हम तो अदालत लगाएंगे

By: Feb 23rd, 2024 12:05 am

हिमाचल में मर्जी की अदालतें और मनमर्जी के फैसलों में प्रदेश की आबरू पर कब और कौन सोचेगा। एनपीए पर बिगड़े डाक्टरों की मनमर्जी और कहीं बिजली महादेव रोप-वे के खिलाफ मंदिर के प्रबंधक अपनी अदालत लगाए खड़ेे हैं। ये दोनों ही मुद्दे आम आदमी के वजूद को नजरअंदाज करके, सीना ठोंक कर कह रहे कि हमें सिर्फ अपनी चिंता है। डाक्टरों की पेन डाउन स्ट्राइक के मायने उन दावों की पोल खोल रहे हैं, जो सरकार के इश्तिहार में चिकित्सा सेवाओं को गंभीर दिखा रहे हैं। हो सकता है डाक्टरी कॉडर का पेशेवर रुख ऐसी हड़तालों से बुलंद होता हो या यह भी कि आमदनी बढ़ाने के लिए सरकारी खजाने पर दबाव की एक यही वजह हो। जो भी हो, सरकार के फैसले या डाक्टरों की मांग पर तरह-तरह के वाद विवाद हो सकते हैं, लेकिन हिमाचल के सार्वजनिक फलक पर ऐसी बादशाहत अवांछित क्यों न मानी जाए। जाहिर है डाक्टर जो मांग रहे हैं उसके अर्थों में सरकार की पाकेट और उधड़ जाएगी और फिर यह कानून क्यों न बन जाए कि सभी तरह के कॉडर को एनपीएस दे दिया जाए। किसी निजी अस्पताल और सरकारी डाक्टर में अंतर आखिर सेवा भावना या सेवा शर्तों का होना चाहिए। सरकारी अस्पतालों से निकलते मुर्दे भी गवाही देते हैं कि किस तरह बिस्तर पर मौत की वजह ताकीद करती रही कि यहां ‘नार्मल’ बताने वाले हाथ कितने खुदगर्ज हैं। हड़ताली डाक्टर अपने समर्थन में जनता के हाथ उठा कर दिखाएं या सरकार मरीजों से राय जानकर फैसला ले कि सरकारी सेवाओं में उपचार कहां तक उत्तीर्ण है। अंतत: पेन डाउन स्ट्राइक व्यावसायिक नैतिकता के खिलाफ ऐसा ऐलान है जो डरा रहा है कि अगर उनके मुंहमांगे दाम न मिले, तो ये किस हद तक जा सकते हैं।

उन्हें चिंता यह नहीं कि सरकारी अस्पताल प्रतिष्ठित हों, बल्कि निजी अस्पतालों की खेप में उनकी जिम्मेदारी का हल्फनामा बंट जाए, यह सौहार्द है। सरकार की दरियादिली में एनपीएस देना कोई मुश्किल बात नहीं, लेकिन उस स्थिति में स्वास्थ्य सेवाओं में कौन सा सुधार होगा, इसकी कोई वचनबद्धता नहीं। आज की स्थिति में डाक्टरों को विशेष पैकेज मिलने चाहिएं, लेकिन इनका आधार मरीज की देखभाल, उपचार की गुणवत्ता व इमरजेंसी सेवाओं की बानगी में होना चाहिए। बहरहाल जहां डाक्टर एकजुट हैं, वहां सरकार की क्या मजाल कि ज्यादा दिनों तक इन्हें महफूज रखे। इसी तरह एक और तर्कहीन विरोध अब दिल्ली के गलियारों तक हिमाचल की दास्तान सुन रहा है। जो कल तक बिजली महादेव रोप-वे के विरोध का झंडा कुल्लू में फहरा रहे थे, वे तमाम मंदिर के हकदार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से यह मदद मांग रहे हैं कि इस मुद्दे की सियासत उनकी अदालत का परचम ऊंचा करती हुई प्रस्तावित रोपवे के निर्माण को मना कर दे। हिमाचल में रज्जु मार्गों की अहमियत में भविष्य और पर्यटन देखने वाले इरादों की भिड़ंत उस तिजोरी से है, जो मंदिर की आय को एक समुदाय बना रही है। यह दूसरा मौका है जब देव परंपराएं विकास की नेकनीयत पर शक ही नहीं, उन्हें दोषी भी मान रही हैं। मनाली स्की विलेज की अवधारणा इसी तरह के विरोध के कारण खारिज हुई थी और अब एक और महत्त्वकांक्षी परियोजना की बलि देने के लिए धार्मिक सरहद बनाई जा रही है। दोनों तरह के विरोध की चिंताएं समझी जा सकती हैं, लेकिन इनके सामने हिमाचल की असली चिंता क्या है।

हिमाचल को आगे बढऩा है या आत्मनिर्भर बनना है, तो एक ओर बजट का अपव्यय या वित्तीय रिसाव रोकना होगा, जबकि दूसरी ओर नए या अतिरिक्त साधन जुटाने के लिए आवश्यक अधोसंरचना का निर्माण जरूरी है। कुल्लू के पर्यटन मानचित्र को सुदृढ़ करने के लिए रज्जु मार्गों की परिकल्पना को अगर स्थानीय स्वार्थ के कारण रोका जाएगा, तो फिर हमें आगे बढ़ाने कौन आएगा। आश्चर्य यह कि पर्यटन के जरिए नशे के फैलते व्यापार पर तो धार्मिक संगठन चुप रहते हैं, लेकिन आर्थिक विकास को जंजीरें पहनाने के लिए तत्पर रहते हैं। इन दोनों मसलों में सरकार का रवैया फिलहाल अपना बचाव कर रहा है, लेकिन हिमाचल का इतिहास बताता है कि कड़े फैसले लेने से राजनीति पीछे हट जाती है। देखना यह होगा कि बजटीय और वित्तीय दृष्टि से अस्पतालों के भीतर रोष कम होता है या चिकित्सा सेवाओं की गुणवत्ता ऐसी हड़तालों से और घायल हो जाती है। दूसरी ओर अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक से तरोताजा भाजपा क्या बिजली महादेव तक रोपवे की सुविधा को खारिज कराकर नाम कमाना चाहेगी।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App