हिमाचली हिंदी कहानी : विकास यात्रा : 46

By: Mar 9th, 2024 7:23 pm

कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु, चरित्र चित्रण, भाषा शैली व उद्देश्यों की समीक्षा करती यह शृंखला। कहानी का यह संसार कल्पना-परिकल्पना और यथार्थ की मिट्टी को विविध सांचों में कितना ढाल पाया। कहानी की यात्रा के मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक पहलुओं पर एक विस्तृत दृष्टि डाल रहे हैं वरिष्ठ समीक्षक एवं मर्मज्ञ साहित्यकार डा. हेमराज कौशिक, आरंभिक विवेचन के साथ किस्त-46

हिमाचल का कहानी संसार

विमर्श के बिंदु

1. हिमाचल की कहानी यात्रा
2. कहानीकारों का विश्लेषण
3. कहानी की जगह, जिरह और परिवेश
4. राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचली कहानी की गूंज
5. हिमाचल के आलोचना पक्ष में कहानी
6. हिमाचल के कहानीकारों का बौद्धिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक व राजनीतिक पक्ष

लेखक का परिचय

नाम : डॉ. हेमराज कौशिक, जन्म : 9 दिसम्बर 1949 को जिला सोलन के अंतर्गत अर्की तहसील के बातल गांव में। पिता का नाम : श्री जयानंद कौशिक, माता का नाम : श्रीमती चिन्तामणि कौशिक, शिक्षा : एमए, एमएड, एम. फिल, पीएचडी (हिन्दी), व्यवसाय : हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में सैंतीस वर्षों तक हिन्दी प्राध्यापक का कार्य करते हुए प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त। कुल प्रकाशित पुस्तकें : 17, मुख्य पुस्तकें : अमृतलाल नागर के उपन्यास, मूल्य और हिंदी उपन्यास, कथा की दुनिया : एक प्रत्यवलोकन, साहित्य सेवी राजनेता शांता कुमार, साहित्य के आस्वाद, क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल और कथा समय की गतिशीलता। पुरस्कार एवं सम्मान : 1. वर्ष 1991 के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से भारत के राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत, 2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी की सतत उत्कृष्ट एवं समर्पित सेवा के लिए सरस्वती सम्मान से 1998 में राष्ट्रभाषा सम्मेलन में अलंकृत, 3. आथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल (पंजी.) द्वारा साहित्य सृजन में योगदान के लिए 2011 का लेखक सम्मान, भुट्टी वीवर्ज कोआप्रेटिव सोसाइटी लिमिटिड द्वारा वर्ष 2018 के वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत, कला, भाषा, संस्कृति और समाज के लिए समर्पित संस्था नवल प्रयास द्वारा धर्म प्रकाश साहित्य रतन सम्मान 2018 से अलंकृत, मानव कल्याण समिति अर्की, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश द्वारा साहित्य के लिए अनन्य योगदान के लिए सम्मान, प्रगतिशील साहित्यिक पत्रिका इरावती के द्वितीय इरावती 2018 के सम्मान से अलंकृत, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश का वर्ष 2019 के लिए ‘डॉ. रामविलास शर्मा’ राष्ट्रीय सम्मान, दिव्य हिमाचल के प्रतिष्ठित सम्मान ‘हिमाचल एक्सीलेंस अवार्ड’ ‘सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार’ सम्मान 2019-2020 के लिए अलंकृत और हिमाचल प्रदेश सिरमौर कला संगम द्वारा डॉ. परमार पुरस्कार।

