निवेश सुुविधा समझौते को रोकना कितना जायज

अपनी ऋण जाल कूटनीति के माध्यम से चीन बीआरआई में भाग लेने वाले देशों से प्रमुख रणनीतिक संपत्ति और स्थान छीनने में सक्षम हो गया है। इसलिए इसे रोकने की जरूरत थी…

डब्ल्यूटीओ का 13वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन अभी संपन्न हुआ है जिसमें इस बात पर भारी उत्सुकता दिखी कि क्या डब्ल्यूटीओ में एक और प्लुरिलेटरल समझौता, यानी एक समझौता जिसमें डब्ल्यूटीओ के सभी देश नहीं, बल्कि कुछ ही देश शामिल होंगे, जिसका नाम है विकास के लिए निवेश सुविधा समझौता (आईएफएडी) शामिल हो पाएगा? गौरतलब है कि इस प्रस्तावित समझौते को 120 से अधिक देशों का समर्थन प्राप्त था, यानी इसमें विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता 70 प्रतिशत से अधिक देश शामिल थे। महत्वपूर्ण है कि डब्ल्यूटीओ एक बहुपक्षीय संगठन है, इसके अधिकांश समझौते प्रकृति में बहुपक्षीय रहे हैं, जिन्हें सभी सदस्य देशों ने मान्य किया। लेकिन विश्व व्यापार संगठन के गठन से पहले भी ‘गैट’ के अंतर्गत प्लुरिलेटरल समझौते होने की मिसालें हैं। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यद्यपि डब्ल्यूटीओ नियमों के तहत प्लुरिलेटरल समझौतों की अनुमति है, लेकिन डब्ल्यूटीओ में, बहुपक्षीय समझौते नियम हैं, जबकि प्लुरिलेटरल अपवाद हैं। आईएफएडी पर नाटक तब अचानक समाप्त हो गया जब भारत और दक्षिण अफ्रीका ने डब्ल्यूटीओ में इस प्लुरिलेटरल समझौते की कानूनी अस्वीकार्यता के बारे में डब्ल्यूटीओ में 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में एक पेपर प्रस्तुत किया।

आईएफएडी क्या है : आईएफएडी विश्व व्यापार संगठन द्वारा प्रस्तावित एक व्यापार समझौता है। इसका उद्देश्य निवेश प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रावधान बनाना है। इसके लिए राज्यों को विनियामक पारदर्शिता और निवेश उपायों की पूर्वानुमेयता बढ़ाने की आवश्यकता है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यद्यपि प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय समझौता घरेलू नियमों के दायरे को सीमित करता है, आईएफएडी के मामले में यह स्थिति अधिक भयावह थी और निवेश सुविधा के नाम पर सदस्य देशों के संप्रभु अधिकारों की तिलांजलि दिए जाने का प्रावधान था।

आईएफएडी को लेकर भारत क्यों चिंतित था : आम तौर पर समझौते, चाहे प्लुरिलेटरल हों या बहुपक्षीय, तब बनते हैं जब देशों का एक समूह एक मान्य नियमावली पर सहमत होने के लिए इक_ा होता है, जिसका किसी मामले पर पालन किया जाएगा, और यह एक दूसरे के लिए पारस्परिक लाभ के लिए होता है। हालांकि आईएफएडी की खासियत यह है कि इस प्रस्तावित आईएफएडी को एक देश (चीन) ने अपने लाभ के लिए आगे बढ़ाया और एक प्रमुख सैन्य और आर्थिक शक्ति चीन द्वारा दबाव डालकर अन्य सदस्यों से आंख मूंद कर हस्ताक्षर करवाए गए। चीन का एकमात्र उद्देश्य आईएफएडी सदस्य देशों को अपने-अपने देशों में निवेश की सुविधा के लिए मजबूर करके अपने आर्थिक हितों को बढ़ावा देना है। प्रस्तावित समझौता सदस्य देशों को अपनी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करके, मानक प्रथाओं को शुरू करने और नौकरशाही बाधाओं से बचकर किसी भी विदेशी इकाई द्वारा निवेश की सुविधा प्रदान करने का आदेश देता है। यह समझ में आता है कि पिछले एक दशक में चीन, विकासशील और यहां तक कि कुछ विकसित देशों को चीन द्वारा ही बनाई जा रही बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के उदार वित्तपोषण का लालच देकर ऋण जाल में धकेलने के अपने विस्तारवादी एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है। वर्तमान में बेल्ट रोड पहल की आड़ में चीन की ऋण जाल कूटनीति के कारण कई देश पहले से ही कर्ज में डूबे हुए हैं। श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और कई अफ्रीकी देशों को चीन पहले ही अपनी इस कर्ज जाल कूटनीति से बर्बाद कर चुका है। प्रस्तावित समझौते से चीन को लूट, डकैती और अधीनता के लिए नए चारागाह प्राप्त करने में आसानी होती। बीआरआई के साथ चीन को एक नई विस्तारवादी शक्ति के रूप में देखा जा रहा है।

