किसानों के लिए सरकार की अहम पहल

हम उम्मीद करें कि हाल ही में डब्ल्यूटीओ के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में जिस तरह भारत ने खाद्य सुरक्षा व एमएसपी का मुद्दा प्रभावी तरीके से उठाया है, उससे दुनिया के अन्य देशों का समर्थन बढ़ेगा और इसका स्थायी समाधान होगा। साथ ही हाल ही में लांच की गई बड़ी खाद्यान्न भंडारण योजना से लाभ मिलेगा…

एक ओर जब इन दिनों देश में किसानों के द्वारा अपनी मांगों को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारत सरकार के द्वारा किसानों के हित में उठाई गई दो महत्वपूर्ण पहलें दुनियाभर में रेखांकित हो रही हैं। एक, हाल ही में भारत के द्वारा संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अबूधाबी में आयोजित विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा, खाद्यान्नों के सार्वजनिक भंडारण एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के स्थायी समाधान के लिए प्रभावी पहल की गई, जिसके कारण इस सम्मेलन में इन मुद्दों पर कई विकसित देश भारत के किसानों के हितों के प्रतिकूल कोई प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ा पाए। ऐसे में अब भी भारत अपने किसानों के उपयुक्त लाभ के लिए नीतियां बनाने में सक्षम है। दो, 24 फरवरी को सरकार ने सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी खाद्यान्न भंडारण योजना के लिए प्रायोगिक परियोजना लांच की है। यह प्रायोगिक परियोजना 11 राज्यों में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) को लक्षित कर रही है, जिनके माध्यम से पैक्स की किसानों के हित में बहुआयामी भूमिका होगी।

गौरतलब है कि कृषि पर अबूधाबी मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भारत ने जी-33 देशों के समूह, अफ्रीकी देशों और प्रशांत देशों के समूह की आवाज के साथ पब्लिक स्टॉक होल्डिंग (पीएचएस) के स्थायी समाधान को अंतिम रूप देने के लिए मजबूती से पक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि अब डब्ल्यूटीओ को केवल निर्यातक देशों के व्यापारिक हितों तक ही अपना ध्यान सीमित नहीं रखना चाहिए, असली चिंता दुनिया के करोड़ों लोगों की खाद्य सुरक्षा और आजीविका की होनी चाहिए। वस्तुत: खाद्य सुरक्षा एवं सार्वजनिक भंडारण के लिए भारत सरकार गेहूं और चावल मोटे अनाज को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की पहले से तय कीमत पर खरीदती है और फिर उन्हें गरीबों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये सस्ते दाम या मुफ्त में वितरित करती है। यह खाद्य सुरक्षा भूख से त्रस्त लाखों लोगों को भूख से बचाने का सरकार का नीतिगत तरीका है। यह भारत के द्वारा वर्ष 2030 तक देश में भूख व गरीबी मिटाने के लक्ष्य से जुड़ा मुद्दा भी है। ज्ञातव्य है कि वर्तमान में डब्ल्यूटीओ के नियमों के मुताबिक 1986-88 के मूल्यों को आधार मानते हुए उत्पादन मूल्य का 10 प्रतिशत से अधिक किसानों को सब्सिडी नहीं दी जा सकती है। भारत इसमें बदलाव चाहता है ताकि किसानों को अधिक सब्सिडी देने पर वैश्विक मंच पर उसका विरोध नहीं हो सके। अमरीका सहित कई विकसित राष्ट्र खाद्यान्न के लिए भारत में दिए जा रहे एमएसपी कार्यक्रम पर सवाल उठा रहे हैं, उनका कहना है कि इस पर दी जा रही सब्सिडी डब्ल्यूटीओ व्यापार नियमों के तहत स्वीकृत सीमा से करीब तिगुनी हो गई है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2013 में बाली में हुए मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में सार्वजनिक भंडारण और खाद्य सुरक्षा को लेकर एक पीस क्लॉज पर हस्ताक्षर किए गए थे जिसके तहत अन्न भंडारण कार्यक्रम का स्थायी हल नहीं निकलने तक किसी भी देश के द्वारा अनाज की खरीददारी और उसे कम दाम पर लोगों को देने का विरोध नहीं किया जाएगा। भारत को आशंका है कि खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम पर रोक लगाई जाएगी तो इससे देश के करोड़ों लोगों की भूख, करोड़ों किसानों की आजीविका और भारतीय कृषि के भविष्य पर असर पड़ सकता है। इसी कारण भारत खाद्य सब्सिडी की सीमा तय करने का फॉर्मूला बदलने की मांग कर रहा है।