डा. हेमराज कौशिक
अतिथि संपादक
मो.-9418010646

-(पिछले अंक का शेष भाग)
उसके पास न पूरा किराया ही होता है और न ही उसे चंडीगढ़ में उस व्यक्ति का अता-पता ज्ञात होता है जिसके पास उसे जाना है। इस स्थिति में युवती के प्रति बस में बैठी सवारियों की मानसिकता और उनके दृष्टिकोण को निरूपित किया है। कहानीकार ने बस के कंडक्टर के मानवीय व्यवहार को चित्रित किया है। वह उस युवती को ऐसी जगह उतार देता है जहां से लौटकर वह सकुशल अपने गांव पहुंच जाए। कहानी के इस आयाम में आम आदमी का एक ऐसा मानवीय चेहरा उभरता है जो जीवन के सकारात्मक मूल्यों पर बल देता है। दूसरी तरफ एक अकेली महिला के प्रति लोगों के मन में कैसे-कैसे विचार उभरते हैं, इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत कहानी में किया गया है। ‘चौराहा’ शीर्षक कहानी में बंजारा बाप अपने बच्चों के मोह से ऊपर उठकर किस तरह उनके बेहतर भविष्य के लिए अपनी और अपनी पत्नी की ममता को दमित कर देता है, इसका सटीक चित्रण प्रस्तुत कहानी की विशिष्टता है। इस कहानी में बंजारों के डेरे का सजीव चित्रण करके और उनमें कीड़े मकोड़े की भांति पलते बच्चों के मां-बाप के अंतर्मन में छिपी आकांक्षा को सहजता से व्यंजित किया है। ‘रामदीन को पता है’ में आज की परिवर्तित स्थिति पर सार्थक टिप्पणी है। उपभोक्तावादी समाज में जहां हर चीज उपयोगिता की दृष्टि से देखी जाती है, यहां तक कि बूढ़े मां-बाप भी फालतू सामान की भांति हो जाते हैं। फलस्वरूप बेटों से अधिक उनके नौकर और पड़ोसी उनके बारे में कहीं अधिक जानकारी रखते हैं। इस कहानी में अचानक एक दिन पिता कहीं गुम हो जाता है तो बेटा पुलिस में गुमशुदगी की रपट दर्ज कराने थाने जाता है। जब पुलिस उससे पिता का हुलिया जानना चाहती है तो बेटा सटीक जवाब दे नहीं पाता और उसके लिए घर के नौकर को बुलाया जाता है। ‘दुलिया राम मारा गया’ शीर्षक कहानी हिमाचल की पृष्ठभूमि में सृजित कहानी है।

ग्रामीण जीवन की समस्याओं को निरूपित करने वाली इस कहानी में दुलिया राम के हिंसक चरित्र को उभारा गया है। वह ऐसा चरित्र है जो जीवन भर हिंसा और लूट के मार्ग पर अग्रसर होता रहा और अपराध की चरम सीमा पर पहुंचने के बाद वह अपने जीवन के उत्तरार्ध में निपट अकेला, अशक्त और दीनहीन हो जाता है। ‘रातरानी का खिला हुआ चेहरा’ शिल्प की दृष्टि से एक चर्चित कहानी रही है जिसमें दमे से पीडि़त एक युवक की विभिन्न मानसिक स्थितियों का विस्तार है। ‘बेकार मंडली’ में बंगाल के बेरोजगार युवकों के क्रियाकलापों का चित्रण है। वे मोहल्ले के सभी सहयोगपूर्ण कार्यों में योगदान देने में आगे रहते हैं। यहां तक कि किसी की मृत्यु पर अंत्येष्टि की सारी जिम्मेदारी भी अपने ऊपर ले लेते हैं। कहानीकार ने यह भी प्रतिपादित किया है कि इस प्रदेश में पढऩे-लिखने की संस्कृति इस तरह झलकती है कि भिखारी भी साहित्य और संस्कृति की चर्चा करता है। ‘फूलों की ढकी देवी’ मंदिरों में आने वाले उन दर्शनार्थियों को इंगित करती है जो विशेष सुविधा प्राप्त कर या रिश्वत देकर सबसे पहले देवी के दर्शन करने को आतुर रहते हैं, जबकि आम आदमी घंटों कतार में खड़े रह जाते हैं। ‘वोट हमीं को दें’ उन नेताओं की ओर संकेत करती है जो प्रत्येक अवसर पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने को आतुर रहते हैं। कहानीकार ने प्रस्तुत कहानी में यह भी निरूपित किया है कि साहित्यिक कार्यक्रम किस प्रकार राजनीतिक नेताओं की उपस्थिति से साहित्य की अपेक्षा राजनीति में रंग जाता है और राजनीतिक नेता और उनके पिछलग्गु नेता वोट मांगने और राजनीतिक प्रचार करते नजर आते हैं। साहित्यिक कार्यक्रम हाशिए पर चला जाता है। प्रस्तुत संग्रह की ‘एफ आईआर’ कहानी भी लोकरंजक है जिसमें अपराधियों की पुलिस वालों पर धौंस उजागर होती है और पुलिस-अपराधी का परस्पर मेल सामने आता है। एक युवक अपनी खोयी डिग्री के लिए प्रथम रिपोर्ट के लिए थाने जाता है, परंतु उसकी एफ आईआर दर्ज नहीं हो पाती। वह एक बड़े पुलिस अधिकारी का हवाला देता है, फिर भी उसका काम नहीं होता। अंतत: वह शहर के गुंडे की शरण में जाता है जो उसके गांव का होता है। ‘एमएलए के आदमी’ आज की भ्रष्ट राजनीति पर करारा व्यंग्य है। इसमें यह रूपायित किया है कि कुछ लोग स्वयं को किसी एमएलए का आदमी कह कर अपना प्रभुत्व और प्रभाव जमा कर कानून की धज्जियां उड़ाते हैं। जयवन्ती डिमरी के विवेच्य अवधि में दो कहानी संग्रह ‘दूसरा नरककुंड’ (2004) और ‘गागर भर पानी’ (2004) प्रकाशित हैं। जयवन्ती डिमरी हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में कार्यरत रही हैं। वे हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में समान रूप में सृजन करती हैं। उनकी कहानियां भारतीय भाषाओं में भी अनूदित होकर प्रकाशित हुई हैं। ‘दूसरा नरककुंड’ शीर्षक कहानी संग्रह में उनकी बारह कहानियां..जीवट, दूसरा नरककुंड, पता कहां है, बंद कपाट, ज्योतिपुंज, परमानेंट कोटिंग, पुरानी तस्वीर, आखिरी नौकर, गले पड़ी कहानी, साक्षात्कार, दो और दो चार और संरक्षक संगृहीत हैं।

