विश्वविद्यालयों को कैसे सुधारें?

आज के विश्वविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयीय शिक्षा की अनेक समस्याएं हैं जिन पर शासन तथा शिक्षाविदों का ध्यान केंद्रित है। माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के प्रसार के कारण विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही है और प्रश्न यह है कि क्या विश्वविद्यालय उन सभी विद्यार्थियों को स्थान दें, जो आगे पढऩा चाहते हैं, अथवा केवल उन्हीं को चुनकर लें जो उच्च शिक्षा से लाभ उठाने में समर्थ हों? शिक्षा का माध्यम क्या हो, यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। शोध कार्य को प्रश्रय न देने की समस्या भी ध्यान आकर्षित करती है। कुछ विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता भी एक समस्या है। योग्य अध्यापकों को विश्वविद्यालय में आकर्षित करना तथा उन्हें बनाए रखना कम महत्वपूर्ण नहीं…

पैसे इकट्ठे करने के लिए सिर्फ और सिर्फ छात्रों की संख्या में वृद्धि करने में तत्पर देश के अनेक विश्वविद्यालय इस वक्त अपनी अकादमिक क्वालिटी से समझौता कर रहे हैं। राष्ट्र के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े अनेक व्यक्तियों ने समय-समय पर इस बिन्दु पर अपनी चिंता भी व्यक्त की है। कुछ विश्वविद्यालय तो निम्न स्तर की गुणवत्ता युक्त उच्च शिक्षा के चलते उन छात्रों की मास प्रॉडक्शन कर रहे हैं जो न तो रोजगार और न ही स्वरोजगार प्राप्त कर पा रहे हैं। यह उन छात्रों के भविष्य के लिए ठीक नहीं है। तस्वीर का दूसरा रुख यह है कि भारत में उच्च शिक्षा के कई संस्थान हैं, लेकिन दुर्भाग्य से भारत में मांग और आपूर्ति के बीच में गहरी खाई होने के कारण दाखिला मिलना कठिन हो जाता है। एक अनुमान के मुताबिक अगर भारत 2020 तक अपने ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो (जीईआर) के 30 फीसदी को प्राप्त करता है तब भी 1.4 करोड़ छात्रों को किसी भी उच्च शिक्षण संस्थान में दाखिला नहीं मिलेगा। इन अतिरिक्त छात्रों के लिए भारत को एक हजार नई यूनिवर्सिटी, 40 हजार पॉलिटेक्निक और 10 लाख नए फैकल्टी मेंबर की जरूरत होगी, जो एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में हो सकता है कि शिक्षा की क्वालिटी पर भी अतिरिक्त फर्क पड़े। ध्यान रहे कि यह हमारी आर्थिक और विकास की गति पर प्रभाव डालेगा। इसे ठीक करने के लिए कदम तो उठाए जा रहे हैं, लेकिन यह एक रात में होने वाला चमत्कार नहीं है। इसमें एक निश्चित समय लगेगा। जब तक यह नहीं होता है तब तक भारत से छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेशों का रुख करते रहेंगे।

इस समय हमारे विश्वविद्यालय सिस्टम में कई कमियां हैं। इस सिस्टम में अनेक शिक्षकों पर पढ़ाने का अत्यधिक दबाव होता है जिससे वे कई चीजों की ट्रेनिंग भी नहीं कर पाते हैं। लैबोरेट्री में नए अत्याधुनिक उपकरणों की कीमतों के कारण इनकी खरीद नहीं हो पाती है। इसी तरह अनुसंधान अनेक उच्च शिक्षा संस्थानों का हिस्सा नहीं है। इसके विपरीत पुख्ता विदेशी यूनिवर्सिटी इस बात को सुनिश्चित करती हैं कि वे टीचिंग और रिसर्च के पिलर पर खड़ी रहें। विदेशी यूनिवर्सिटीज को इस बात से भी काफी खुशी होती है कि वे पूर्ण रूप से इंटरनेशनल हैं। इन यूनिवर्सिटीज में बहु-सांस्कृतिक माहौल छात्रों को ज्यादा से ज्यादा सीखने के लिए प्रेरित करता है। इससे छात्र का बर्ताव, मानसिक परिपक्वता और उसके सोचने के नजरिए का दायरा भी बढ़ जाता है। करियर काउंसिलिंग और रोजगार यह दो ऐसे विषय हंै जिनमें भारतीय विश्वविद्यालय अभी भी काफी पीछे हैं। हमारे अनेक पाठ्यक्रम ऐसे नहीं हैं कि हम रोजगार देने वालों से और स्वरोजगार की ट्रेनिंग देने वालों से जुड़े रहें, जबकि विदेशी यूनिवर्सिटीज लगातार सरकार और इंडस्ट्री से जुड़ी रहती हैं और उन्हें भविष्य की जरूरतों के बारे में बताती रहती हैं। इस बिन्दु पर हमारे विश्वविद्यालयों का रोल दोबारा परिभाषित किए जाने की जरूरत है। विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी नई शिक्षा नीति लागू करने में मुख्य चुनौती है, क्योंकि इससे शोध कार्यों में कमी आएगी और विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा नहीं मिल पाएगी। देश के चार करोड़ विद्यार्थियों में से केवल चार प्रतिशत केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं और बाकी के 96 प्रतिशत राज्य के सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं। कई राज्य विश्वविद्यालयों में 80 प्रतिशत तक सीटें खाली हैं।

