नैनीताल पर खतरा

By: Mar 11th, 2024 12:06 am

नैनीताल उत्तराखंड का एक रमणीय पर्यटन स्थल है जो 1939 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। यहां की नैनी झील के चारों ओर फैली पहाडिय़ों के कारण यह एक कटोरेनुमा शहर है। इस सुंदर शहर की खोज कुछ अंग्रेजों ने 1839 में की थी जब वे किसी कार्य से घूमते हुए यहां पहुंचे थे। वर्ष 1841 में बेंटन तथा बेरन नामक दो अंग्रेजों ने इसे बसाने का कार्य प्रारंभ किया एवं 1842 में यहां 10 मकान स्थानीय सामग्री से बनाए। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से आकर्षित हो अंग्रेज यहां धीरे-धीरे बसने लगे एवं 1901 तक यहां की आबादी 7500 के लगभग हो गई। वर्तमान में इसकी आबादी 80 हजार के आसपास है एवं इतने ही पर्यटक यहां गर्मी के मौसम में प्रति सप्ताह आते हैं। प्रसिद्ध भू-विज्ञानी प्रो. सीसी पंत के अनुसार नैनीताल शहर की भौगोलिक स्थिति यहां के अन्य शहरों से अलग है। शहर के बीच से गुजरने वाले एक प्रमुख ‘भ्रंश’ (फाल्ट) के साथ छोटे-छोटे अन्य ‘भ्रंश’ होने से यह शहर भूगर्भ के लिहाज से काफी संवेदनशील है। भूकम्प को लेकर बनाए गए जोन 04 में यह आता है। भूगर्भीय गतिविधियों से यहां भूकम्प के झटके एवं पहाडिय़ों पर भूस्खलन होता रहता है। यहां की पहाडिय़ों पर भूस्खलन 1867 से ही हो रहा है। इसके बाद 1880, 1886, 1924, 1962 और 1970 में भी भूस्खलन हुए। यह भी पाया गया कि यहां 1962 के बाद भूस्खलन की रफ्तार बढ़ी। कहीं यह भी उल्लेखित है कि 1880 की किसी भूकम्पीय गतिविधि से मल्लीताल झील मैदान में तब्दील हुई थी।

धारण क्षमता (कैरिंग केपेसिटी) से ज्यादा निर्माण कार्य, वन-विनाश, खनन कार्य, कमजोर जल-मल प्रणाली आदि वजहों से वर्तमान में शहर के तीनों ओर की पहाडिय़ां भूस्खलन से दरक रही हैं, जिससे शहर खतरे में है। वर्ष 1900 में जब यहां की धारण क्षमता जानने की मांग उठी थी तब अध्ययन के आधार पर इसे 5000 की आबादी के लायक बताया था। कई प्रकरणों में सुप्रीमकोर्ट तथा राज्य की हाईकोर्ट ने झील के चारों तरफ पहाडिय़ों की कमजोर ढलानों पर निर्माण कार्य प्रतिबंधित करने को कहा था। कुमाऊं विश्वविद्यालय ने अपने एक अध्ययन में 2016 में बताया था कि वर्ष 2005 से 2015 के मध्य प्रतिबंधित क्षेत्रों में 50 प्रतिशत निर्माण कार्य ज्यादा हुए हैं। राज्य के हाईकोर्ट ने 2017 में नागपुर के राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान (नीरी) को यहां की धारण क्षमता का फिर से अध्ययन करने हेतु कहा था। वर्ष 2023 में मालरोड, टीफीन टॉप व व्यूपाइन्ट तथा आल्मा पहाड़ी पर हुए भूस्खलन की घटनाएं चेतावनी देती हैं कि नैनीताल भी जोशीमठ की राह पर अग्रसर है। यहां की प्रसिद्ध मालरोड पर फरवरी 23 में लंबी दरार देखी गई थी। वर्ष 2004 एवं 2018 में लोअर मालरोड का बड़ा हिस्सा भूस्खलन के कारण टूटकर झील में समा गया था। आईआईटी एवं अन्य संस्थानों के अनुसार मालरोड के क्षेत्र में भूमि के नीचे कठोर चट्टानें (हार्ड रॉक्स) नहीं होने से भूस्खलन होता रहता है।

पिछले वर्ष मई माह में टीफीन टॉप तथा व्यूपाइन्ट के आसपास की पहाडिय़ों पर दरारें आने से पर्यटकों की आवाजाही रोक दी गई थी। सितंबर में आल्मा पहाड़ी के दरकनें से चार मकान ढ़ह गए थे एवं इससे घबराकर स्थानीय प्रशासन ने 250 अन्य मकान तुरंत खाली करवा लिए थे। यह पहाड़ी झील के ऊपर बायीं तरफ सीधी खड़ी होने एवं नीचे से भुरभुरी होने के कारण ज्यादा संवेदनशील बताई गई है। प्रशासन के ध्यान नहीं देने से पिछले 25-30 वर्षों में यहां काफी निर्माण कार्य हुए हैं और यहां अभी 10 हजार के लगभग लोग रह रहे हैं। इस पहाड़ी पर अंग्रेजों के शासनकाल में 1880 में भारी भूस्खलन होने से 150 के लगभग लोग मारे गये थे जिनमें 42-43 अंग्रेज भी थे। भूस्खलन के 150 वर्ष पुराने इतिहास वाली बलिया नाला पहाड़ी भी दरक रही है। नैनीताल को बचाने के लिए कारगर उपाय करने होंगे। -(सप्रेस)

डा. ओपी जोशी

स्वतंत्र लेखक


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