संदर्भित संग्रह की कहानियां पर्वतीय जीवन से संबद्ध हैं और पर्वतीय क्षेत्र की कामकाजी स्त्रियों का संघर्ष प्रमुख रूप में उनकी कहानियों का प्रतिपाद्य रहा है। प्रत्येक कहानी में कोई न कोई स्त्री चरित्र है। पढ़ी-लिखी नौकरीपेशा स्त्रियों की जीवन शैली, उनका चिंतन, हर्ष विषाद, दैनंदिनी जीवनचर्या, घर गृहस्थ जीवन के दायित्व आदि उनकी कहानियों में पर्वतीय जीवन के यथार्थ को साकार करती हैं। जयवन्ती डिमरी पहाड़ी जीवन की स्थितियों का निरूपण सूक्ष्म पर्यवेक्षण क्षमता, आंचलिक भाषा और मुहावरों के स्वाभाविक प्रयोग के माध्यम से करती हैं। उनकी प्रत्येक कहानी में न्यूनाधिक रूप में आंचलिकता की अनुगूंज है। ‘जीवट’ में दो स्त्रियां हैं। ग्रामीण स्त्री संभ्रांत स्त्री की मालिश के लिए उपस्थित होती है। दोनों के परस्पर संवाद पहाड़ी ग्रामीण स्त्री के संघर्ष, ऊर्जा और जीवट को उद्घाटित करते हैं। ‘बंद कपाट’ में पढ़ी-लिखी युवती सीमा केंद्रीय चरित्र है जो अपने कमरे को अंदर से बंद करके अपने कार्यों में लीन रहती है। आसपास की स्त्रियां दोपहर के समय उसके कमरे के निकट सीढिय़ों पर बैठकर धूप का आनंद लेती हैं और सीमा के संबंध में झूठी-सच्ची बातों को करके समय व्यतीत करती हैं। कहानी स्त्रियों की मानसिकता, क्षुद्रता को व्यंग्य के धरातल पर अनावृत करती है। ‘परमानेंट कोटिंग’ में मिस आचार्य और मिस मान के माध्यम से अपनी परंपराओं का त्याग कर आधुनिक जीवन की विकृतियों को अपनाने के कारण उन्मुक्तता और उच्छृंखलता का जीवन यापन करने वाली युवतियों का चित्रण है जो पति को छोडक़र किसी अन्य व्यक्ति से संबंध स्थापित करती हैं। यह कहानी आधुनिक जीवन की विडंबनाओं को चित्रित करती है। ‘दो और दो चार’ कहानी में मिसेज कौर और चाचा हरप्रीत के अवैध संबंध से उत्पन्न बेटे सुदर्शन के द्वारा उन्मुक्त संबंधों की कुरूप तस्वीर प्रस्तुत की है। ‘संरक्षक’ शीर्षक कहानी में परिवार नियोजन अभियान के दौरान झूठे प्रमाणपत्र प्राप्त कर सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने वाले माता-पिता की मृत्यु के अनंतर संरक्षकों द्वारा चौथी संतान रुचि की उपेक्षा से उत्पन्न स्थितियों के कारण उसके व्यक्तित्व में आए परिवर्तन को रेखांकित किया है। वह अपने को मौसी मानने वाली मां की सहेली निशा की विभिन्न प्रकार की नसीहतों से तंग आकर छात्रावास में निरंतर रहकर उद्दंड होती जाती है। अंतत: मितभाषी और गंभीर अवस्था में तिब्बती और बांग्लादेश के शरणार्थी बच्चों के मध्य दिखाई देती है। ‘दूसरा नरककुंड’ कहानी में अनमेल विवाह से उत्पन्न स्थितियों का निरूपण है। प्रवीणा की चरित्र सृष्टि के माध्यम से अनमेल विवाह से उत्पन्न विषम परिस्थितियों का चित्रण है। कहानी में बारहवीं फेल दुव्र्यसनी और नालायक बेटे देवेश के साथ प्रवीणा का विवाह धोखे से किया जाता है। पंद्रह वर्ष तक के दांपत्य जीवन में वह दो बच्चों की मां बनती है और अनमेल विवाह की पीड़ा को भोगती है।

