शव संवाद-34

By: Mar 11th, 2024 12:05 am

भारत में पहचान बनाने के लिए लोग मरने का इंतजार करते हैं। हम जिंदा लोगों को पहचानें या मरने पर शव स्तुति के माहिर लोगों में गिने जाएं। हमारा सारा ज्ञान शमशानघाट की चारदीवारी में आकर तरोताजा हो जाता है। बुद्धिजीवी का वैचारिक जीवन यूं तो मरा सा है, लेकिन जब कोई मरता है तो वह चर्चाओं में खुद के होने का अहसास कर लेता है। यूं तो रूटीन में वह अखबारें पढक़र अधमरा हो जाता है और समाचार चैनल सुनते-सुनते सुध-बुध खो बैठता है। वह कई बार महसूस करता है कि बुद्धि का अगर गुरुत्वाकर्षण होता भी तो चैनलों के एंकर उसे टिकने नहीं देते। वह जब देश से कतराना चाहता है तो चैनल पर चर्चा सुन लेता है। चंद्रयान-3 पर उसने इतनी चर्चा चुन ली है कि उसे अब चंद्र ग्रह नहीं, भारत का अगला राज्य नजर आता है। समाचार चैनलों की वजह से वह बुद्धि की क्षमता खोज पाता है। वह इतना हल्का हो जाता है कि विचारों के बिना भी देश और समाज का सबसे स्वीकृत प्राणी बन जाता है, लेकिन दूसरी ओर यू-ट्यूबर हैं कि मानते नहीं। क्या भविष्य में बुद्धिजीवी नहीं, यू-ट्यूबर ही पहचाने जाएंगे। देश चाहता है कि चर्चाएं न हों। टीवी समाचार चैनल पूरी शिद्दत से ऐसा समाज बना चुके हैं कि देश के लिए न सोचा जाए। जो सत्ता कह दे, वही अमर वचन हो जाए। जो कर दे, वही अमृत जल। पर हाय! रे यू-ट्यूबर। न खाते, न खाने देते। न सोते, न सोने देते। जब हम मान रहे हैं कि देश में राम राज्य चल रहा है, तो इन्हें यह मंजूर नहीं। हर जगह अंगुली कर रहे हैं। अब तो जो लोग शांत हो गए हैं, जिन्हें देश या लोकतंत्र से कुछ लेना-देना नहीं, उन्हें भी अंगुली कर रहे हैं। खामख्वाह यू-ट््यूब में आकर कहते हैं कि चैनल सबस्क्राइब-लाइक करें।

कई बार लगता है कि इन बेचारों का भी सुन लिया जाए, लेकिन एक बार सुना तो सोने नहीं देते। सपने में आकर डराते हैं कि देश में यह हो गया, वो हो गया। बुद्धिजीवी परेशान है कि यू-ट्यूबर तो वह सब कुछ पकड़ रहा है, जो उसका दिमाग नहीं पकड़ पा रहा। पहली बार बुद्धिजीवी को लगा कि वह भी जाली बुद्धिजीवी है, क्योंकि सारा दिमाग तो यू-ट्यूबर के पास है। पहली बार किसी जिंदा के पास भी बुद्धि का काम नजर आया, तो बुद्धिजीवी ने सोचा कि एक दिन यू-ट्यूबर मर कर उससे जरूर संवाद करने के योग्य होगा। यू-ट्यूबर से कई परेशान घूम रहे थे। बुद्धिजीवी ने पूछा तो कहने लगे, ‘देश में यू-ट्यूबर अशांति फैला रहे हैं। कड़वा सच के नाम पर ये लोग देश की परंपराएं बिगाड़ रहे हैं। चैनल के एंकरों को देखो, जो देश कहना चाहता या कहने से परहेज करता है, उसे भी कह कर शांति फैला रहे हैं और इधर यू-ट्यूबर वह कह रहे हैं जो देश में कहना नहीं चाहिए।’ अंतत: जनता भडक़ गई और एक दिन एक यू-ट्यूबर के खिलाफ वातावरण इतना खराब हो गया कि उसकी जांच हो गई। जांच गहरी थी, अकारण थी और बिना आरोपों के चल रही थी। यू-ट्यूबर कठघरे में था, इसलिए अब उसकी बुद्धि पर कौन भरोसा करता। देश के कानून के आगे अब उसका शरीर शिथिल कर दिया गया था।

बुद्धिजीवी पहली बार यू-ट्यूबर की मालिश कर रहा था। उसे भरोसा था कि मालिश से उसका लगभग मृत बना दिया गया शरीर लौट आएगा, लेकिन एक बोलते हुए यू-ट्यूबर को कानूनन शव बना दिया गया। कानूनन शव बनाने के हुनर में देश का पहला प्रयोग सफल रहा। आइंदा जो यू-ट्यूबर देश के मत के खिलाफ अभिमत फैलाएंगे, उन्हें इस तरह किसी न किसी जांच से शव बना दिया जाएगा। यू-ट्यूबर के शव को उठाकर बुद्धिजीवी जैसे ही चलने को हुआ, एक आवाज आई, ‘मैं न जलूंगा और न ही दफन हूंगा। पास बहती गंगा में बहा दो।’ वहां यू-ट्यूबर के बहते शव पर बाकी यू-ट्यूबर चर्चा कर रहे थे, ‘देश के लिए यूं ही बह जाना अब सार्थक होगा।’ -क्रमश:

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक


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