इस पर हमें सोचना होगा। आज भी यकीन के साथ पता नहीं होता कि उच्च शिक्षा कोर्स खत्म करने के चार साल बाद किसी छात्र को कौनसी नौकरी मिलेगी, क्योंकि अनेक वांछित नौकरियां तो अभी पैदा की जानी हैं। ऐप, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, मशीन लर्निंग, डेटा एनालिटिक्स, क्वांटिम कम्यूटिंग आदि कुछ ऐसे शब्द हैं जो हमें हाल ही में सुनने को मिल रहे हैं। सनद रहे कि ये केवल शब्द नहीं, बल्कि ये देश के लिए इस वक्त अति जरूरी नई वर्क फोर्स की जरूरत भी हैं। इन शब्दों से सीधे तौर पर देश के युवाओं का भविष्य भी तो जुड़ा है। सुझाव है कि उपकुलपति अपनी प्रतिभा और क्षमता का उपयोग विश्वविद्यालय की गुणवत्ता और संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग में लगाएं। विश्वविद्यालय की शैक्षणिक और प्रबंधकीय व्यवस्थाओं को उत्कृष्ट बनाने के लिए सबका सहयोग और सुझाव प्राप्त करें। विश्वविद्यालय की बेहतरी के लिए नवाचार और कड़े निर्णय लेने में संकोच नहीं करें। विश्वविद्यालय देश की भावी पीढ़ी के भविष्य निर्माण का केंद्र होते हैं। वे राष्ट्र निर्माण की नींव हैं। यदि नींव मजबूत होगी, तभी भवन मजबूत और विशाल बन सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम, शिक्षण व्यवस्थाएं और वित्तीय प्रबंधन छात्रों के हित में हों। जरूरत है कि रोजगार की सम्भावनाओं के दृष्टिगत नए पाठ्यक्रम शीघ्र शुरू किए जाएं। साथ ही ऐसे पाठ्यक्रम जिनकी प्रासंगिकता नहीं रही हो, उन्हें बंद करने में भी विलंब नहीं करें। इससे वित्तीय संसाधनों का बेहतर उपयोग सम्भव होगा। राज्य सरकार के अनुदान के साथ ही केंद्र सरकार, अन्य संस्थाओं से अनुदान प्राप्ति के प्रयास करें और साथ ही विश्वविद्यालय स्वयं के स्त्रोत भी विकसित करें। सांसद और विधायक निधि से भी राशि प्राप्त करने के प्रयास करें। विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की नियमित नियुक्ति जरूरी है। शिक्षण की नियमितता विद्यार्थियों के जुड़ाव के लिए जरूरी है। विश्वविद्यालय विद्यार्थियों को वंचितों के सहयोग के लिए प्रोत्साहित करें। ग्रामीण अंचल में सेवा कार्यों को विद्यार्थियों के सहयोग से संचालित करें।

आज के विश्वविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयीय शिक्षा की अनेक समस्याएं हैं जिन पर शासन तथा शिक्षाविदों का ध्यान केंद्रित है। माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के प्रसार के कारण विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही है और प्रश्न यह है कि क्या विश्वविद्यालय उन सभी विद्यार्थियों को स्थान दें, जो आगे पढऩा चाहते हैं, अथवा केवल उन्हीं को चुनकर लें जो उच्च शिक्षा से लाभ उठाने में समर्थ हों? शिक्षा का माध्यम क्या हो, यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। शोध कार्य को प्रश्रय न देने की समस्या भी ध्यान आकर्षित करती है। कुछ विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता भी एक समस्या है। योग्य अध्यापकों को विश्वविद्यालय में आकर्षित करना तथा उन्हें बनाए रखना कम महत्वपूर्ण नहीं। देश की वर्तमान दशा को देखते हुए तथा हमारी आज व कल की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किस प्रकार के पाठ्य विषय प्रारंभ किए जाएं और आगे के विश्वविद्यालयों का क्या रूप हो, ये प्रश्न राष्ट्रोत्थान की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। देश को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक लंबा सफर तय करना है। इस क्षेत्र को संख्यात्मक दृष्टि से बेहतर तो बनाएं ही, पर उच्च शिक्षा के गुणात्मक पहलू बिल्कुल नजरअंदाज न हों। क्यों न हमारे विश्वविद्यालय और कॉलेज भी छात्रों की सामयिक जरूरतों को देखते हुए समय की दौड़ के साथ तालमेल बिठाएं।

डा. वरिंद्र भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App