केजरीवाल की गिरफ्तारी के निहितार्थ

जब तक अन्ना हजारे या दूसरे लोग कुछ समझ पाते, तब तक खेला हो चुका था। आम आदमी पार्टी बन गई थी। उसने लोकसभा के चुनावों में प्राय: हर सीट पर अपना प्रत्याशी खड़ा कर दिया था। खुद वाराणसी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़े हो गए और उसके दूसरे साथी कुमार विश्वास अमेठी में ताल ठोकने लगे। लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हुआ…

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अंतत: गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें दिल्ली में हुए शराब घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया गया। केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक यात्रा अन्ना हजारे के शिष्य के तौर पर शुरू की थी। उनकी गिरफ्तारी पर अन्ना हजारे ने जो कहा, उसका सार है कि उसे उसके कर्मों का फल मिला। उनके एक अन्य पूर्व सहयोगी कुमार विश्वास, जिनका दावा है कि वह केजरीवाल की रग-रग जानता है, की टिप्पणी है कि जैसा पेड़ बोया वैसा फल खाया। इसे केजरीवाल के जीवन का सर्वाधिक विरोधाभास ही कहा जाएगा कि उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा कट्टर ईमानदार होने के नारे के साथ शुरू की थी और उनकी गिरफ्तारी कट्टर भ्रष्टाचार के मामले में हुई। तथाकथित भ्रष्टाचार भी लोगों को शराब सप्लाई करने के मामले का, जिसका उल्लेख अन्ना हजारे ने भी किया कि मेरे साथ तो वह शराब हटाने की बात करता था और अब ‘शराब फैलाने’ लगा। दरअसल केजरीवाल को अपने पकड़े जाने का अंदेशा उसी दिन हो गया था जिस दिन उनके एक मंत्री सत्येन्द्र जैन इसी केस में पकड़े गए थे और तमाम कानूनी दांवपेचों के बाद भी नहीं छूटे। यह अंदेशा उस दिन खतरा बन गया जब उनकी सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया इसी शराब के केस में पकड़े गए और अभी तक जेल में हैं। इस खतरे पर मोहर उनके एक दूसरे सहयोगी सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी ने लगा दी। शुरू में केजरीवाल को लगता था कि उनके पकड़े गए सहयोगियों की जल्दी ही जमानतें हो जाएंगी और कानून के हाथ उन तक नहीं पहुंच पाएंगे। लेकिन जब इनको जेल में बैठे साल से भी ज्यादा होने लगा तो केजरीवाल समझ गए कि शराब घोटाला उनके गले की फांस बन गया है।

इसी भय के कारण उनकी हरकतें किसी डरे हुए आदमी की तरह होने लगी थीं। डरा हुआ आदमी किसी भी तरह राहत पाने के लिए बार-बार कचहरी की ओर भागता है। वैसे भी बड़े-बड़े वकील विश्वास दिला ही देते हैं कि केस में कुछ नहीं है, आपका कोई बाल बांका नहीं कर सकता है। राम जेठमलानी इसके बारे में एक कथा सुनाया करते थे। जिज्ञासा हो तो गूगल में खोजें। वैसे शक तब भी बढ़ गया था जब उनके वकील के कानूनी तर्क यह भी होने लगे थे कि केजरीवाल अपनी कमीज पैंट के अंदर नहीं डालते। वे खांटी आम आदमी हैं। लेकिन साथ ही यह भी बताते रहे कि मुख्यमंत्री भी हैं, इसलिए उनके पास गिरफ्तार होने के लिए समय नहीं है। वे लगातार जनता की सेवा में लगे हैं। लेकिन कानून तो मुख्यमंत्री के लिए भी वही है जो आम आदमी के लिए है। इसी कानून के चलते लालू यादव, ओम प्रकाश चौटाला बरसों जेल में रहे। उनके पास तो जनता की सेवा करते समय भी जेल जाने का समय था, लेकिन केजरीवाल को जब भी कानून का समन आता था तो वे कभी होली, कभी दिवाली का बहाना बना कर जाने से इन्कार कर देते थे। पहले तो वे यही कहते रहे कि किसी को भी मुझे समन करने का अधिकार ही नहीं है। फिर कहने लगे जिसने जो पूछना हो, मुझसे वर्चुअली पूछ लें। कानून को अपने दरवाजे तक आने से रोकने के लिए उन्होंने हर तरीका इस्तेमाल किया। लेकिन जिस शराब घोटाले में वे घिरे हुए थे, उस शराब की गंध उनका पीछा नहीं छोड़ रही थी। छोड़ती भी कैसे, जब एक बोतल खरीदने पर दूसरी बोतल मुफ्त में मिल रही थी। कहा भी गया है मुफ्त की शराब तो काजी को भी हलाल होती है। इसी मुफ्त की शराब ने ‘दिल्ली के इस काजी’ को भी नंगा कर दिया जो कभी भ्रष्टाचार की शराब को हाथ तक न लगाने की कसमें खाता था। लेकिन एक और मामला सचमुच चिंतित करता है। जर्मनी ने भारत सरकार को कहा है कि अरविंद केजरीवाल को न्याय मिलना चाहिए। भारत सरकार को दिल्ली स्थित उनके काऊंसलर को कहना पड़ा कि भारत की न्याय व्यवस्था संविधान से चलती है।

