आनंद में ही परमानंद

By: Mar 9th, 2024 12:15 am

बाबा हरदेव

गतांक से आगे..
महात्मा बात को और स्पष्ट करते हुए कहने लगे जब कोई एक-दूसरे को हद से भी अधिक चाहने वाला हो तो क्या होता है? तब वे बोलते भी नहीं, बल्कि वे सिर्फ एक-दूसरे की तरफ देखते रह जाते हैं और एक-दूसरे के दिल की बात समझ जाते हैं। इसलिए जब भी तुम किसी से बात करो तो यह ध्यान रखना कि तुम्हारे हृदय आपस में दूर न होने पाए। तुम ऐसे शब्द मत बोलो, जिनसे तुम्हारे व दूसरे मनुष्यों के बीच की हृदय की दूरी बढ़े। नहीं तो एक समय ऐसा आएगा कि यह दूरी इतनी बढ़ जाएगी कि तुम्हें लौटने का रास्ता भी नहीं मिलेगा। इसलिए चर्चा करो, बात करो, लेकिन चिल्लाओ मत। ऊंचे स्वर में बोलना शोभा भी नहीं देता। दो मनुष्यों की बात सार्वजनिक हो जाती है। मानव का हृदय कोमल होता है। यदि कोमल स्वरों का प्रयोग होता है तो सुनने और सुनाने वाले दोनों आनंदित होते है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रेम से कही बात आसानी से समझ में आ जाती है। सही समय पर व सही ढंग से की गई बात का लाभ होता है। एक आदमी का नाम था मंगत राम। एक दिन वह अपने ससुराल में गया।

रात के बारह बजे का समय था, जब वह अपने ससुराल पहुंचा। मंगतराम ने दरवाजा खटखटाया। अंदर से आवाज आई, आप कौन हो? जमाई ने कहा, मैं हूं मंगता। अंदर से आवाज अब क्यों आए हो? दिन में आना। जमाई ने कहा, मुझे अभी समय मिला है। अंदर से आवाज आई इस समय आपको कुछ नहीं मिलेगा। जमाई ने जवाब दिया, कोई बात नहीं। आज रात आपके घर ठहर जाऊंगा, सुबह दे देना। अंदर से फिर आवाज आई चलो, चलो अपना काम करो। यहां से कहीं ओर जाओ। जमाई ने कहा, अरे, मैं पटियाला से आया हूं। अंदर वाले ने हैरान होकर पूछा अरे पटियाला से यहां आए हो। क्या रास्ते में कोई और शहर नहीं था? यहां मांगने चले आए। अब जमाई को पता चला कि वे लोग उसे मांगने वाला मंगता समझ रहे हैं, तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। तब उसने कहा, जी मैं आपका जमाई हूं मंगत राम।

अंदर से झट दरवाजा खुला और कहा, आइए, आइए जमाई राजा। आप पहले कह देते कि मैं मंगत राम हूं। आपका स्वागत है। आइए अंदर विराजिए। बात ठीक ढंग से न कही जाए और सुनने वाले को सही समझ न आए, तो बात का अर्थ ही बदल जाता है। अगर प्रेम से, शांति से और सही ढंग से बात की जाए, तो कोई भी बात बिगड़ती नहीं। मधुर, वचन, सत्य वचन और धीरे बोलना, ऐसी आदत बन जाए, तो प्रेम के शब्द भी प्रेम व आनंद भरा वातावरण बना देंगे। अपनी बात को प्रेमपूर्वक कहें और दूसरे व्यक्ति का सम्मान करें और उसके प्रति प्रशंसा भरे शब्दों का प्रयोग करेंगे, तो जहां वह आपके कार्य को करेगा वहीं वह आपका सम्मान भी करेगा। इसलिए कहते हैं कि अपने हृदय में प्रेम भर लो। जिधर जाएं प्रेम बांटते जाएं। कहा भी गया है कि स्वर्ग कहीं नहीं होता। बुद्धिमान व्यक्ति जहां रहते हैं, वहीं स्वर्ग का वातावरण बना लेते हैं। इसलिए प्रेम से आनंद और आनंद से परमानंद और परमानंद से जीवन में आनंद प्राप्त होता है। – क्रमश:


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