दुव्र्यसनी पति देवेश के मरने के अनंतर उसकी मां चार दिन बाद ही छोटे पुत्र रमेश से विवाह रचाने का प्रस्ताव रखती है। यह सुनकर प्रवीणा क्रोध की अग्नि में जलती है और क्रोध आवेग में घर से निकल जाती है। वह बच्चों को पढ़ा लिखा कर और स्वयं एमए तक की शिक्षा ग्रहण करती है और दूसरे नरककुंड में धकेलने वाली सास के चंगुल से छूटने में सफल होती है। ‘साक्षात्कार’ कहानी में पहाड़ी कंटोनमेंट के निकट बस्तियों के मुर्दाघाटों की शव यात्राओं के चित्रण के साथ कहानीकार ने लावारिस लाश की दुर्गति को भी सामने लाया है। ‘पता कहां है’ शीर्षक कहानी बोड़ी जनजाति महिला सुकूटमनी के संघर्ष को चित्रित करती है। व्यापक फलक की इस कहानी में निम्न मध्य वर्ग के निराश्रित, श्रमिक वर्ग और मजदूरी तलाशते हुए दूसरे अनजान प्रदेशों में प्रवास कर रहे श्रमिक वर्ग की पीड़ा को मार्मिक रूप में रूपायित किया गया है। प्रस्तुत कहानी में बोड़ो युवती के जीवन के उतार-चढ़ाव, उसके संघर्ष और धोखों का मार्मिक चित्रण है। ‘साक्षात्कार’ जयवंती डिमरी की चर्चित कहानी है। यहां यह उल्लेख्य है कि प्रख्यात साहित्यकार कमलेश्वर द्वारा संपादित कहानी संग्रह ‘गुलमोहर फिर खेलेगा’ में यह कहानी सम्मिलित है। ‘साक्षात्कार’ कहानी किताब घर द्वारा आर्य स्मृति सम्मान से 2002 में अलंकृत हुई थी। ‘गागर भर पानी’ (2004) जयवंती डिमरी का दूसरा कहानी संग्रह है।

