भारत विरोधी द्रमुक

By: Mar 1st, 2024 12:05 am

तमिलनाडु में सत्तारूढ़ पार्टी द्रमुक न केवल सनातन-विरोधी है, बल्कि भारत-विरोधी भी है। संविधान धार्मिक आस्था और पूजा-पद्धति की अनुमति तो देता है, लेकिन भारत-विरोध का कोई प्रावधान नहीं है। भारत-विरोध के मायने हैं कि आप देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता और राष्ट्र के तौर पर अपमान कर रहे हैं। कोई साजिश रच रहे हैं। उन्हें चुनौती दे रहे हैं। यह सरासर देशद्रोह है और नई न्याय संहिता में इस अपराध की सजा स्पष्ट हो जाएगी। यह संहिता 1 मार्च से देश भर में लागू हो रही है। द्रमुक सरकार ने एक विज्ञापन छपवाया है, जो इसरो लॉन्च पैड से संबंधित था। विज्ञापन में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री स्टालिन के चित्र छपे थे। उनके बीच एक रॉकेट पर चीन का लाल झंडा छापा गया था। विज्ञापन सरकारी और देश के प्रधानमंत्री के चेहरे के साथ छापा गया था। तमिलनाडु अखंड और आजाद भारत का एक राज्य है। द्रमुक भी भारतीय निर्वाचन आयोग में पंजीकृत एक राजनीतिक पार्टी है। उसे उस जनता का जनादेश प्राप्त है, जो भारत के तमिलनाडु में रहती है। उसी जनता के टैक्स से सरकारें चलती हैं और सरकारी विज्ञापन छपवाए जा सकते हैं। तो सवाल है कि इसरो से जुड़े विज्ञापन में चीन का झंडा क्यों छापा गया? यह भारत देश, इसरो के वैज्ञानिकों, इसरो की अंतरिक्ष में उपलब्धियों का सार्वजनिक अपमान है।

खुद प्रधानमंत्री मोदी ने बेहद आक्रामक अंदाज में, तमिलनाडु में जनसभा को संबोधित करते हुए, यह मुद्दा उठाया और कहा कि द्रमुक सरकार ने तमाम हदें पार कर दी हैं। बेशक मुख्यमंत्री स्टालिन और द्रमुक की वैचारिकता वामपंथी हो सकती है, वे उसी के आधार पर वोट भी मांग सकते हैं, लेकिन सरकारी काम संविधान से ही संचालित होते हैं और संविधान किसी भी स्तर पर चीन के झंडे के सरकारी इस्तेमाल की इजाजत नहीं देता। यह संविधान का ही प्रावधान है कि विदेश, रक्षा, वित्त और संचार से जुड़े विशेषाधिकार भारत सरकार के पास ही होंगे। उस तरह द्रमुक सरकार ने संविधान का भी उल्लंघन किया है। संविधान के खिलाफ जाकर कोई भी सरकार अस्तित्व में नहीं रह सकती। सवाल है कि तमिलनाडु की द्रमुक सरकार के खिलाफ कोई संवैधानिक कार्रवाई भारत सरकार करेगी या चीख-चीख कर भाषण देने से ही काम चलाया जाएगा? मुख्यमंत्री के मंत्री-पुत्र, द्रमुक के मंत्रियों-सांसदों ने सनातन धर्म को गालियां दीं, उसके समूल नाश की हुंकारें भरीं और उसके लिए भद्दे उपमान भी इस्तेमाल किए गए, तो भी उन्हें सहन कर लिया गया। अलबत्ता हर स्तर पर थू-थू कर द्रमुक नेताओं की खूब आलोचनाएं जरूर की गईं। यदि तमिलनाडु वाकई सनातन-विरोधी है, तो वहां भगवान श्रीराम के प्राचीन और पूजनीय, विख्यात मंदिर क्यों हैं? उन मंदिरों में ‘रामायण’ के पाठ और पूजा लगातार क्यों होती रहती है?

तमिल लोग भगवान शिव की आराधना के लिए काशी क्यों आते रहते हैं? किसी द्रमुक नेता ने बयान दिया कि चीन भारत का दुश्मन देश घोषित नहीं किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी चीन के प्रधानमंत्री को भारत आने का आमंत्रण दिया था। यह बयान हास्यास्पद है। यदि चीन दुश्मन देश नहीं है, तो क्या इसरो के प्रोजेक्ट पर उसका लाल झंडा लगने दें? दरअसल चीन को लेकर हमारे देश में कई तरह की सोच हैं। जब शी जिनपिंग तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति बनाए गए, तो हमारे प्रधानमंत्री ने उन्हें शुभकामनाएं तक नहीं भेजी थीं। उन्हें पता था कि किस तरह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में ऐसा प्रस्ताव पारित किया गया और किस तरह संविधान में संशोधन कर शी की ताजपोशी की गई। लेकिन केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने शी जिनपिंग को न केवल बधाई भेजी, बल्कि सोशल मीडिया पर भी एक बयान लिखा। वामपंथी दल और कांग्रेस की राजनीतिक सोच भी चीन के प्रति ऐसी रही है। बहरहाल अब मुद्दा चीन के लाल झंडे का है।


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