झंडा मेला देहरादून

By: Mar 30th, 2024 12:23 am

प्रदेश की राजधानी देहरादून में हर साल झंडा जी मेला लगता है जिसका लोग बेसब्री से इंतजार करते है, वहीं इस साल भी झंडा जी मेले को लेकर तैयारियां जोर शोर से शरू हो गई हैं। बताया जा रहा है कि इस साल ऐतिहासिक श्री झंडा जी मेला का शुभारंभ 30 मार्च को झंडा जी आरोहण के साथ किया जाएगा। इस वर्ष मेले में कुछ खास होने वाला है। बताया जा रहा है कि श्री झंडा जी पर दर्शनी गिलाफ चढ़ाने का पवित्र सौभाग्य पंजाब के हरभजन सिंह को प्राप्त हुआ है। झंडा मेला उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध मेला है, जोकि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में हर वर्ष बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ आयोजित किया जाता है।

गुरु के जन्मदिवस पर लगता है झंडा मेला- प्रेम, सद्भावना और आस्था का प्रतीक झंडा मेला होली के पांचवें दिन देहरादून स्थित श्री दरबार साहिब में झंडा जी के आरोहण के साथ शुरू होता है। इस दौरान देश-विदेश से संगतें माथा टेकने पहुंचती हैं। इस मेले में पंजाब, हरियाणा और आसपास के कई इलाकों से संगतें आती हैं। जो कि गुरु रामराय जी के भक्त होते हैं। श्री गुरु रामराय ने वर्ष 1676 में दून में डेरा डाला था। उनका जन्म 1646 में पंजाब के होशियारपुर जिले के कीरतपुर में होली के पांचवें दिन हुआ था। इसलिए दरबार साहिब में हर साल होली के पांचवें दिन उनके जन्मदिवस पर झंडा मेला लगता है। गुरु राम राय ने ही लोक कल्याण के लिए विशाल ध्वज को यहां स्थापित किया था।
दून में डेरा डाला तो बन गया देहरादून- गुरु राम राय महाराज सातवीं पातशाही (सिखों के सातवें गुरु) श्री गुरु हर राय के पुत्र थे। औरंगजेब गुरु राम राय के काफी करीबी माने जाते थे।

औरंगजेब ने ही गुरु महाराज को हिंदू पीर की उपाधि दी थी। औरंगजेब महाराज से काफी प्रभावित था। छोटी सी उम्र में वैराग्य धारण करने के बाद वह संगतों के साथ भ्रमण पर चल दिए। वह भ्रमण के दौरान ही देहरादून आए थे। जब महाराज जी दून पहुंचे, तो खुड़बुड़ा के पास उनके घोड़े का पैर जमीन में धंस गया और उन्होंने संगत को रुकने का आदेश दिया। अपने तीर कमान से महाराज जी ने चारों दिशाओं में तीर चलाए और जहां तक तीर गए उतनी जमीन पर अपनी संगत को ठहरने का हुक्म दिया। देहरादून पहुंचने पर औरंगजेब ने गढ़वाल के राजा फतेह शाह को उनका पूरा ख्याल रखने का आदेश दिया। उन्होंने यहां डेरा डाला इसलिए दून का नाम पहले डेरादून और फिर बाद में देहरादून पड़ गया। उसके बाद से आज तक उत्तराखंड की राजधानी इस नाम से ही जानी जाती है।


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