विद्यार्थियों के लिए फिटनेस कार्यक्रम

By: Mar 15th, 2024 12:06 am

कम से कम बीस मिनटों तक तेज चलने, दौडऩे व शारीरिक क्रियाओं के करने से रक्त वाहिकाओं में रक्त संचार तेज हो जाता है। उससे हर मसल को उपयुक्त मात्रा में प्राणवायु मिलने से उसका समुचित विकास होता है। विद्यार्थी को कल का अच्छा नागरिक बनाना है तो उसे फिटनेस कार्यक्रम देना होगा…

वर्षों से स्कूली स्तर पर फिटनेस कार्यक्रम शुरू करने की बात इस कॉलम के माध्यम से हो रही है, मगर हिमाचल प्रदेश का कोई भी सरकारी या निजी स्कूल अपने यहां फिटनेस कार्यक्रम लागू करने में नाकाम रहा है। कई बार नए शिक्षा सत्र शुरू होकर खत्म हो गए, मगर फिटनेस कार्यक्रम कहीं भी शुरू नहीं हो पाया है। मगर इस वर्ष हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य के विद्यालयों में विद्यार्थियों की सामान्य फिटनेस के लिए पहले की तरह अनिवार्य रूप से ड्रिल के पीरियड का प्रावधान किया है। शिक्षण विषयों के रिपोर्ट कार्ड की तरह स्वास्थ्य के मानकों का रिपोर्ट कार्ड भी प्रत्येक विद्यार्थी का हर स्कूल में अनिवार्य रूप से हो, क्योंकि भाषा व अन्य शिक्षण विषयों की तरह ही स्वास्थ्य के मूल स्तंभ स्पीड, सट्रेंथ, इडोरैंस व लचक आदि का प्रायोगिक प्रशिक्षण भी उसी उम्र में शुरू करना होता है। शिक्षण विषयों के लिए तो स्कूलों के पास शिक्षक सहित पूरा प्रबंध है, मगर स्वास्थ्य के घटकों को विकसित करके उनका मूल्यांकन करने की कोई भी सुविधा आज तक उपलब्ध नहीं हो पाई है। इस कॉलम के माध्यम से कई बार इस विषय पर स्कूलों व अभिभावकों को चेताया जा चुका है, मगर कोई भी समझने के लिए तैयार नहीं है।

किसी भी देश को इतनी क्षति युद्ध या महामारी से नहीं होती है, जितनी तबाही नशे के कारण हो सकती है। आज जब देश के अन्य राज्यों सहित हिमाचल प्रदेश में भी नशा युवा वर्ग पर ही नहीं किशोरों तक चरस, अफीम, स्मैक, नशीली दवाओं तथा दूरसंचार के माध्यमों के दुरुपयोग से शिकंजा कस रहा है, इसलिए सरकार, स्कूल प्रबंधन व अभिभावकों को इस विषय पर जरूरी कदम जल्दी ही उठा लेने चाहिएं। यदि विद्यार्थी किशोरावस्था में नशे से बच जाता है तो वह फिर युवावस्था आते-आते समझदार हो गया होता है। माध्यमिक से वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों को विभिन्न विधाओं में व्यस्त रखने के साथ-साथ शारीरिक फिटनेस की तरफ मोडऩा बेहद जरूरी हो जाता है। मानव का सर्वांगीण विकास शिक्षा के बिना अधूरा है। शिक्षा की परिभाषा में साफ-साफ लिखा है कि यहां शारीरिक व मानसिक दोनों तरह से बराबर विद्यार्थियों का विकास करना है जिससे वे आगे चलकर जीवन को सफलतापूर्वक खुशहाल जी सकें। शारीरिक विकास के लिए खेलों के माध्यम से फिटनेस कार्यक्रम बहुत जरूरी हो जाता है। खेल ही वह माध्यम है जिसके द्वारा विद्यार्थी को नशे से दूर रखा जा सकता है। पड़ोसी राज्य पंजाब एक समय तरक्की में देश का अग्रणी राज्य रहा है। खेलों में उत्कृष्टता उस प्रदेश की तरक्की व खुशहाली का भी पैमाना होती है। पंजाब में हजारों प्रशिक्षक विभिन्न खेलों में खेल प्रशिक्षण के लिए नियुक्त होने के साथ-साथ खेल प्रशिक्षण के लिए आधारभूत ढांचा होना वहां के विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का प्रमुख कारण रहा था। बाद में जब पंजाब धीरे-धीरे खेलों से दूर हुआ तो पहले वहां आतंकवाद और फिर आजकल पंजाब नशे का अड्डा बना हुआ है। यही कारण है कि हर क्षेत्र में आज हरियाणा पंजाब से काफी आगे निकल गया है।

