिए सरकार को कोस रही भाजपा भी कम जवाबदेह नहीं। यह प्रदेश सियासी छिलकों से नहीं बना, बल्कि पर्वतीय अस्मिता का जीवंत उदाहरण है, लेकिन बरसात की आपदा ने केंद्र सरकार के रवैये की टीस बढ़ा दी है। कल तक डबल इंजन सरकार की गोटियां खेलती रही मोदी सरकार के सामने हिमाचल की आपदा अपराधी क्यों मानी गई। क्यों प्रदेश के करीब बारह हजार करोड़ के नुकसान की भरपाई में केंद्र के हाथ उदार नहीं हुए। हम भूल नहीं सकते कि आपदा की दरारों में कई गांव ध्वस्त हुए हैं। उजडऩे वालों ने तो यह नहीं कहा कि वे भाजपा के खिलाफ थे। राजनीतिक तौर पर भी चुनाव की मत प्रतिशतता में दोनों पार्टियों के बीच अगर स्पष्ट अंतर आया तो यह सीटों की गिनती में आया, वरना पलड़ों में सिर्फ थोड़ी सी शिकायत थी। विपक्ष की तख्तियां, विपक्ष की तल्खियां हाजिर हैं इस उमीद से कि जनता को खबर हो कि कोई उनके लिए मैदान पर था। बहरहाल हिमाचल विधानसभा के तमाम नजारे, बहस के विषय और विधायकों की प्रश्र मंजूषा में यह तो साबित होता है कि असली लोकतंत्र की गाथा में सदन अपना दायित्व निभाता रहा है। बदला है नूर सियासत का भी, वरना साहिब के माथे का पसीना शिकायत न करता। एक संसाधनविहीन राज्य की घोषणाओं में अगर बजट कोशिश कर रहा है या जलशक्ति विभाग के ज्वालामुखी, जयसिंहपुर या चुवाड़ी में डिवीजन कार्यालय खोल रहा है, तो इस हिम्मत को क्या कहें-इस फितरत को क्या कहें। यह दीगर है कि इस बार कुछ कांग्रेसी विधायकों के प्रश्रों में विपक्ष से कहीं ज्यादा बेचैनी है। सदन के शब्दगृह में भाषा का जाल अगर विपक्ष पर फेंका जा रहा है, तो सत्ता पक्ष के वरिष्ठ नेता भी पुचकारे जा रहे हैं। वहां सत्ता के कक्ष में राजिंद्र राणा व सुधीर शर्मा के मायूस चेहरे, मासूम नहीं हैं। आश्चर्य यह कि सदन में सुधीर शर्मा को मंत्री पद की योग्यता में अलंकृत किया जा रहा है, तो भूखे-प्यासे इस नेता ने ऐसी तारीफ के लाग लपेट को अलविदा कह दिया। बजट सत्र जब खत्म होगा, तो विपक्ष के पास सडक़ पर कहने को ताजा सामग्री होगी, लेकिन सत्ता को अपनी ऊर्जा साबित करने के लिए फिर से एक कहानी कहनी होगी। क्या बजट सत्र से अब नया मंत्रीपद निकलेगा या आगामी राज्यसभा व लोकसभा के चुनाव की फरमाइश में यह टुकड़ा नसीब होगा, कोई कह नहीं सकता।


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