आईएफएडी को कैसे रोका गया : चीन सहित कुछ वैश्विक शक्तियों के इशारे पर आईएफएडी को डब्ल्यूटीओ के दायरे में लाने के लिए डब्ल्यूटीओ सचिवालय की मदद से चीन का यह नापाक प्रयास वास्तव में पूरी तरह से अवैध था। अनुबंध 4 में बहुपक्षीय समझौते के रूप में आईएफएडी को जोडऩे की प्रक्रिया में कई कानूनी मुद्दे शामिल हैं। सबसे पहले, प्रस्तावित आईएफएडी व्यापार समझौते के रूप में योग्य नहीं था। आईएफएडी में व्यापार से संबंधित कोई ठोस प्रावधान शामिल नहीं है, और इसलिए इसे व्यापार समझौते के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता था। दूसरा, आईएफएडी को डब्ल्यूटीओ में जोडऩे का अनुरोध केवल उन सदस्यों से ही आ सकता था, जिन्होंने आईएफएडी पर हस्ताक्षर करने और इसकी पुष्टि करने के लिए अपनी घरेलू प्रक्रियाओं को पूरा किया हो और जिनके लिए समझौता लागू हो गया है। तीसरा, आईएफएडी पर बातचीत बहुपक्षीय जनादेश के बिना शुरू की गई थी। यह सर्वसम्मति से निर्णय लेने की डब्ल्यूटीओ की लंबे समय से चली आ रही प्रथा के विपरीत था। इन सब कानूनी कमजोरियों के आलोक में, आईएफएडी को डब्ल्यूटीओ में एकीकृत करने का बहुचर्चित प्रस्ताव अचानक ध्वस्त हो गया। चीन के नेतृत्व वाली इस कोशिश को आगे बढ़ाते समय नियम आधारित डब्ल्यूटीओ स्वयं भी अपने नियमों की अनदेखी नहीं कर सकता। हम आगे देखते हैं कि आईएफएडी में ऐसा कुछ भी नहीं था जो विकासशील देशों को विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद कर सके। वास्तव में यह विदेशी निवेशकों (यानी चीन) के हितों की रक्षा के लिए एक चार्टर था। यह बहुराष्ट्रीय निगमों को उन नए कानूनों के खिलाफ पैरवी करने के लिए मजबूत करता है जिनका वे विरोध करते हैं, जिससे उन्हें वे अधिकार मिलते हैं जो एक नागरिक के रूप में हमारे पास नहीं हैं। इसके अलावा, इस बात पर जोर देने की आवश्यकता है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आमंत्रित करना एक संप्रभु या अन्य शब्दों में संप्रभु राष्ट्र के लोगों का विशेषाधिकार है, जिसे किसी भी अंतरराष्ट्रीय समझौते द्वारा कमजोर या कम नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह विधायिका के अधिकारों का अतिक्रमण होगा। प्रस्तावित समझौते की विषय वस्तु और संरचना के पीछे भयावह मंसूबे की मंशा प्रतीत होती है। यह इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि निवेश सुविधा उपायों के लिए वैश्विक मानक बनाने की आड़ में, वे संप्रभु देशों को अपने संबंधित क्षेत्रों में एफडीआई को विनियमित करने और निगरानी करने के अधिकारों से वंचित करना चाहते थे। इसे एक उदाहरण से समझाया जा सकता है कि डोकलाम के बाद भारत ने उन सभी देशों से जिनकी भारत के साथ साझा सीमा है, पर एफडीआई पर कुछ प्रतिबंध लगा दिए, और ‘स्वचालित मार्ग’ के स्थान पर ‘अनुमोदन मार्ग’ के माध्यम से निवेश की अनुमति को अनिवार्य कर दिया। इस उपाय से, भारत ऐसे देश से निवेश को प्रतिबंधित कर सकता है जो भारत के साथ युद्ध में है।

यदि हम इस समझौते की अनुमति देते हैं, तो देश अपने-अपने हितों की रक्षा करने की ऐसी किसी भी स्वतंत्रता से वंचित हो जाएंगे। यह देखा जा रहा है कि आईएफएडी पर चीन ने दबाव डाला और बेल्ट रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) में भाग लेने वाले छोटे देशों की बांह मरोडक़र प्रस्ताव पर सहमति देने वाले अधिक से अधिक हस्ताक्षर प्राप्त किए गए। अगर हम देखें, तो शुरुआत में आईएफएडी का विरोध करने वाले दक्षिण अफ्रीका को भी बाद में भारत के साथ अपने संयुक्त बयान से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह कोई रहस्य नहीं है कि बेल्ट रोड पहल के माध्यम से चीन अपनी विस्तारवादी रणनीति के साथ अपनी कुटिल ऋण जाल कूटनीति को प्रभावी बना रहा है। अपनी ऋण जाल कूटनीति के माध्यम से चीन बीआरआई में भाग लेने वाले देशों से प्रमुख रणनीतिक संपत्ति और स्थान छीनने में सक्षम हो गया है और तेजी से वैश्विक सुरक्षा और शांति के लिए खतरा बनता जा रहा है। इसलिए वैश्विक शांति के हित में आईएफएडी को किसी भी कीमत पर अवरुद्ध करने की आवश्यकता थी।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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