इसमें चौदह कहानियां- एक और अमरबेल, जाग्धार वाली, पितृ प्रसाद, सांप से कछुए तक का सफर, बुआ जी, गागर भर पानी, मिस ग्लोरिया की वापसी, छाया, फीनिक्स की मौत, मायाविनी, पैरों तले जमीन, अंतर्दृष्टि, लाटा और सांझे पन्नों का फेर संगृहीत हैं। जयवन्ती डिमरी की कहानियों का कथ्य कैंपस से लेकर गांव के खेतों तक व्याप्त है। उनकी कहानियां सर्वहारा वर्ग, वंचित वर्ग की पीड़ा को मूर्तिमान करती हैं। पहाड़ और पहाड़ की संस्कृति की अनुगूंज कहानियों में अनुभूत की जा सकती है। प्रदीप कुमार शर्मा का ‘महक अनाम रिश्तों की’ (2004) शीर्षक से प्रथम कहानी संग्रह प्रकाशित है जिसमें नौ कहानियां- मन के मीत, मिट्टी की महक, बलिदान, बेटी, महकता रिश्ता, मुक्ति, बदला, इंतजार और प्रायश्चित संगृहीत हैं। पर्वतीय परिवेश को रूपायित करने वाली इन कहानियों में प्रेम की निश्छल परिकल्पना और मानवीय संबंधों का ताना बाना है। आधुनिकता की चकाचौंध, नगरीय जीवन की व्यस्तता और बेगानेपन में मानवीय संबंधों के रागात्मक सूत्र क्षीण होते गए हैं, उन्हें पारिवारिक संबंधों के संदर्भ में कहानीकार ने निरूपित किया है। ‘मन के मीत’ रामदेवी और गद्दी युवक सिरजू की प्रेम कहानी है। वह किशोरवय से भेड़ बकरियों के साथ भीषण सर्दी के महीनों में तीन महीनों के लिए रामदेवी के गांव में प्रतिवर्ष आता है। उनके निश्छल प्रेम की धारा जीवन पर्यन्त चलती है। अंत भी दोनों का एक साथ ही होता है। सिरजू रामदेवी को गोद में लेकर बांसुरी बजाता है। धीरे-धीरे उसकी प्रेमिका का शरीर शिथिल होता है। उसकी भी इस समय खांसते खांसते मृत्यु हो जाती है। वे जीवन पर्यन्त परिणय सूत्र में आबद्ध हुए बिना निष्कलुष, निश्छल और निस्वार्थ प्रेम का निर्वहन करते हैं और अंतत: उनकी जीवन लीला भी एक साथ ही समाप्त होती है।                                                                                                                    -(शेष भाग अगले अंक में)

पुस्तक समीक्षा : ‘प्रणाम पर्यटन’ ने उकेरा धर्मशाला का सौंदर्य

पर्यटन, संस्कृति और साहित्य की पत्रिका ‘प्रणाम पर्यटन’ के जनवरी-मार्च 2024 अंक में इस बार हिमाचल का सुंदर शहर धर्मशाला छाया हुआ है। डा. अर्पिता अग्रवाल का लेख ‘धर्मशाला एक अलौकिक जगह’ यहां के भूगोल, इतिहास व संस्कृति से रूबरू करवा रहा है। साथ ही ‘दिव्य हिमाचल’ के प्रधान संपादक अनिल सोनी के व्यंग्य संग्रह ‘कबाड़ी का सिक्का’ की समीक्षा करके प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी कह रहे हैं कि यह संग्रह पढऩे वालों को सोचने के लिए मजबूर करेगा। इस पुस्तक में तीखी चटनी सरीखे और धीमी आंच पर पके हुए कुल 73 व्यंग्य हैं जो पाठकों को गुदगुदाते हैं। अंक में प्रकाशित संपादकीय में संपादक प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि श्री राम हर पलांत के वर्तमान और मानव मात्र की जीवन-शक्ति हैं। अर्चना नायडू अपने लेख में कहती हैं कि कश्मीर से कन्याकुमारी और गोहाटी से जैसलमेर तक की प्राकृतिक छटा व सौंदर्य प्रकृति द्वारा दिया गया अनुपम उपहार है। इसके अलावा डा. जटा शंकर त्रिपाठी चित्रकूट के दर्शन करवा रहे हैं। पूजा गुप्ता अयोध्या में स्थित सीता की रसोई से परिचित करवा रही हैं, तो अनिल किशोह सहाय चेरापूंजी की अलौकिकता पर कलम चला रहे हैं। प्रदीप श्रीवास्तव अपने आलेख में कह रहे हैं कि मथुरा 1857 के गदर का भी साक्षी है। असम से जुड़ी महाभारत काल की यादें तरोताजा करवा रही हैं डा. सुधा कुमारी। माला वर्मा ने अंटार्कटिका का सौंदर्य उकेरा है। बिमल तिवारी कहते हैं कि लोकल ट्रेन से मुंबई की यात्रा नहीं की, तो कुछ नहीं किया। माला सिंह रेल यात्रा तो, नितेश गुप्ता हवाई यात्रा की बात कर रहे हैं। प्रभा पारीक कामनाथ महादेव मंदिर के दर्शन करवा रही हैं। डा. नीना छिब्बर एक अन्य मंदिर के दर्शन करवा रही हैं। आलोक यात्री ने कहानी ‘विदेशी बिटिया’ के जरिए साहित्य पिपासुओं को शांत किया है। कविताएं, $ग•ालें और लघुकथाएं भी पाठकों का ध्यान आकर्षित कर रही हैं। कुल मिलाकर यह अंक सुंदरता से भरपूर है।                                                                                                                                                    -फीचर डेस्क

