स्कूल के सालाना समारोह कितने हितकारी

By: Mar 19th, 2024 12:06 am

शिष्यों और गुरुओं के बीच संबंध बहुत मूल्यवान थे, परंतु आज शिक्षा ग्रहण करने का स्वरूप बदलता हुआ दिखाई देता है। अधिकतर बच्चे स्कूलों में अपने मनोरंजनात्मक कार्यों के लिए पाठशाला में समय बिताने आते हैं। अध्यापकों के कठोर वचनों का विरोध करते हैं और किसी भी हद तक जाने से भी गुरेज नहीं करते। आज ऐसे लगता है जैसे अर्जुन और गुरु द्रोणाचार्य जैसा रिश्ता कागजों में ही सिमट कर रह गया है। विद्यार्थियों में असंतोष और रास्ते से भटकने का एक कारण यह भी मुझे लगता है कि आज विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है, परंतु इसका दुरुपयोग हो रहा है…

वार्षिक समारोह किसी भी विद्यार्थी जीवन के लिए महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस पर्व में पूरे वर्ष भर का लेखा-जोखा उसकी उपलब्धियों को सम्मानित करने का शुभ अवसर भी प्राप्त होता है। विद्यार्थी भी इस प्रकार के सह संज्ञानात्मक गतिविधियों में वार्षिक समारोह को मनाने से पूर्व बड़ी उत्सुकता के साथ तैयारी में जुट जाते हैं। अध्यापकों द्वारा सिखाए गए तमाम उन गतिविधियों का निचोड़ हम इस दिन देखते हैं। ऐसे समारोह को स्कूलों में आयोजित करने से इसकी महता इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से न केवल साहित्य और संस्कृति की पहचान होती है, बल्कि बच्चों के अंदर छिपी हुई प्रतिभाएं उजागर होती हैं, साथ ही बच्चे विशेष की पहचान करने का एक सुनहरा अवसर भी मिलता है। कार्यक्रमों को कैसे विधिवत तरीके से आयोजित किया जाता है, इसकी बखूबी जानकारी से बच्चे रूबरू होते हैं। आजकल ऐसे समारोहों को मनाने की परंपरा काफी जोरों पर है। अध्यापक भी उनकी तैयारी में बढ़-चढक़र भाग लेते हैं। पढ़ाई से ज्यादा महत्वपूर्ण बच्चों के संस्कार होते हैं जिन्हें बच्चा अध्यापक से अधिक सीखता है। जिस बच्चे में संस्कारिक गुण विकसित होते हैं, वह सदैव सफल इनसान बनता है।

एक अध्यापक को बच्चों अथवा विद्यार्थी से यही उम्मीद रहती है कि उसे मिलने पर मान-सम्मान दे और उनके द्वारा पढ़ाया गया बच्चा देश का एक अच्छा नागरिक बने। जिस भी पद पर कार्य करे, ईमानदारी से और एक सफल इनसान बने। विद्यार्थियों में ऐसे गुण देख कर अध्यापक का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। आजकल अधिकतर विद्यार्थी शैक्षिक मूल्य से भटककर ऐसे गलत रास्ते की ओर जा रहे हैं जिससे उनका जीवन अंधकारमय होता दिखाई देता है। कई प्रकार के नशों में संलिप्त होकर गलत आदतों का शिकार हो रहे हैं। वे अपने मां-बाप की कमाई की परवाह न करते हुए समाज और अध्यापक की नजरों में चरित्रहीन होते दिखाई देते हैं जिससे एक अध्यापक और अभिभावकों को काफी आघात पहुंचता है। अध्यापक स्कूली कक्षा कक्ष में सबको बराबर शिक्षा देता है, परंतु कुछ शिक्षा व समय का उचित फायदा उठाकर अपने भविष्य को संवार लेते हैं और समाज की मर्यादा का पालन करते हैं, परंतु कुछ ऐसे शिक्षा विहीन रह जाते हैं जो समय और अध्यापकों की शिक्षाओं की परवाह न करते हुए गलत आदतों का शिकार हो जाते हैं और ऐसे साथी ढूंढ लेते हैं जिनका मकसद गुंडागर्दी, चौरी, डकैती और दहशत फैलाना ही मात्र रह जाता है।

