जनादेश का लोकतांत्रिक पर्व

By: Mar 18th, 2024 12:05 am

जनादेश का लोकतांत्रिक पर्व एक बार फिर आया है। यह ऐसा पर्व है, जब देश की आम जनता वोट देकर लोकतंत्र को जिंदा रखती है और इस तरह देश के गणतंत्र और संविधान भी प्रासंगिक रहते हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनावी पर्व भी व्यापक और गहरा होता है। करीब 97 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर 18वीं लोकसभा, विधानसभाओं और अंतत: भारत सरकार का निर्वाचन करेंगे। इससे बड़ा लोकतंत्र और क्या हो सकता है? इतना विशाल और विराट लोकतंत्र अपने अस्तित्व के खतरे में कैसे हो सकता है? ये तथ्य और सत्य नहीं, फिजूल वाचाली है। भारत में जनादेश का यह उत्सव सम्यक सहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता, क्षेत्र-निरपेक्षता, समन्वय, कमोबेश हिंसामुक्त और विवेकपूर्ण होता है, लिहाजा जनादेश को ‘राष्ट्रीय’ और सर्वसम्मत माना जाता है। जनादेश स्वतंत्र, निष्पक्ष, निर्भीक साबित हो, लिहाजा देश में 81 दिन की ‘आदर्श चुनाव आचार संहिता’ लागू हो गई है। समूचे देश का प्रशासन अब चुनाव आयोग के अधीन आ गया है, लिहाजा प्रधानमंत्री के स्तर पर भी किसी नई नीति की घोषणा नहीं की जा सकती। हमारा यह जनादेशी पर्व व्यापक और पारदर्शी इसलिए आंका जाता रहा है, क्योंकि दूरदराज गांव, इलाका और पहाड़ की चोटियों पर मौजूद मतदाता भी अपनी सरकार चुनने के लिए वोट देने को संवैधानिक आधार पर अधिकृत हैं। जो सैनिक सरहदों पर तैनात हैं अथवा जो नागरिक किसी कार्यवश अपने क्षेत्र और घर से दूर हैं, उनके मताधिकार की भी व्यवस्था चुनाव आयोग करता है। अत्यधिक बुजुर्ग और दिव्यांग नागरिकों के मतदान उनके घरों पर ही सुनिश्चित कराए जाते हैं। पहली प्राथमिकता मतदान की है।

बहरहाल 18वीं लोकसभा के लिए मतदान 19 अप्रैल से 1 जून तक सात चरणों में कराया जाएगा। मतगणना 4 जून को ही सम्पन्न हो जाएगी, लिहाजा उसी दिन शाम तक स्पष्ट हो जाएगा कि जनादेश किसे मिला है? नई सरकार किस पार्टी और गठबंधन की बनेगी? सिर्फ जनादेश की तटस्थता और ईमानदारी के लिए आयोग 55 लाख ईवीएम का इस्तेमाल करेगा और 1.5 करोड़ चुनावकर्मी और सुरक्षाकर्मी जनादेश के पर्व को समानता और शांति से सम्पन्न कराएंगे। ईवीएम पर सर्वोच्च अदालत तमाम याचिकाओं को खारिज करते हुए ईवीएम को मान्यता दे चुकी है। अब इस पर किसी भी तरह का राजनीतिक प्रलाप बेमानी है। बहरहाल इन आंकड़ों के मद्देनजर भी हमारा आम चुनाव दुनिया में सबसे बड़ा और निष्पक्षता का उदाहरण है। अलबत्ता कुछ काली भेड़ें इस पर भी कालिख पोतने का दुस्साहस करती हैं, लेकिन वे नाकाम ही रहती हैं। जनादेश का यह सौभाग्यशाली दिन होगा, जब 1.82 करोड़ युवा मतदाता पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे और जनादेश की मुख्यधारा में जुड़ेंगे। चुनाव बूथ वाले उन मतदाताओं का मुंह मीठा कराएंगे। कुल 21.5 करोड़ मतदाता, जिनका आयु-वर्ग 18-29 साल है, जनादेश के पर्व में शिरकत करेंगे। अधिकतर देशों में इतनी तो आबादी भी नहीं होती और भारत के जनादेश की इतनी व्यापक ताकत है। बहरहाल इस बार का चुनाव बेहद महत्वपूर्ण और निर्णायक होगा। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 2014 और 2019 में लगातार दो राष्ट्रीय जनादेश भाजपा-एनडीए को हासिल हो चुके हैं।

यदि तीसरी बार भी जनादेश उन्हीं के पक्ष में रहता है, तो प्रधानमंत्री मोदी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समकक्ष हो जाएंगे, क्योंकि लगातार तीन बार जनादेश प्राप्त करने वाला कोई अन्य प्रधानमंत्री नहीं है। जिस दौर में यह चुनाव हो रहा है, उसमें एनडीए और ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच बड़े उग्र विरोधाभास हैं, नतीजतन नफरती भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। राजनीतिक दल और नेता व्यक्तिगत आक्रमण भी कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने इस संदर्भ में एक खास सलाह दी है और दलों को संयमी, सतर्क और समभावी होने के निर्देश भी दिए हैं। ऐसा भी परामर्श दिया गया है कि जाति और धर्म पर आधारित चुनाव प्रचार न किया जाए। यदि कोई दल किसी आपराधिक व्यक्ति को उम्मीदवार बनाता है, तो आयोग के इस संबंध में भी कुछ निर्देश हैं।


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