हर पल अदालत तक
यहां धुंध का धुंध से संघर्ष, लोग जीत देखने को बीच में खड़े। फिलहाल हिमाचल में केवल लोकसभा या विधानसभा उपचुनाव का डंका नहीं बज रहा, बल्कि निगाहें ढूंढ रही हैं हारी हुई चरागाहें। यहां अंदेशा और अंदाजा एक साथ समीकरणों की खींचतान कर रहा है। हर पल के कदम अदालत तक पहुंचे हुए, कल तक कयास में थे कि बागी विधायकों को कानून का कितना फैसला मिलता, लेकिन आज फासला बढ़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने 18 मार्च तक की उम्मीदों को कोई राहत भले ही नहीं दी, लेकिन छह मई के दिन हिमाचल विधानसभा अध्यक्ष की कानूनी भूमिका की फिर से परख होगी। हालांकि इस बीच चुनाव की तिथियों में लोकसभा के साथ नत्थी हो चुका उपचुनाव और सियासी गहमागहमी के बीच सियासी मुद्राएं, मुकुट और मकसद प्रकट हो गए हैं। हम उपचुनाव को छह मई तक अब इसलिए सुनिश्चित नहीं कर रहे, क्योंकि कानूनी प्रक्रिया में चुनाव की अधिसूचनी सात मई को होगी। यानी धडक़नें अब गोल्फ गेंद की तरह उछल रही हैं, फिर भी असमंजस के शिकार हुए अयोग्य विधायकों को कानून की योग्यता से कानून की प्रक्रिया तक चलते रहना होगा।
हिमाचल में कई कानूनी किश्तियां दौड़ रही हैं। विधानसभा अध्यक्ष के जिस फैसले पर छह विधायकों का भविष्य चोट खा रहा है, उसके संदर्भों में सुप्रीम कोर्ट का नोटिस सदन के पीठासीन से जवाब मांग रहा है। अठाईस फरवरी की सर्द हवा अब छह मई की गर्माहट के सामने खुद में कितना कानून सामने रख पाती है, यह देखना होगा। यह दीगर है कि दूसरी ओर भाजपा के नौ विधायकों द्वारा सदन में समझे गए खेदजनक व्यवहार पर जवाब देने का औचित्य विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी सुन सकती है। यहां राजनीति के आने अब पाई साबित हो रहे हैं, तो चारों ओर तांडव नृत्य जैसा शोर मचा है। एक तरह से अब हिमाचल कहां लोकसभा चुनाव में खुद को देख रहा है। जिन मतदाताओं ने कांग्रेस को छह विधायक दिए, वे सभी गौण हैं। अब वकील हैं, वकालत है, अदालत है और इन सबके बीच विधानसभा के कक्ष में लोकतंत्र का अधिकार गूंज रहा है। हिमाचल सरकार का मोह, महत्त्व और महत्त्वाकांक्षा भी अब कानून की फेहरिस्त में सीपीएस नियुक्तियों पर अगली सुनवाई के इंतजार में है। सीपीएस को मंत्रियों वाली सुविधाएं लेने पर रोक के बावजूद पद के लाभार्थी यानी संजय अवस्थी, सुंदर सिंह, राम कुमार, मोहन लाल ब्राक्टा, आशीष बुटेल और किशोरी लाल के खिलाफ दी गई चुनौती पर अंतिम फैसले की दरकार है। लाभ के पदों की ख्वाहिश ने जिन्हें निराश किया, वे तमाम योद्धा असंतुष्ट होते-होते बागी बागीचों में गुम हैं, तो जिन्हें सरकार ने पोसा, उनकी हैसियत को भाजपा ने अदालत में खड़ा कर दिया। हिमाचल की राजनीति के कई पांव हम देख सकते हैं।
यही पांव क्रॉस वोटिंग तक पहुंचे, तो सदन से अयोग्य हो गए और सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे, तो बीच में चुनाव के शंख बज गए। इधर सत्ता के सामने भाजपा के नौ विधायकों के पांवों में निष्कासन के छाले उभरे हैं, तो उच्च अदालत के रास्ते पर कांटों पर चलते हुए मुख्य संसदीय सचिव अपने पांव बचा रहे हैं। चारों तरफ अदालतें ही अदालतें और कोशिश व कयास यह कि दूसरा पक्ष हलाल हो जाए। उस जनादेश का नामोनिशान मिट जाए जो जनता को मतदान केंद्र पर दुआएं करता हुआ देखता है। विचित्र परिस्थितियों में हिमाचल और विपरीत परिस्थितियों के चुनाव में हर किसी का पांव फंसा है। यहां कई तरह के बुरे दिन देखे जा रहे हैं। कई तरह के फार्मूले। ऐसे में हिमाचल पर लोकसभा से भी भारी हो सकते हैं उपचुनाव। सत्ता की संपत्ति समझे सीपीएस मामले के सामने आक्रोश की राजनीति में डूबने निकले विधायक आखिर अब होंगे किसकी संपत्ति। उपचुनाव की स्थिति अगर कानूनी जंग तक पहुंचा गई, तो चुनाव के अभ्यास मैच में टिकट आबंटन की बाउंडरी के उस पार कई टूटे हुए दिल और हारे हुए मकसद मिलेंगे। आगामी चुनावों में किसी के लिए भी अंगूर खट्टे साबित हो सकते हैं, लेकिन हिमाचल की राजनीति का सारा मजा बर्बाद हो जाएगा।
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