जीवन की गहराई

By: Mar 9th, 2024 12:15 am

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

कर्म डेटा की तरह है। आपकी ऊर्जा इस डेटा के अनुसार काम कर रही है। प्रारब्ध एक कुंडली बनी हुई स्प्रिंग की तरह है। इसको अपनी अभिव्यक्ति पानी ही है। अगर ये चीजें अभिव्यक्त नहीं होतीं, अगर आप इन्हें दबाते हैं तो वे बिलकुल अलग रूप में जड़ पकड़ लेंगी…
लोगों ने अपने जीवन की गहराई खो दी है। इसका कारण यही है कि वे अपना ध्यान सिर्फ उस पर केंद्रित रखते हैं जो उनके लिए सुविधाजनक है और जिसे वे सकारात्मक कहते हैं। इससे वे बेकार हो गए हैं। उन्हें हर चीज बहुत जल्दी चाहिए जल्दी, जल्दी! किसी भी चीज के लिए कोई समर्पित भाव उनमें नहीं है। मान लीजिए अगर कोई वैज्ञानिक होना चाहता है, तो उसे कई सालों तक पढऩा पड़ेगा। हो सकता है कि वो अपनी पत्नी और बच्चों तक को भूल जाए। वो सब कुछ भूल जाता है और अपने आपको पूरी तरह समर्पित कर देता है। तभी, भौतिकता में भी, उसके लिए कोई बात खुलती है। ऐसा स्थिर फोकस आज के आधुनिक संसार में, ज्यादातर देखने को नहीं मिलता क्योंकि आजकल जो बात बहुत सिखायी जाती है, वो है, चिंता मत करो। खुश रहो। हर चीज बढिय़ा है।

बस मजे करो! इस तरह की खुशी जरूर ही खत्म हो जाएगी और लोगों को मानसिक बीमारियां हो जाएंगी। पश्चिम में, मैं जो एक खास तौर से लोकप्रिय बात सुनता हूं और जो अब भारत में भी तेजी से बढ़ रही है, वो है, खुश रहो, इसी पल में जियो। क्या आप मुझे कहीं और जी कर बता सकते हैं? कृपया ऐसा कर के दिखाईए तो जरा! कुछ भी हो, आप इसी पल में हैं। आप और कहां हो सकते हैं? सभी लोग ये बात करते हैं क्योंकि इस विषय पर ऐसे लोगों के द्वारा बहुत सारी किताबें लिखी गई हैं और बहुत सारे कार्यक्रम किए गए हैं जिन्हें इस बारे में न कोई अनुभव है न समझ। अगर आप उन लोगों को देखें जो हमेशा ‘खुश रहिए’ कहते रहते हैं, तो उनकी जीवन शैली के आधार पर, वे कुछ ही सालों में हताश, डिप्रेस्ड हो जाते हैं। निश्चित रूप से ये आपको बहुत गहराई तक चोट पहुंचाएगा क्योंकि आपकी ऊर्जाएं आपके कर्म बंधनों की संरचना के अनुसार अलग-अलग संभावनाओं के लिए बंटी हुई रहती हैं। आपके दर्द, दुख, आनंद, प्यार वगैरह सब के लिए कुछ न कुछ है। इसे प्रारब्ध कर्म कहते हैं। ये सिर्फ आपके मन में ही नहीं है।

कर्म डेटा की तरह है। आपकी ऊर्जा इस डेटा के अनुसार काम कर रही है। प्रारब्ध एक कुंडली बनी हुई स्प्रिंग की तरह है। इसको अपनी अभिव्यक्ति पानी ही है। अगर ये चीजें अभिव्यक्त नहीं होतीं, अगर आप इन्हें दबाते हैं तो वे बिलकुल अलग रूप में जड़ पकड़ लेंगी। ये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है कि आप किसी चीज को वैसे ही देखें जैसी वो है। आप किसी चीज से इंकार न करें। अगर दुख आता है तो दुख। उदासी आती है तो उदासी। आनंद आता है तो आनंद। उल्लास होता है तो उल्लास। जब आप ये करते हैं, तो आप किसी चीज से इंकार नहीं कर रहे या किसी चीज को रोकने की कोशिश नहीं कर रहे। ऐसे में हर चीज हो रही है, पर आप उससे मुक्त हैं।


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