लोकतांत्रिक रंगभूमि में ललित मोहन की ‘इमेजिनरी नॉट्स’

विचारों में उत्तेजना, मूड में आक्रोश, सपनों में उड़ती पतंग और मंसूबों में बनते-बिगड़ते वसंत यहां शिरकत कर रहे हैं। यह कवि ललित मोहन शर्मा की संगत में विचारों और संवेदनाओं की प्रस्तुति में दर्ज एक नई किताब है ‘इमेजिनरी नॉट्स’। वह अपनी जिद्द के पक्के कवि हैं जो कभी शब्दों के आंचल में हिंदी हो जाते हैं, तो वक्तव्य की प्रांजलता में अंग्रेजी हो जाते हैं। वैसे स्वभाव से अंग्रेजीदां हैं और उनके सोचने और पाने का लहजा अंग्रेजी साहित्य के गहन कक्ष में विचारोत्तेजक है, लेकिन हिंदी में एक सहज व सुलझे भाव की कविता में वह गहरे प्रश्नों के उत्तर खोजते हुए व्यवस्था, सामाजिक ढोंग, राष्ट्रीय विवेचन, मुद्दों की गर्माहट और दायित्व बोध की सर्दी से उबाल के कई बिंदु खोज लाते हैं। अंतरराष्ट्रीय मंच पर सजे कविता के सिंहासन को वह अपने घोंसले में बैठा देते हैं, इसलिए उनके पास पूछने का हक है कि तेल अबीब या कीव के युद्ध क्षेत्र के ढेरों में जो टूटी दास्तां है, उसके नीचे कितने अंगभंग बच्चे चीख रहे हैं। वह अगले ही पल विश्व में ऐसी बिरादरी की मनोकामना करते हैं, जो पीढिय़ों के लिए चिंतातुर है। क्योंकि ये ‘काल्पनिक गांठें’ हैं, इसलिए कवि ललित मोहन शर्मा वह सब कुछ सुन रहे हैं, जो यथार्थ से अनभिज्ञ, लेकिन काल से जुड़ा हुआ है। ‘लिसन और नॉट लिसन’ कविता में ऐसी ध्वनि का बोध है जो हमारे आसपास के माहौल में भविष्य को सुना रहा है- हमें जगा रहा है। कितना बड़ा आकार है भविष्य का, कितनी छांव है उसकी, फिर भी हम उसके सान्निध्य में वैश्विक परिवार नहीं देख पा रहे। कवि अपने परिवेश की रचनाओं में न केवल पारंगत है, बल्कि घुमक्कड़ी के अंदाज में भी पुस्तकों की इबारत खोजते हुए ‘माई रीडिंग’ में सवाल पूछ रहा है, ‘फ्रांस के मैट्रो में लोग पुस्तकों के साथ वक्त गुजारते हैं, लेकिन मेरे देश में ऐसे दृश्य अब बचे नहीं। ‘साबरमती’ में गांधी से रूबरू होता कवि मन उन चीखों से मुखातिब है, जो बता रही हैं एक अमर संदेश, करो या मरो। जीवन में अगर समय पर समय के लिए कुछ नहीं किया तो मौत का तो समय तय है और यह जिंदगी को हमसे चुरा लेगा। ‘इमेजिनरी नॉट्स’ में कुल 72 गांठें हैं जिन्हें खोलने के प्रयास में कवि विद्रोही हो जाता है। भले ही संसार दो टांगों पर दौड़ रहा है, लेकिन जिसके पास काल्पनिक शक्ति है वह तीन पर सवार है।