इसलिए जर्मनी को बेवजह चिल्ला नहीं चाहिए। अब जर्मनी की सरकार केजरीवाल को लेकर चिंता प्रकट करती है तो यकीनन विदेशी अखबारों में सुर्खियां तो बनेंगी। लेकिन उसके कुछ दिन बाद अमरीका की सरकार ने अपना मुंह खोला। उसने कहा कि हम आशा करते हैं कि केजरीवाल के साथ न्याय होगा। मुझे लगता है बारी-बारी से अब कुछ और देश भी केजरीवाल के प्रति अपनी चिंता प्रकट करेंगे। इन देशों का सरगना यदि अमरीका को ही मान लिया जाए तो यकीनन वही निर्णय करता होगा कि केजरीवाल की चिंता करने के लिए किस देश की बारी कब आएगी। लेकिन असली प्रश्न थोड़ा और गहरा है। कुछ दिनों के अंतराल के बाद दो प्रदेशों के मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के मामले मे गिरफ्तार किए गए हैं। सबसे पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन गिरफ्तार किए गए थे। उसके कुछ दिनों के बाद दिल्ली नगर के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार किए गए। न जर्मनी ने और न ही अमरीका ने भारत से इस बात की गुजारिश की कि हेमंत सोरेन से न्याय किया जाना चाहिए। लेकिन क्या कारण है कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के तुरंत बाद जर्मनी और अमरीका अब मैदान में आ खड़े हुए हैं। यदि जरूरत पड़ी तो छिपे हुए ऐसे दूसरे पहलवान भी मैदान में उतरकर अपने करतब दिखाएंगे। केजरीवाल में ऐसा कौनसा चुंबक है जो हेमंत में नहीं है। जिन दिनों केजरीवाल दिल्ली में अपना मजमा लगा रहे थे और अन्ना हजारे को बहला-फुसला कर वहां ले आए थे, तब मैंने इस विषय पर लिखा था। उस समय कांग्रेस का पतन ही नहीं बल्कि दिल्ली के चाणक्यपुरी के अमरीका दूतावास के विशेषज्ञों ने आकलन कर लिया था कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस का धरातल खिसक रहा है। केवल खिसक ही नहीं रहा, बल्कि यह महल जर्जर हो चका है और 2014 के चुनाव का भार यह सह नहीं पाएगा, बल्कि भरभराकर गिर जाएगा। लेकिन इससे देश की राजनीति में बहुत बड़ा खालीपन पैदा हो जाएगा। पार्टी सबसे पुरानी तो है, पिछले दस साल से राज भी कर रही थी। कांग्रेस के इस प्रकार लडख़ड़ा जाने से शून्य उत्पन्न होगा, उसे कोई न कोई तो भरेगा ही। उस समय यह भी स्पष्ट होने लगा था कि भारतीय जनता पार्टी इस शून्य को भर ही नहीं सकती, बल्कि वह उसके लिए बिल्कुल तैयार है।

अमरीका और उसके मजहबी साथियों की चिंता का यही सबसे बड़ा कारण था। भाजपा जिस भारतीयता और भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की बात करती है, वह अमरीका और उसके साथियों को चिंतित करता है। इसलिए दिल्ली में आनन-फानन में बड़ा मजमा जमाया गया और उसको नैतिक आधार प्रदान करने के लिए महाराष्ट्र से अन्ना हजारे को लाया गया। जब तक अन्ना हजारे या दूसरे लोग कुछ समझ पाते, तब तक खेला हो चुका था। आम आदमी पार्टी बन गई थी। उसने लोकसभा के चुनावों में प्राय: हर सीट पर अपना प्रत्याशी खड़ा कर दिया था। खुद वाराणसी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़े हो गए और उसके दूसरे साथी कुमार विश्वास अमेठी में ताल ठोकने लगे। भारतीय मीडिया में इस नए प्रयोग की इतनी चर्चा नहीं हुई जितनी विदेशी मीडिया में हो रही थी। लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हुआ और कांग्रेस के महल के गिरने से उत्पन्न हुए शून्य को, अमरीका और उसके साथियों की तमाम सांस्कृतिक चिंताओं के होते हुए भी, भारतीय जनता पार्टी ने भर दिया। लेकिन शायद कुछ विदेशी शक्तियां भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण को देख कर ज्यादा ही घबरा गई हैं और डूबते को तिनके का सहारा देने के लिए केजरीवाल की चिंता कर रही हैं। यह सीधा-सीधा भारत की न्यायिक व्यवस्था पर अविश्वास प्रकट करने के समान है।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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