फोरलेनिंग का निर्माण विकास का आधार

By: Mar 21st, 2024 12:05 am

पठानकोट-मंडी हाईवे प्रोजेक्ट आईआरबी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपर्स लिमिटेड द्वारा निगमित और स्वामित्व में है। हालांकि एग्रीमेंट के अनुसार परियोजना के पूरा होने की नियत तिथि 18 मई 2022 को खत्म हो चुकी है, लेकिन हम भारतीयों को चूंकि लंबे समय तक इंतजार करने की आदत है, लिहाजा आशा है कि पठानकोट-मंडी फोरलेनिंग सडक़ मार्ग के पूरा होने के इंतजार की घडिय़ां भी शीघ्र ही खत्म हो जाएंगी और हम हिमाचली भी सुहाने सफर का लुत्फ उठाएंगे…

राष्ट्रीय राजमार्ग पठानकोट-मंडी, जिसे पहले एनएच-20 नंबर से भी जाना जाता था, की लंबाई 267.8 किलोमीटर है। जहां तक मुझे याद है, 1980 के दशक में पठानकोट-मंडी सडक़ मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग में तबदील करने की घोषणा हुई थी। मैं 1980 में दसवीं कक्षा उत्तीर्ण करके और बाद में 35 वर्षों की सरकारी सेवा करके सेवानिवृत्त भी हो गया और इस बीच केंद्र एवं राज्य में कई सरकारें आईं-गईं, लेकिन यह सडक़ मार्ग कभी भी पूर्णता में राष्ट्रीय राजमार्ग का स्वरूप नहीं ले पाया। यहां तक कि कई जगहों पर यह आज भी गांव की सडक़ सरीखा संकरा एवं टूटा-फूटा है। यह तो गनीमत है कि अब इसी 154 संख्या वाले पठानकोट-मंडी एनएच को फोरलेनिंग में बदलने का काम शुरू हो गया है और उम्मीद है कि आने वाले 2-3 वर्षों में इस क्षेत्र के नागरिकों को भी सुविधाजनक परिवहन एवं यातायात हेतु चौड़ी सडक़ मयस्सर होगी और कमरतोड़ ड्राइविंग से राहत मिलेगी।

फोरलेनिंग सडक़ों का निर्माण तो अपनी जगह ठीक है, लेकिन हिमाचल सरकार को दूरदराज के ग्रामीण कस्बों से होकर जाने वाले राज्यमार्गों एवं मेजर डिस्ट्रिक रोड्स के चौड़ाईकरण पर भी ध्यान देना होगा, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में सुरक्षित परिवहन एवं ड्राइविंग के लिए खुली एवं चौड़ी सडक़ों का होना अनिवार्य है। इस समय भारत में 599 से अधिक राष्ट्रीय राजमार्गों की संख्या है जो एक राज्य को दूसरे राज्य से जोडऩे का काम कर रहे हैं। एनएच 44 भारत का सबसे लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग है जो लगभग 3745 किलोमीटर तक फैला हुआ है। यह श्रीनगर (जम्मू और कश्मीर) से शुरू होता है और कन्याकुमारी (तमिलनाडु) में समाप्त होता है। किसी भी देश की अर्थव्यस्था को आगे बढ़ाने में वहां की सडक़ों का बड़ा योगदान रहता है। विश्व बैंक के आंकड़ों को देखें तो उनके अनुसार भारत में सडक़ों की कुल लंबाई लगभग 46 लाख किलोमीटर है, वहीं अमरीका में यह 65 लाख किलोमीटर है। अमरीका में अच्छी सडक़ों को विकास का पहला पैमान माना गया है। यही वजह है कि सडक़ों के महत्व को समझते हुए भारत में भी बीते कुछ दशकों में सरकारों ने इस दिशा में गंभीरता से काम किया है। इससे देश में इंफ्रास्ट्रक्चर में विकास के साथ ही बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार मिल रहा है। अमरीका के पास दुनिया का सबसे बेहतर व कुशल आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र (इमरजेंसी रेस्पोंस सिस्टम) है। आप कहीं भी हों, किसी भी समस्या में फंस गए हों, बस 911 पर फोन कर लीजिए, आपको तुरंत पुलिस या एम्बुलेंस की सहायता मिल जाएगी। भारत में सडक़ परिवहन क्षेत्र में देश का लगभग 87 फीसदी यात्री यातायात और 60 फीसदी माल यातायात आता है। देश के राष्ट्रीय राजमार्ग को केंद्र सरकार की तरफ से फंड किया जाता है।

