चुनावी आग के बिछौने

By: Mar 30th, 2024 12:05 am

कहीं टीस, कहीं उम्मीद के साथ कांग्रेस से छिटके छह विधायकों का सम्मान समारोह भाजपा के बैनर तले, कुछ कह गया, कुछ सुन गया। टीस पहले कांग्रेस में बगावत तक पहुंची और अब भाजपा के भीतर अपनी अंगुलियां मरोड़ रहे नेताओं तक पहुंच गई। भाजपा काफिला बनाने में माहिर है, इसलिए उपचुनावों की पारी में खुद के साथ पूर्व कांग्रेसी विधायकों को तराश रही है। यह दीगर है कि इस कसरत में जिनसे कुर्सियां छीनी गईं वे अब आलमगीर बने नजर आते हैं। भाजपा के चोटीधारी अब मूंछ पर हाथ फेर रहे हैं, तो यह समझना लाजिमी है कि क्यों पार्टी ने चुपके से पूछ लिया,‘तेरा क्या होगा कालिया’। मलाल के दौर से गुजर रहे पूर्व मंत्री रमेश धवाला, किशन कपूर, रामलाल मार्कंडेय व वीरेंद्र कुंवर जैसे नेताओं के गुलदस्ते में कांटे भर कर भाजपा ने कौनसी नसीहत-कौनसी फजीहत की, यह आविष्कार केवल यही पार्टी कर सकती है, वरना कभी कांगड़ा के नेताओं ने धूमल सरकार के रास्ते में कोई कम कांटे नहीं बिछाए थे। ज्वाला चाहे धवाला की रही हो या किशन कपूर की, कांगड़ा अपने भाग्य जगाने के लिए हमेशा आग में कूदा है। इस बार भी अगर सुधीर शर्मा ने अपने विधायक पद की आहुति दी, तो यह चमत्कार नहीं, आग का बिछौना है। इसी तरह की आग के बिछौने पर एक साथ नौ विधायक अगर राजनीति के हवन कुंड में कूदे हैं, तो देखना यह है कि भाजपा इन्हें झुलसने से कैसे बचाती है।

भाजपा के संयम और कृपादृष्टि का अद्भुत संगम तमाम नौ बागी विधायकों के सम्मान समारोह में देखा गया, जहां सूखी नदियां सागर से जा मिलीं, लेकिन बादलों ने आंसू रोक लिए। जो कल तक अपशब्द थे, वे आज पुष्प बन गए। यह कैसी खुदाई, यह कैसा मंजर, कल के नासूर वरदान हो गए। यह चुनाव की नई परेड है, जहां फूल खुद चुन रहा है किसी के लिए हार। हमीरपुर में राजिंद्र राणा, इंद्रदत्त शर्मा और आशीष शर्मा का स्वागत समारोह, अतीत की न जाने कितनी बरसियां मना गया। भाजपा में इनके आगमन की सौगात ने कितने जख्म भुलाए या भीतर ही भीतर कितने भाजपाई सताए, यहां इतिहास सबसे कड़वा घूंट पी रहा होगा, लेकिन कमाल के पलक पांवड़े हैं जिनका इस्तेमाल यह पार्टी कर लेती है। इसी हमीरपुर के सुजानपुर में एक घोषित मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल से जिस राजेंद्र राणा ने पद और पदक छीना था, उसके लिए आसन बिछाए भाजपा इंतजार कर रही है। ये सियासत का भरत मिलन है जो सांसद अनुराग ठाकुर के हाथों राजेंद्र राणा को पार्टी का तिलक लगाता है और फिर आशीर्वाद की मुद्रा में धूमल परिवार का आलिंगन करना चाहता है। हम सवा साल के भीतर केवल उपचुनाव नहीं देख रहे, बल्कि हिमाचल की सूरत में अपना विश्वास, अस्तित्व और स्थायित्व में रिसाव भी देख रहे हैं। इस परिदृश्य की अभिशप्त फिजाओं से हम कतई यह उम्मीद नहीं कर सकते कि हिमाचल का आर्थिक ढांचा मजबूत होगा या मुद्दों की बात पर कोई नेता पैदा होगा। हमारे संघर्ष या तो कर्मचारी राजनीति की गोद में बैठे रहे या हर बार मतदान ने सिर्फ पटकनी का इजहार किया। एक बार फिर हिमाचल में पटकनी बनाम पटकनी का मुकाबला केवल पार्टियों के बीच नहीं, नेताओं के बीच भी है।

लोकसभा चुनाव में भाजपा की मंडी से कंगना रनौत को पटकनी देने के लिए सैनिक लीग तक को आगे आना पड़ा है, तो कांगड़ा में राजीव भारद्वाज की उम्मीदवारी के सामने कई नेताओं की महत्त्वाकांक्षा भारी है। दफन होती परिपाटी के सबूत जिल्लत नहीं भूलते, इसलिए सियासत के कोई उसूल नहीं होते। कुछ दिन पहले तक कांगड़ा के नेताओं की जुगलबंदी में हिमाचल के आसमान को छूने की तमन्ना थी, लेकिन अब किस्से बदल रहे हैं। कमोबेश यही हाल हमीरपुर की जमीन पर राजेंद्र राणा के प्रवेश को लेकर भी है। भले ही सुधीर शर्मा के लिए भाजपा ने सियासत की धर्मशाला सजा दी है, लेकिन कांगड़ा की खड्डों के न इस पार कोई शांति है और न उस पार की बेचैनी घटी है। चुनाव के बिछौने धू-धू सुलग रहे, लेकिन इनसे बचा भी तो नहीं जा सकता है। जाहिर तौर पर चुनावी परिणाम बहुत कुछ बदल देंगे।


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