मेला खाटूश्याम जी

By: Mar 16th, 2024 12:22 am

हिंदू पंचांग के अनुसार, 20 मार्च यानी आमलकी एकादशी के दिन बाबा श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। ऐसे में प्रसिद्ध बाबा खाटू श्याम का लक्खी मेला 21 मार्च तक आयोजित किया जाएगा। वहीं, बाबा श्याम का मुख्य लक्खी मेला 20 मार्च को होगा। इस बार लक्खी मेला 10 दिवसीय होगा। इस मेले में देशभर से लाखों भक्त पहुंचते हैं। खाटूश्याम जी को श्रीकृष्ण ने वरदान में अपना नाम श्याम दिया था…

हर साल फाल्गुन मास की एकादशी तिथि को बड़े ही धूमधाम से बाबा श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दिन भारी संख्या में भक्त खाटू श्याम जी के दर्शन करने आते हैं। ऐसे में हर साल सीकर जिले में खाटू श्याम जी मेले का भी आयोजन किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 20 मार्च यानी आमलकी एकादशी के दिन बाबा श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। ऐसे में प्रसिद्ध बाबा खाटू श्याम का लक्खी मेला 21 मार्च तक आयोजित किया जाएगा। वहीं, बाबा श्याम का मुख्य लक्खी मेला 20 मार्च को होगा। इस बार लक्खी मेला 10 दिवसीय होगा। इस मेले में देशभर से लाखों भक्त पहुंचते हैं। लक्खी मेले में पहुंचने के लिए देशभर से जयपुर पहुंचने के कई साधन आसानी से मिल जाते हैं। जयपुर आने के बाद यहां से खाटूश्याम जी पहुंचने के लिए प्राइवेट कैब ली जा सकती है। जयपुर से कई बसें चलती हैं, जो सीधे खाटूश्याम जी तक पहुंचा देती हैं। अगर आप ट्रेन से आना चाहते हैं, तो खाटूश्याम जी के धाम का करीबी रेलवे स्टेशन रिंगस है। रिंगस से खाटू धाम करीब 18 किमी. दूर है।

खाटूश्याम जी को क्यों कहते हैं हारे का सहारा
खाटूश्याम जी की कथा महाभारत से जुड़ी है। खाटूश्याम जी का मूल नाम बर्बरीक है। बर्बरीक पांडव पुत्र भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे। जब महाभारत युद्ध शुरू हो रहा था, उस समय बर्बरीक को अपनी माता से महाभारत युद्ध के बारे में मालूम हुआ। बर्बरीक ने भी युद्ध में जाने की बात कही, तो उनकी माता ने कहा कि युद्ध में जो भी पक्ष कमजोर होगा, तुम उसकी ओर से युद्ध लडऩा। माता की आज्ञा के बाद बर्बरीक युद्ध में भाग लेने चल दिए। बर्बरीक को तीन बाण धारी भी कहते हैं, क्योंकि उनके पास तीन दिव्य बाण थे जो कि अभेद थे यानी ये बाण अपना लक्ष्य भेदकर वापस बर्बरीक के तरकश में लौट आते थे। बर्बरीक इन तीन बाणों की वजह से अजय यौद्धा थे। जब वे महाभारत युद्ध भूमि की ओर जा रहे थे, उस समय उनकी भेंट श्रीकृष्ण से हुई। बर्बरीक ने श्रीकृष्ण को बताया कि वे महाभारत में कमजोर पक्ष की ओर से युद्ध करेंगे, हारे का सहारा बनेंगे। श्रीकृष्ण जानते थे कि युद्ध में कौरव पक्ष की हार होगी और ऐसे में अगर बर्बरीक कौरव पक्ष की ओर से युद्ध लड़ेगा, तो पांडव युद्ध जीत नहीं सकेंगे और धर्म की हार हो सकती है। पांडवों को और धर्म की जीत के लिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका कटा हुआ सिर दान में मांग लिया। बर्बरीक श्रीकृष्ण को अपना सिर देने के लिए तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने कहा कि मैं शीश काटकर तो दे दूंगा, लेकिन मैं ये पूरा युद्ध देखना चाहता हूं। तब श्रीकृष्ण भी इस बात के लिए तैयार हो गए। बर्बरीक ने अपना सिर काटकर श्रीकृष्ण को दान कर दिया। श्रीकृष्ण ने एक ऊंचे स्थान पर बर्बरीक का सिर रख दिया, जहां वे महाभारत का पूरा युद्ध देख सके। बर्बरीक की दानवीरता से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को अपना नाम श्याम वरदान के रूप में दिया और कहा कि कलियुग में तुम मेरे नाम से ही पूजे जाओगे और खासतौर पर हारे हुए भक्तों की मनोकामनाएं तुम्हारी पूजा से पूरी हो सकेंगी। मान्यता है कि खाटूश्याम जी का धाम वही स्थान है, जहां श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का कटा सिर रखा था।

अनूठी परंपरा
माना जाता है कि सूरजगढ़ से खाटू तक पहुंचने वाली निशान पदयात्रा करीब 327 साल पुरानी है। सर्वप्रथम विक्रम संवत् 1752 में अमरचंद भोजराजका परिवार ने इस पदयात्रा की शुरुआत की थी। बताते हैं कि उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत ने श्याम मंदिर के बाहर ताला लगा दिया था। तब इसी निशान की अगुवाई कर रहे सांवलाराम के कहने पर एक भक्त मंगलाराम ने मोरपंख से ताला तोड़ दिया था। तब से यह पदयात्रा हर साल आयोजित की जाती है।


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