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने एशियाई, राष्ट्रमंडल व ओलंपिक खेलों में पदक विजेता होने पर खिलाडिय़ों को करोड़ों रुपए के नगद ईनाम व सम्मानजनक नौकरी देकर हरियाणा में खेलों के लिए बहुत ही उपयुक्त वातावरण तैयार किया है। उसी का नतीजा है कि आज हरियाणा का हर किशोर व युवा किसी न किसी खेल के मैदान में नजर आता है। हिमाचल प्रदेश में भी पूर्व मुख्यमंत्री प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल ने प्रदेश की खेलों के लिए अपने पहले कार्यकाल से ही कई महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए हिमाचल प्रदेश में कई खेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड, सरकारी नौकरियों में तीन प्रतिशत आरक्षण तथा देश में प्रशिक्षक कैडर डाईंग हो जाने के बाद पहली बार प्रशिक्षकों की भर्ती जैसे बहुत बड़े खेल सुधार किए। हिमाचल प्रदेश की खेल सुविधाओं का प्रयोग राज्य में स्वास्थ्य व खेलों के लिए बड़े स्तर पर करना चाहिए। हिमाचल प्रदेश इस समय शिक्षा के क्षेत्र में देश के अग्रणी राज्यों में गिना जाता है। पिछले कुछ दशकों से हिमाचल प्रदेश के नागरिकों की फिटनेस में बहुत कमी आई है। इसका प्रमुख कारण विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों के लिए किसी भी प्रकार के फिटनेस कार्यक्रम का न होना है। रट्टे वाली पढ़ाई की होड़ में हम विद्यार्थियों की फिटनेस को ही भूल गए हैं। हिमाचल प्रदेश की अधिकांश आबादी गांव में रहती थी। वहां पर सवेरे-शाम वर्षों पहले विद्यार्थी अपने अभिभावकों के साथ कृषि व अन्य घरेलू कार्यों में सहायता करते थे। छात्र विद्यालय आने-जाने के लिए कई किलोमीटर दिन में पैदल चलता था। इसलिए उस समय के विद्यार्थी को किसी भी प्रकार के फिटनेस कार्यक्रम की कोई जरूरत नहीं थी। आज का विद्यार्थी घर के आंगन में बस पर सवार होकर विद्यालय के प्रांगण में उतरता है।

पढ़ाई के नाम पर ज्यादा समय खर्च करने के कारण फिटनेस के लिए कोई समय नहीं बचता है। अधिकांश स्कूलों के पास फिटनेस के लिए न तो आधारभूत ढांचा है और न ही कोई कार्यक्रम है। आज का विद्यार्थी फिटनेस व मनोरंजन के नाम पर दूरसंचार माध्यमों का कमरे में बैठ कर खूब दुरुपयोग कर रहा है। ऐसे में विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास की बात मजाक लगती है। आज के विद्यार्थी के लिए विद्यालय या घर पर आधे घंटे के फिटनेस कार्यक्रम की सख्त जरूरत है। इसमें 15 से 20 मिनट धीरे-धीरे दौडऩा तथा विभिन्न कोणों पर शरीर के जोड़ों की विभिन्न क्रियाओं को पूरा करने के बाद शरीर को कूलडाऊन करना होगा। कम से कम बीस मिनटों तक तेज चलने, दौडऩे व शारीरिक क्रियाओं के करने से रक्त वाहिकाओं में रक्त संचार तेज हो जाता है। उससे हर मसल को उपयुक्त मात्रा में प्राणवायु मिलने से उसका समुचित विकास होता है। आज के विद्यार्थी को अगर कल का अच्छा नागरिक बनाना है तो हमें स्कूली पाठ्यक्रम में पढ़ाई के साथ-साथ उसके लिए सही फिटनेस कार्यक्रम भी देना होगा। तभी हम सही अर्थों में अपनी अगली पीढ़ी को संपूर्ण शिक्षित कर सकते हैं।

भूपिंद्र सिंह

अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

ईमेल: bhupindersinghhmr@gmail.com


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