इसकी अथॉरिटी का नाम है नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया। राष्ट्रीय राजमार्ग मुख्य रूप से वह सडक़ें हैं जो लंबी दूरी को कवर करती हों और ये सडक़ें दो की पंक्तियों में होती हैं। अब भारत के लगभग सभी राज्यों में फोरलेनिंग और सिक्स लेनिंग, यानी 4 से 6 लेन की सडक़ों को बनाया जा रहा है। भारत के राजमार्गों की कुल दूरी 4754000 किमी है। राजमार्गों की लंबाई कुल सडक़ों का मात्र 2 फीसदी हिस्सा है, लेकिन यह कुल ट्रैफिक का 40 फीसदी भार उठाते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम-1956 की धारा 2 के तहत केंद्र सरकार किसी सडक़ को एनएच घोषित करती है। वल्र्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर चार मिनट में एक व्यक्ति की सडक़ दुर्घटना में मौत हो जाती है। जहां वर्ष 2005 में प्रति सौ सडक़ दुर्घटनाओं में 22 लोगों की जान जाती थी, वहीं 2022 में यह आंकड़ा बढक़र 36.5 तक पहुंच गया है। केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, जो इन्फ्रास्ट्रक्चर मैन के नाम से भी मशहूर हैं, के अनुसार साल 2025 से पहले देश में सडक़ दुर्घटना और उनसे होने वाली मौतों को 50 फीसदी से कम करना है। दूसरी तरफ आज की तारीख में हिमाचल प्रदेश के कोने-कोने में सडक़ों के किनारों के नालों, नदियों के तटों और सडक़ों के किनारों आदि पर किया गया अतिक्रमण, अवैध निर्माण एवं नाजायज कब्जों को स्पष्टत: देखा जा सकता है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यही अतिक्रमण/अवैध निर्माण कार्य लोक निर्माण विभाग/एनएचएआई/राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, स्थानीय पंचायत प्रधानों और नगर निगम के अधिकारियों को क्यों नहीं दिखाई देते हैं? जिला कांगड़ा के अल्हिलाल से लेकर पालमपुर तक के राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे दशकों पुराने प्राकृतिक नालों पर हुआ कब्जा स्पष्टत: देखा जा सकता है।

क्या प्रशासन स्वत: संज्ञान लेकर राष्ट्रीय राजमार्ग और राजस्व विभाग के जिम्मेदार कर्मचारियों व अधिकारियों की भूमिका की भी जांच करने की जहमत उठाएगा। पठानकोट-मंडी हाईवे प्रोजेक्ट आईआरबी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपर्स लिमिटेड द्वारा निगमित और स्वामित्व में है। हालांकि एग्रीमेंट के अनुसार परियोजना के पूरा होने की नियत तिथि 18 मई 2022 को खत्म हो चुकी है, लेकिन हम भारतीयों को चूंकि लंबे समय तक इंतजार करने की आदत है, लिहाजा आशा है कि पठानकोट-मंडी फोरलेनिंग सडक़ मार्ग के पूरा होने के इंतजार की घडिय़ां भी शीघ्र ही खत्म हो जाएंगी और हम हिमाचली भी फोरलेनिंग के सुहाने सफर का लुत्फ उठाएंगे। यह समय का तकाजा और दूरदर्शी सोच वाली बात है कि भविष्य की जरूरतों के मद्देनजर भारत में बनने वाले सभी राष्ट्रीय राजमार्ग कम से कम सिक्स लेनिंग और इससे ऊपर की पंक्तियों वाले बनाए जाएं ताकि पुन: निर्माण की पेचीदगियों से बचते हुए वर्तमान में ही भारत की बढ़ती आबादी की वाहन चालन की आवश्यकताओं को आरामदायक एवं सुरक्षित बनाया जा सके।

अनुज आचार्य

स्वतंत्र लेखक


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