निश्चित रूप से इस समय जब भारत 142 करोड़ से अधिक जनसंख्या के साथ दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है, देश में अभी भी 15 करोड़ से अधिक लोग गरीबी की रेखा के नीचे हैं और भारत को कुपोषण की समस्या से ग्रसित देश के रूप में रेखांकित किया जा रहा है, तब भारत में खाद्य सुरक्षा, अधिक खाद्यान्न उत्पादन और खाद्यन्न भंडारण की जरूरत बनी हुई है। इस परिप्रेक्ष्य में सरकार के सराहनीय प्रयास दिखाई भी दे रहे हैं। जहां सरकार डब्ल्यूटीओ सहित अन्य वैश्विक मंचों पर किसानों को अधिक समर्थन को न्यायसंगत बताती है, वहीं हाल ही में 24 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा लांच की गई दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना के तहत अगले पांच साल में 1.25 लाख करोड़ रुपए की लागत से 700 लाख टन अनाज की भंडारण क्षमता के हजारों गोदाम बनाए जाएंगे। खास बात यह है कि अब कम्प्यूटरीकृत पैक्स को गोदाम तैयार करने, कस्टर हायरिंग सेंटर बनाने, उचित मूल्य की दुकानों की प्रक्रिया में तथा प्रसंस्करण इकाइयां तैयार करने जैसी बहुआयामी भूमिका में शामिल किया गया है। नई खाद्यान्न भंडार योजना वस्तुत: देश में भंडारण के बुनियादी ढांचे की कमी के कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। नई विशाल भंडारण क्षमता के बाद किसान अपनी उपज को गोदामों में रखने, इसके बदले संस्थागत ऋण प्राप्त करने और बाजार मूल्य लाभकारी होने पर अपने खाद्यान्न को बेचने में सक्षम होंगे।

नई खाद्यान्न भंडार योजना का मकसद देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करना, भंडारण क्षमता में कमी के कारण किसानों को फसल पैदावार के मौसम में कम मूल्य पर की जाने वाली बिक्री से होने वाले नुकसान से बचाना भी है। इस समय देश का खाद्यान्न उत्पादन लगभग 3200 लाख टन से भी अधिक है, जबकि भंडारण क्षमता कुल उत्पादन का केवल 47 प्रतिशत ही है। ऐसे में निश्चित रूप से तेजी से बढ़ता हुआ खाद्यान्न उत्पादन अब किसानों के परम्परागत खाद्यान्न भंडारों और सरकार की खाद्यान्न संग्रहण क्षमताओं को लांघते हुए चुनौतीपूर्ण बन गया है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि पिछले एक दशक में सरकार के विभिन्न कृषि योजनाओं के द्वारा छोटे किसानों और कृषि विकास को जिस तरह समर्थन मिला है, उससे कृषि उत्पादन लगातार बढ़ता गया है और खाद्यान्न भंडारण की आवश्यकता बढ़ती गई है। यद्यपि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश है, लेकिन खाद्यान्न भंडारण में अभी भी बहुत पीछे है।

अनाज के अन्य बड़े उत्पादक देशों चीन, अमरीका, ब्राजील, यूक्रेन, रूस और अर्जेन्टीना के पास खाद्यान्न भंडारण क्षमता वार्षिक उत्पादन की मात्रा से कहीं अधिक है। ऐसे में नई खाद्यान्न भंडार योजना के माध्यम से देश में खाद्यान्न भंडारण की जो क्षमता फिलहाल 1450 लाख टन की है, उसे अगले 5 साल में सहकारी क्षेत्र में 700 लाख टन अनाज भंडारण की नई क्षमता विकसित करके कुल खाद्यान्न भंडारण क्षमता 2150 लाख टन किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। चूंकि इस योजना के क्रियान्वयन में प्राथमिक कृषि ऋण समितियां (पैक्स) अहम भूमिका होगी। अत: पैक्स तथा सरकार के बीच उपयुक्त तालमेल जरूरी होगा। देश में अभी करीब एक लाख पैक्स हैं। पैक्स की क्षमता में सुधार करना होगा। पैक्स के स्तर पर भंडार गृह, प्रसंस्करण इकाई आदि कृषि व्यवस्थाएं निर्मित करके पैक्स को बहुउद्देश्यीय बनाए जाने के लिए उच्च स्तर पर खाद्यान्न भंडारण में विविधता लाई जाना होगी। हम उम्मीद करें कि हाल ही में डब्ल्यूटीओ के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में जिस तरह भारत ने खाद्य सुरक्षा व एमएसपी का मुद्दा प्रभावी तरीके से उठाया है, उससे दुनिया के अन्य देशों का समर्थन बढ़ेगा और इसका स्थायी समाधान होगा। साथ ही सरकार के द्वारा हाल ही में लांच की गई सहकारी क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी खाद्यान्न भंडारण योजना किसानों की खुशहाली, देश के कृषि विकास व अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित होगी।

डा. जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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