चुनावी बांड ने सियासी दलों का भांडा फोड़ा

By: Mar 23rd, 2024 12:05 am

इस पूरे प्रकरण में सर्वाधिक आश्चर्य यह है कि राजनीतिक दल एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। सभी एक-दूसरे को भ्रष्टाचार का आरोपी बता रहे हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले किसी ने चंदा लेने की पारदर्शिता की नीति पर अमल तक करने की जरूरत नहीं समझी। हर स्तर पर किया लेन-देन सार्वजनिक किया जाना चाहिए…

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड के मामले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सारे पंैतरे व्यर्थ कर दिए। इसके साथ ही इस पूरे मामले से चंदा लेने वाले राजनीतिक दलों की नीयत से भी पर्दा उठ गया। सुप्रीम कोर्ट के भय से एसबीआई द्वारा किए गए खुलासे से जाहिर हो गया है कि जिस भी राजनीतिक दल का जोर चला उसने उसी हिसाब से उद्योपतियों और व्यवसायियों से चंदा वसूल किया है। यह तो निश्चित है कि कोई उद्यमी मुफ्त में कुछ नहीं देता। चंदा देने के दो ही तरीके हैं। पहला यह कि राजनीतिक दलों के डर के मारे देना पड़े और दूसरा ऐसा करने से निहित स्वार्थ साधे जा सकते हैं। किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सार्वजनिक करवा कर सबको हमाम में नंगा कर दिया। इससे जाहिर हो गया कि दूध का धुला कोई राजनीतिक दल नहीं हैं। जिस राजनीतिक दल की जितनी हैसियत है, उसने उसी हिसाब से चुनावी चंदा वसूला है। यही वजह है कि क्षेत्रीय दलों को कम और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को सर्वाधिक चंदा मिला है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट की इस पूरी कवायद में उद्यमी दो पाटों के बीच फंस गए हैं। उद्यमी कभी यह नहीं चाहते थे कि उनके चंदा देने का खुलासा हो। खुलासा होने के बाद उनके साथ कम चंदा मिलने या नहीं मिलने पर राजनीतिक दल बदले की भावना से काम करे बिना नहीं मानेंगे। ऐसे में उद्यमी चंदा देकर मुसीबत मोल ले बैठे। यदि उद्यमी सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों से बच गए तो राज्यों में सत्तारूढ़ गैर भाजपा दलों की राज्यों की एजेंसियों की लपेटे में आ सकते हैं। राज्य की एजेंसियां किसी न किसी बहाने चंदा कम मिलने या नहीं मिलने का हिसाब चुकता किए बगैर नहीं मानेंगी। बदले की भावना से राजनीतिक दलों द्वारा कराई गई ऐसी कार्रवाई को छिपाने के लिए एजेंसियां रटा-रटाया जवाब पहले भी देती रही हैं कि कानून अपना काम करेगा। राजनीतिक दलों ने ऐसे उद्यमियों से भी चंदा लेने से गुरेज नहीं किया जिन पर केंद्रीय प्रवर्तन निदेशालय की नजर है।

दूसरे शब्दों में कहें तो उद्यमी इस मंशा को भांप गए कि चंदा देकर निशाने से कैसे बचा जा सकता है। चुनावी बांड की योजना लागू होने के बाद इसके माध्यम से सबसे अधिक 6986.5 करोड़ रुपए की धनराशि भाजपा को प्राप्त हुई। इसके बाद पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस को 1397 करोड़ रुपए, कांग्रेस को 1334 करोड़ रुपए और बीआरएस को 1322 करोड़ रुपए मिले। चुनावी बॉन्ड से सबसे ज्यादा दान पाने वालों की पार्टियों में तृणमूल दूसरे, कांग्रेस तीसरे और बीआरएस चौथे नंबर की पार्टी है। खास बात यह भी है कि जिन राजनीतिक दलों के पास सत्ता नहीं है और जिनके सत्ता में आने की संभावना क्षीण है, उनका आकलन करके चंदा देने वालों ने किनारा कर लिया। यदि सुप्रीम कोर्ट एसबीआई को इसका खुलासा करने पर मजबूर नहीं करता तो इस गठजोड़ का खुलासा कभी नहीं हो पाता। कई राजनीतिक दलों ने विभिन्न कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए चुनावी बॉन्ड देने वालों का विवरण साझा करने से इन्कार करते रहे। जबकि कुछ दलों ने कहा कि उन्हें ड्रॉप बॉक्स या डाक के माध्यम से चंदा मिला है, जिन पर किसी का नाम नहीं था। एक लॉटरी कंपनी से अधिकांश चंदा हासिल करने वाली द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) ने 2019 में उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार चुनावी बॉन्ड का विवरण प्राप्त करने के लिए अपने दानकर्ताओं से संपर्क किया था। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चंदा देने वालों का खुलासा न करने के लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम तथा आयकर अधिनियम के संबंधित पहलुओं का हवाला दिया। भाजपा ने निर्वाचन आयोग को लिखे अपने पत्र में कहा कि विधिवत प्रस्तुत किया जा चुका है कि चुनावी बॉन्ड योजना केवल राजनीतिक वित्तपोषण में धन का हिसाब-किताब रखने और दानदाताओं को किसी भी परिणाम से बचाने के उद्देश्य से पेश की गई थी। कांग्रेस ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को एक पत्र लिखकर चुनावी बॉन्ड दाताओं, धनराशि, तारीख और उस बैंक खाते का विवरण मांगा जिसमें ये जमा किए गए थे। एसबीआई ने कांग्रेस को जवाब दिया कि चुनावी बॉन्ड का विवरण राजनीतिक दलों के पास उपलब्ध है और बैंक खाते की जानकारी आयोग के साथ साझा की गई है। समाजवादी पार्टी ने एक लाख रुपए और 10 लाख रुपए की अपेक्षाकृत छोटी राशि के बॉन्ड का विवरण साझा किया।