इसलिए ऐसे वार्षिक समारोहों को मनाने का मकसद बच्चों को सही दिशा में ले जाने के लिए नुक्कड़ नाटकों और भाषणों के द्वारा बच्चों और अभिभावकों को शैक्षिक मूल्यों और नैतिक मूल्यों से अभिप्रेरित करवाना होता है। विद्यार्थी जीवन में अधिकतर छात्रों को समय के महत्व की जानकारी नहीं होती है। जैसे कहावत भी है, बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता। जिस भी विद्यार्थी ने मां-बाप और गुरुओं का सम्मान करना सीख लिया और जो भी पढ़ाया अथवा सिखाया जाता है, उसको समझ के साथ अपने व्यावहारिक जीवन में उतार लिया। अच्छी और बुरी आदतों की पहचान करना सीख लिया, तो सफलता अपने आप ही उसके कदम चूमने लगती है। प्राचीन काल में शिक्षा गुरुकुलों में दी जाती थी। शिष्यों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए कठिन से कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता था। शिष्यों और गुरुओं के बीच संबंध बहुत मूल्यवान थे, परंतु आज शिक्षा ग्रहण करने का स्वरूप बदलता हुआ दिखाई देता है। अधिकतर बच्चे स्कूलों में अपने मनोरंजनात्मक कार्यों के लिए पाठशाला में समय बिताने आते हैं। अध्यापकों के कठोर वचनों का विरोध करते हैं और किसी भी हद तक जाने से भी गुरेज नहीं करते। आज ऐसे लगता है जैसे अर्जुन और गुरु द्रोणाचार्य जैसा रिश्ता कागजों में ही सिमट कर रह गया है। विद्यार्थियों में असंतोष और रास्ते से भटकने का एक कारण यह भी मुझे लगता है कि आज विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है, परंतु इस तरक्की का नाजायज प्रयोग आज का युवा वर्ग कर रहा है, जैसे मोबाइल की वजह से विज्ञान और ज्ञान के क्षेत्र में क्रांति आई है, बहुत से लोग इस मोबाइल का गलत इस्तेमाल कर अपना समय और जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं और कुछ तो कर भी बैठे हैं।

मोबाइल के साथ इस प्रकार चिपके हुए हैं जैसे मखीर के साथ मक्खी। मोबाइल का सही प्रयोग वरदान है, परंतु इसके गलत इस्तेमाल से जिंदगी अभिशाप बन गई है। आज आवश्यकता इस बात की है कि अध्यापक ऐसे समारोहों के दौरान बच्चों और अभिभावकों के बीच संवाद करके तमाम मूल्यों पर आधारित शिक्षा पर ध्यान अवलोकित किया जाए। दिशाहीन बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां तैयार करके मार्गदर्शन किया जाए। इस पुनीत कार्य के लिए अध्यापक और अभिभावकों तथा समाज के अनुभवी लोगों के साथ सामंजस्य और सहयोग से गतिविधियां संचालित की जाएं। वार्षिक समारोह को प्राइमरी स्तर से ही विभाग और सरकार द्वारा उचित धनराशि का प्रावधान करके व्यवस्था की जाए तो इसके सार्थक परिणाम सामने आ सकते हैं। छात्रों में मोबाइल के दुरुपयोग की आदत को छुड़ाने की भी जरूरत है। उन्हें डिजीटल डिटॉक्स की अवधारणा से परिचित करवाया जाना चाहिए। प्राइमरी स्तर की शिक्षा से ही बच्चों के लिए नैतिक शिक्षा की पढ़ाई शुरू की जानी चाहिए।

तिलक सिंह सूर्यवंशी

स्वतंत्र लेखक


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