होली के आने की पूर्व सूचना है होलाष्टक

By: Mar 16th, 2024 12:30 am

होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका भावार्थ होता है होली के आठ दिन। इसकी शुरुआत होलिका दहन के सात दिन पहले और होली खेले जाने वाले दिन के आठ दिन पहले होती है और धुलेंडी के दिन से इसका समापन हो जाता है। यानी कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने के कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती हैं…

वर्ष 2024 में होलाष्टक

वर्ष 2024 में होलाष्टक 17 मार्च से शुरू होकर 24 मार्च तक रहेगा। होली से पहले 8 दिनों का समय होलाष्टक कहा जाता है। होली के 8 दिन पूर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक लग जाता है, जो पूर्णिमा तक जारी रहता है। ऐसे में इन 8 दिनों में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता। होलाष्टक के इन 8 दिनों को वर्ष का सबसे अशुभ समय माना जाता है। इन आठ दिनों में क्रमश: अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं जिसकी वजह से इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।

मान्यताएं

होलाष्टक के शुरुआती दिन में ही होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किए जाते हैं, जिनमें से एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। अन्यथा अमंगल फल मिलते हैं। क्योंकि होलिका दहन की परंपरा को सनातन धर्म को मानने वाले सभी मानते हैं, इसलिए होलाष्टक की अवधि में हिंदू संस्कृति के कुछ संस्कार और शुभ कार्यों की शुरुआत वर्जित है। लेकिन किसी के जन्म और मृत्यु के पश्चात किए जाने वाले कृत्यों की मनाही नहीं की गई है। तभी तो कई स्थानों पर धुलेंडी वाले दिन ही अन्नप्राशन संस्कार की परंपरा है। अत: प्रसूतिका सूतक निवारण, जातकर्म, अंत्येष्टि आदि संस्कारों की मनाही नहीं की गई है। देश के कई हिस्सों में होलाष्टक नहीं मानते। लोक मान्यता के अनुसार कुछ तीर्थस्थान जैसे शतरुद्रा, विपाशा, इरावती एवं पुष्कर सरोवर के अलावा बाकी सब स्थानों पर होलाष्टक का अशुभ प्रभाव नहीं होता है, इसलिए अन्य स्थानों में विवाह इत्यादि शुभ कार्य बिना परेशानी हो सकते हैं। फिर भी शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक की अवधि में शुभ कार्य वर्जित हैं। अत: हमें भी इनसे बचना चाहिए।

होलिका दहन में होलाष्टक की विशेषता

होलिका पूजन करने के लिए होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकड़ी व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारंभ का दिन भी कहा जाता है। होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबंधित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है। सबसे पहले इस दिन होलाष्टक शुरू होने वाले दिन होलिका दहन स्थान का चुनाव किया जाता है। इस दिन इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर, इस स्थान पर होलिका दहन के लिए लकडिय़ां एकत्र करने का कार्य किया जाता है। इस दिन जगह-जगह जाकर सूखी लकडिय़ां, विशेषकर ऐसी लकडिय़ां जो सूखने के कारण स्वयं ही पेड़ों से टूटकर गिर गई हों, उन्हें एकत्र कर चौराहे पर एकत्र कर लिया जाता है। होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडिय़ां डाली जाती हंै। इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडिय़ों का बड़ा ढेर बन जाता है। इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते हैं। अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है। बच्चे और बड़े इस दिन से हल्की-फुल्की होली खेलनी प्रारंभ कर देते हैं।

होलाष्टक में कार्य निषेध

होलाष्टक मुख्य रूप से पंजाब और उत्तरी भारत में मनाया जाता है। होलाष्टक के दिन से एक ओर जहां उपरोक्त कार्यों का प्रारंभ होता है, वहीं कुछ कार्य ऐसे भी हैं जिन्हें इस दिन से नहीं किया जाता है। यह निषेध अवधि होलाष्टक के दिन से लेकर होलिका दहन के दिन तक रहती है। अपने नाम के अनुसार होलाष्टक होली के ठीक आठ दिन पूर्व शुरू हो जाते हैं। होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है। यहां तक कि अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शांति कार्य किए जाते हैं। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण यह है कि इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।


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