पार्टी ने बताया कि उसे एक करोड़ रुपए के 10 बॉन्ड बिना किसी नाम के डाक से प्राप्त हुए थे। लगभग 77 प्रतिशत चंदा लॉटरी किंग कहे जाने वाले सेंटियागो मार्टिन की कंपनी फ्यूचर गेमिंग से हासिल करने वाली द्रमुक ने कहा कि उसने दान का विवरण हासिल करने के लिए दानदाताओं से संपर्क किया था। द्रमुक ने कहा कि इस योजना के तहत दान लेने वाले को दानकर्ता का विवरण देने की भी आवश्यकता नहीं थी। फिर भी, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए, हमने अपने दानदाताओं से संपर्क करके विवरण हासिल किया। तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) ने दानदाताओं के नामों की जानकारी वाले कॉलम में तत्काल उपलब्ध नहीं लिखा है। तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि चुनावी बॉन्ड पार्टी कार्यालय में भेजे गए थे और उन्हें ड्रॉप बॉक्स में डाल दिया गया था। टीएमसी ने कहा कि पार्टी का समर्थन करने की इच्छा रखने वाले विभिन्न व्यक्तियों की ओर से दूतों के माध्यम से कुछ बॉन्ड भेजे गए थे जिनमें से कई ने गुमनाम तरीके से दान किया। शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा ने बॉन्ड देने वालों का विवरण प्रस्तुत करने में असमर्थता व्यक्त की, क्योंकि पार्टी ने विवरण नहीं रखा था और न ही कोई रसीद जारी की थी। राकांपा ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में कहा कि उसके कई पदाधिकारी चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। राकांपा ने कहा कि जहां भी संभव हुआ, हमने उस व्यक्ति का नाम बताया है जिसके माध्यम से पार्टी को बॉन्ड प्राप्त हुए थे। कांग्रेस की गोवा इकाई ने पार्टी को मिले 30 लाख रुपए के चुनावी बॉन्ड का विवरण प्राप्त करने के लिए अपने दानदाता वीएम सालगांवकर एंड ब्रदर्स से संपर्क किया। राष्ट्रीय जनता दल ने कहा कि 1.5 करोड़ रुपए के दान के बारे में विवरण आसानी से उपलब्ध नहीं है।

नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल (यूनाइटेड) ने आयोग को बताया है कि किसी ने 2019 में उसके कार्यालय में 10 करोड़ रुपए के चुनावी बॉन्ड वाला एक लिफाफा दिया था, जिसे पार्टी ने भुना लिया। राजनीतिक दलों की इस पैंतरेबाजी को एक तरफ करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को लेकर एसबीआई को पूरी जानकारी देने को कहा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि एसबीआई को चुनावी बॉन्ड से जुड़ा विशेष नंबर (यूनीक अल्फा-न्यूमेरिक नंबर) बताना होगा, ताकि इसके खरीददार और भुनाने वाले राजनीतिक दलों का पता चल सके। सुप्रीम कोर्ट ने डंडा चलाकर चुनावी बांड की आड़ में भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के सारे खेल को उजागर कर दिया। एसबीआई ने भय के मारे सारी जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दे दी। कोर्ट के आदेश पर चुनाव आयोग ने इसे सार्वजनिक कर दिया। इससे हर एक दानदाता का खुलासा हो गया है। इस पूरे प्रकरण में सर्वाधिक आश्चर्य यह है कि राजनीतिक दल एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। सभी एक-दूसरे को भ्रष्टाचार का आरोपी बता रहे हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले किसी ने चंदा लेने की पारदर्शिता की नीति पर अमल तक करने की जरूरत नहीं समझी। यदि भ्रष्टाचार को खत्म करना है तो हर स्तर पर किया लेन-देन सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

योगेंद्र योगी

स्वतंत्र लेखक


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