देश ही मोदी का परिवार

By: Mar 6th, 2024 12:05 am

आम चुनाव की घोषणा हुई भी नहीं, लेकिन नेताओं के कीचड़ उछालने और आपत्तिजनक शब्द बोलने का सिलसिला शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए पहले कांग्रेस ने खूब अपशब्द कहे हैं, लेकिन अब लालू यादव ने ऐसा मुद्दा उछाला है कि मोदी और भाजपा ने उसे लपक लिया है। लालू ने सार्वजनिक मंच से कहा है कि मोदी का अपना परिवार तो नहीं है, लिहाजा वह ‘परिवारवादी पार्टियां’ कहते रहते हैं। मोदी हिंदू भी नहीं हैं, क्योंकि मां के शोक में उन्होंने सिर नहीं मुंडवाया और न ही दाढ़ी साफ कराई। प्रधानमंत्री तेलंगाना में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे, वहीं उन्होंने त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए कहा-‘मैं परिवारवाद पर सवाल उठाता हूं, तो उन्होंने बोलना शुरू कर दिया है कि मोदी का कोई परिवार नहीं है। 140 करोड़ देशवासी ही मेरा परिवार हैं। जिसका कोई नहीं है, वे भी मोदी के हैं और मोदी उनका है।’ प्रधानमंत्री के इस कथन के बाद भाजपा अध्यक्ष, मंत्रियों, सांसदों और कई मुख्यमंत्रियों ने सोशल मीडिया पर अपने बायो बदलते हुए लिख दिया-‘मोदी का परिवार।’ और यह बदलाव सोशल मीडिया पर टें्रड करने लगा। कुछ ही देर में यह मुद्दा बन गया। राजनीति 2019 के ढर्रे पर मुड़ गई। तब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल विमान सौदे में कथित भ्रष्टाचार पर एक जुमला उछाला था-‘चौकीदार चोर है।’ उसकी त्वरित प्रतिक्रिया में भाजपा नेताओं ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिख लिया था-‘मैं भी चोर हूं।’ अंतत: वह जुमला 2019 के चुनावों का प्रमुख मुद्दा बन गया। दरअसल यह मोदी की रणनीति रही है या चुनावी-कौशल माना जाए कि उन्होंने मौत का सौदागर, चायवाला, बिच्छू, सांप, भस्मासुर, बंदर, खून की दलाली, गंदी नाली का कीड़ा आदि से लेकर जहरीला सांप तक सभी अपशब्दों को चुनावी जनादेश में परिणत कर लिया है।

अधिकतर अपशब्द तब बोले गए, जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। यह राजनीति उनके विपक्षी बखूबी जानते हैं, लेकिन फिर भी ऐसे ही निजी हमले करते रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी पीडि़त और बेचारगी की मुद्रा में आकर, खूब आक्रामक तरीके से, उसी गालीनुमा शब्द को देश की जनता के सामने दोहराते रहे हैं। लालू यादव न तो हिंदू धर्म के ज्ञाता विशेषज्ञ हैं और न ही शोकावस्था की रस्मों को पूरी तरह जानते हैं। सनातन से जुड़े कई संप्रदायों, मतों, जातियों में सिर मुंडवाने और दाढ़ी साफ कराने की परंपरा ही नहीं है। खुद लालू यादव के भाई का निधन हुआ था, तो उन्होंने सिर नहीं मुंडवाया। कांग्रेस के ही उदाहरण लें, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, शोकाकुल राजीव गांधी को सिर नहीं मुंडवाना पड़ा था। यही परंपरा राहुल गांधी ने भी निभाई। लालू या विपक्ष का कोई भी नेता देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक अपशब्दों का इस्तेमाल करता है, तो क्या चुनाव की लहर उनके पक्ष में बहने लगेगी? यदि अब चुनावी $िफजाओं में ‘मोदी का परिवार’ ही गूंजता रहेगा, तो जाहिर है कि बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, पेपरलीक, यौन शोषण, किसानी, असल अर्थव्यवस्था सरीखे मुद्दे चुनाव में पीछे छूट जाएंगे। हमने तो अधिकतर चुनाव किसी तात्कालिक और उत्तेजक मुद्दे पर ही होते देखे हैं। देश की जनता को व्यापक और गहरे तौर पर प्रभावित करने वाले मुद्दे बेजां ही चीखते रहे हैं।

परिवारवादी राजनीति भारत में खूब फल-फूल रही है। करीब 30 फीसदी सांसद राजनीतिक परिवार से आते हैं। करीब 22 फीसदी सांसद भाजपा में भी परिवारवादी हैं, लेकिन दोनों की परिभाषा और चरित्र में बहुत अंतर है। प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में बोलते हुए इनके अंतर को स्पष्ट किया था। ऐसी परिवारवादी राजनीति कमोबेश लोकतंत्र के लिए घातक है। राजनीतिक दल परिवारवादी नहीं होने चाहिए। बेशक एक ही परिवार के कई काबिल और जनाधार वाले लोग राजनीति में एक साथ सक्रिय रह सकते हैं। जिस तरह कांग्रेस में गांधी परिवार ही मुख्य धुरी है, उसी तर्ज पर कई अन्य दल भी वंशानुगत हैं। बहरहाल इस बहस से भाजपा को ही लाभ होगा।


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