विडंबना यह है कि कोई कवि अपने सपनों को सुनकर भी उसे संगीत की धुन में सुनाने के काबिल नहीं हो सकता। ‘कार्विंग इमेजिस’ में कवि का दार्शनिक भाव बता रहा है कि किस तरह जिंदगी के करतब को सुरक्षित रखकर हम आत्मा की थकान को दूर कर सकते हैं। जिस एहसास को हम छू नहीं सकते वह अल्पकालिक फूल के खिलने की वजह में कहीं बहुत भीतर मानसिक चित्र बनकर सुकून दे सकता है। संग्रह के भीतर प्रेम की नई व्याख्या में ‘इंस्टीट्यूशन ऑफ लव’, असहिष्णु संसार में फंसी मानवता के सवाल उठाती ‘व्हाई मस्ट यू’, इच्छाओं की तृप्ति का बोध और संसार की महफिल में ख्वाहिशों को ओढ़ती ‘अ फेस परफेक्ट’, संसार से विदाई और मौत की परिणति में जीवन की गहराई को कहती, ‘फॉर हूम डू वी मॉर्न’ तथा मानव संघर्ष के दिन-रात के विराम पर ‘वन डे’ जैसी कविताओं के अर्थ मानस पटल पर यथार्थ को कहते व अनकहे को सुनते हैं। ‘इंडिया ञ्च सेवंटी 6’ में खुद से प्रश्न पूछ सकते हैं, ‘अगर रेस्तरां के मेन्यू की तरह इनसान होता, तो हमें कुछ को चुनने की सुविधा होती और अवांछित लोगों को नजरअंदाज करने के कारण मिल जाते। ललित मोहन शर्मा की कविताएं दरअसल मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोड़ती हुई अपनी भाषा की पकड़ व शब्दों के अमृत का छिडक़ाव सरीखी हैं, जहां पाठक उनकी पाठशाला में ज्ञान का सफर और संवेदना के तर्क प्राप्त कर सकता है। ‘इम्पैस’ जैसी कविताएं देश की बंद गलियों से संघर्षरत असली चिंताओं से रूबरू होना सिखाती हैं। देश की स्थिति में नागरिक समाज को भारत की समस्त दिशाओं के भीतर और लोकतंत्र के मसौदों में बहस और विवेचना का अर्थ समझाती हुई यह कविता शीर्षक की उपयोगिता में सदन की परंपराओं में राष्ट्रीय शिष्टाचार और कानून के आदेश की कहीं प्रासंगिकता खोज रही है। जहां सारे लोग सोचने के अधिकार को गिरवी रख रहे हों, वहां ललित मोहन शर्मा की कविता मात्र रचना नहीं असहनीय दबावों से मुक्त कराती एक प्रक्रिया है। यह अजीब सा ‘एम्फीथियेटर’ है, जहां कवि शब्दों, मुहावरों और प्रकृति की दृश्यावलियों और यादों के झरोखों से उद्दीप्त रास्तों पर चलते हुए अनुभूतियों के फीकेपन को सादे कागज पर अभिव्यक्त कर देता है। हर कविता की भाव भंगिमा में कवि सृजन की पृष्ठभूमि को सशक्त कर रहा है। लोकतंत्र की रंगभूमि में कवि केंद्रीय भूमिका में असहनीय दबाव को अभिव्यक्त कर रहा है।                                                                                                                                   -निर्मल असो

अंग्रेजी कविता संग्रह : इमेजिनरी नॉट्स
कवि : ललित मोहन शर्मा
प्रकाशक : ऑथर्सप्रेस, नई दिल्ली
कीमत : 295 रुपए


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App