सद्गुरु के चरणों में

By: Mar 23rd, 2024 12:15 am

बाबा हरदेव

गतांक से आगे..
जिन व्यक्तियों का स्वभाव झगड़ालू है, क्रोधी है, मानने वाले नहीं हैं, उन पर आप क्रोध न करें। निरंकार प्रभु से उनका भला मांगें। जहां तक हो सके उनका भला करें। आप अपने मन पर बोझ न डालें और अपने आपको परेशान न करें। गुरसिख तो सद्गुरु के चरणों में अरदास ही करता है। क्योंकि सबका भला करने वाला निरंकार दातार है। हमारी हिम्मत नहीं कि किसी का भला कर पाएं। हमें अपने मन, बुद्धि को निरंकार प्रभु से जोडऩा है। बाकी जो प्रभु करेगा ठीक करेगा। हमें भूल कर भी किसी का बुरा नहीं मांगना है। अमरीका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन आध्यात्मिक सोच के व्यक्ति थे। साधारण से साधारण व्यक्ति भी उनके सामने आता तो अपनी टोपी उतारकर उन्हें प्रणाम करता, जिसके उत्तर में स्वयं राष्ट्रपति भी अपना हैट उतारकर उसके अभिवादन को स्वीकार करते। राष्ट्रपति के मित्रों ने यह देखकर कहा, आप राष्ट्रपति हैं। आपको सामान्य व्यक्ति के आगे हैट नहीं उतारना चाहिए। एक सामान्य नागरिक आपको अभिनंदन करता है तो यह उसका कत्र्तव्य है, उसे ऐसा करना ही चाहिए। परंतु आप राष्ट्रपति हैं, आपको अपने स्थान की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। राष्ट्रपति बोले, अमरीका का राष्ट्रपति विनम्रता और व्यवहार में किसी से छोटा नहीं पडऩा चाहता। अमरीका का नागरिक सद्व्यवहार करे और अमरीका का राष्ट्रपति
तुच्छ व्यवहार करे, यह कैसे हो सकता है? विनम्रता कोई कमजोरी की निशानी नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति की महानता को दर्शाती है।

विनम्रता से दूसरे को सुनने और अपनी बात सुनाने में आसानी होती है। बड़े ध्यान से बात सुनी व सुनाई जाती है। विनम्रता मनुष्य की श्रेष्ठता दर्शाती है। हां, कोई स्वार्थवश ऊपर से विनम्रता दिखाता है, तो वह अपने आपको धोखा देता है। इसलिए जीवन में विनम्रता अपनाना दिव्य गुण है। विनम्रता के बिन मनुष्य अभिमानी, क्रोधी लगता है। सद्विचार हैं तो मनुष्य विनम्र भी बनेगा। आप निरंतर अपने आपको निरंकार प्रभु के निकट ही अनुभव कीजिए। वो जितने आपके निकट हैं, उतने निकट तो आपके कोई भी नहीं है, यहां तक कि आपके अंग भी नहीं। आपके निकट है आपका हाथ, जहां जरूरत होती है, पहले हाथ पहुंचता है। परंतु निरंकार प्रभु तो हाथ से पहले पहुंचा हुआ है। आप पांच प्राणों को तो ध्यान में रखते ही हैं और ये पांच बातें भी बार-बार अपने मन में दोहराते रहें। मैं निरंकार की शरण में रहता हूं।

मैं निरंकार का हूं और यही मेरे रक्षक हैं। मैं निरंकार का दिया हुआ भोजन ग्रहण करता हूं। मैं हर कार्य निरंकार की ही सेवा में कर रहा हूं। निरंकार प्रभु ही मुझे शक्ति, समझ देते हैं। निरंकार प्रभु को समक्ष समझते हुए कार्य करना इसका सुमरिन करना है। अब जो भी आप कार्य करेंगे, सद्कर्म होगा, समर्पण भाव से होगा। सद्गुरु की शिक्षाओं के अनुरूप कार्य सुखदायी होता है। किसी मनुष्य की निंदा न करें। सबके भले में ही हमारा भला है, यही सोचें। एक कुबड़ी बुढिय़ा को देखकर नारद मुनि कृपालु हुए बोले, मेरे पास आओ, मैं योग बल से तुम्हारा कूबड़ दूर कर दूंगा। बुढिय़ा ने हाथ जोडक़र कहा, दया ही करने लगे हो, तो मेरा कुबड़ तो यूं ही रहने दो पर मेरे पड़ोसियों की कमर में भी कुबड़ कर दो। आश्चर्यचकित हो नारद मुनि ने पूछा, दूसरों के कूबड़ से तुझे क्या लाभ होगा भला? बुढिय़ा ने कहा, मैं उन्हें कमर झुकाकर चलते देखकर सुख पाऊंगी। – क्रमश:


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App