राजनीतिक कुंडली में बेरोजगार

By: Feb 22nd, 2024 12:05 am

अंतत: हिमाचल का विधानसभा सदन खामोशी से सुन रहा बेरोजारों की वकालत। सरहद पर खड़ा बेरोजगार और विपक्ष की वकालत का सहारा, उसे हमेशा की तरह फिर किंकर्तव्यविमूढ़ बन रहा। मंगलवार की बहस में नौकरी का सरकारी रुतबा आसमान पर सितारे गिनता रहा। कहीं आउटसोर्स चीख रहा, कहीं साल में एक लाख नौकरी का टोटका बोलता रहा। इस दौरान बच्चों ने रोजगार कार्यालय का चेहरा देखना छोड़ दिया, लेकिन पंजीकृत 742845 बेरोजगारों के लिए सरकार ही ख्वाजा पीर की अरदास है या किसी मंदिर की पूजा में की गई मन्नत। कितने दोराहे-कितने चौराहे हैं पढ़े लिखे बेरोजगारों के लिए, लेकिन नौकरी का शब्द सरकारी शब्दकोष की तरह अपने अर्थ में मुगालते भर रहा है। अब गिनती का रोजगार गिनती कब तक करे, लेकिन पांच साल में पांच लाख बेरोजगार अगर किस्मत के धनी हो गए, तो रोजगार कार्यालय भी अपने आंकड़ों का उद्धार कर लेगा। हमने देखा कि एक बार तत्कालीन धूमल सरकार ने सरकारी नौकरी की चारपाई पर युवाओं को 45 साल की उम्र तक सपने देखने के लिए सुला दिया। इसका कितना व किसको लाभ हुआ, लेकिन रोजगार की कचहरी में याचक बढ़ गए। बेरोजगार अब सरकार के सामने याचक और विपक्ष उनका वकील। इसलिए इस बार भाजपा की कुंडली में बेरोजगारी का मुद्दा है, तो तकरार के बाजुओं में दम है, वरना हिमाचल में वही चंद बीघा जमीन जोत कर नौकरियों की मुंडियां उगाई जाती हैं। कॉडर से बहस करता एक नया कॉडर, अप्रत्यक्ष नियुक्तियों से बात करता एक नया उपनाम और विसंगतियों की चिल्लपों में वर्षों से संघर्षरत कोई न कोई कर्मचारी वर्ग। इसका एहसास, उसका हिस्सा और सियासी हिस्सेदारी में रेवडिय़ां ढूंढते हमने सरकारी नौकरी की चयन प्रक्रिया को इतना लचर बना दिया कि अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग के परीक्षा पत्र ढाबों में बिकने लगे। फर्जी दस्तावेज से कभी डाक सेवक बनने की उमंग, तो कभी सचिवालय तक कदम पहुंच जाते हैं।

पूरी की पूरी पुलिस भर्ती विभाग के अभिशप्त अध्याय लिख गई, लेकिन राज्य के पास दंड देने की शक्ति नहीं। दंड मिलता है उस सपने को जो पढ़े-लिखे नौजवान को सोने नहीं देता। हर पेपर लीक या रोजगार की जालसाजी में कितने अरमान मरते हैं, इसकी कभी जांच पूरी नहीं होती। दरअसल रोजगार है क्या, इसे समझे बिना सरकारों ने अपनी मुट्ठी में आई सरकारी नौकरियों का ही गुणगान किया, जबकि हिमाचल का निजी क्षेत्र लगातार बढ़ाता रहा अवसर। अब हम निजी निवेश को पुकार रहे हैं, लेकिन क्या हमारा बेरोजगार युवा निजी रोजगार को पुकार रहा है। बीबीएन में पैदा हुए रोजगार के लिए हमने शर्तें भले ही सत्तर फीसदी हिमाचलियों के पक्ष में ईजाद कीं, लेकिन हमारे बेरोजगार युवाओं ने अपने हिस्से का अधिकांश रोजगार ठुकरा दिया। यह इसलिए कि हमने उसे घर द्वार पर ऐसी शिक्षा दी जो उसे कर्मठ नहीं, सरकारी नौकरी की बैसाखी पर चलना सिखाती है। वह ‘आउटसोर्स’ होकर भी इसी बैसाखी पर चलता है, तो किसी तरह की अस्थायी कांटै्रक्ट पर भी प्रसन्न है और राजनीति उसे प्रेरित करती है। अगर कोविड काल में कुछ लोग ‘आउटसोर्स’ से काम पर लगाए तो उनका हक योग्यता या चयन परीक्षा से ऊपर क्यों हो जाता है। अगर एसएमसी का जरिया सामने आया, तो यही सरकारी नौकरी का नजरिया क्यों। जेओए आईटी परीक्षा अगर कलंकित है, तो इसकी तरफदारी क्यों। सरकार को नौकरी के बजाय रोजगार के लिए हालात, निवेश व नियम सरल करने होंगे ताकि निजी क्षेत्र के लिए प्रतियोगिता बढ़े। हिमाचल के सैकड़ों इंजीनियर, एमबीए व अन्य डिग्रियों को लेकर अगर देश भर के निजी क्षेत्र में अपना रोजगार पा रहे हैं, तो हिमाचल में यह हालात क्यों नहीं। वर्षों से गगल में बन रहे एक मात्र आई टी पार्क के प्रति पिछली सरकारों या वर्तमान की प्राथमिकता जुट जाती, तो क्या वहां रोजगार पैदा नहीं होता। श्रीमन विपक्ष और उदार सत्ता पक्ष से गुजारिश है कि बहस से हटकर रोजगार के विषय को समझते हुए युवाओं को निजी क्षेत्र के चमकते सितारे बनाने में मदद करें।


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